Tag: वेद से सम्बंधित सभी आलेख

शुक्लयजुर्वेद माध्यन्दिन संहिता अध्याय–१-५

शुक्लयजुर्वेद माध्यन्दिन संहिता प्रथमोध्यायः हरिः ॐ इ॒षे त्वो॒र्जे त्वा॑ वा॒यव॑ स्थ दे॒वो व॑: सवि॒ता प्रार्प॑यतु॒ श्रेष्ठ॑तमाय॒ कर्म॑ण॒ आप्या॑यध्व मघ्न्या॒ इन्द्रा॑य भा॒गं प्र॒जाव॑तीरनमी॒वा अ॑य॒क्ष्मा मा व॑ स्ते॒न ई॑शत॒ माघश॑ᳪ सोध्रु॒वा अ॒स्मिन्…

शुक्लयजुर्वेद माध्यन्दिन संहिता अध्याय -१

हरिः ॐ इ॒षे त्वो॒र्जे त्वा॑ वा॒यव॑ स्थ दे॒वो व॑: सवि॒ता प्रार्प॑यतु॒ श्रेष्ठ॑तमाय॒ कर्म॑ण॒ आप्या॑यध्व मघ्न्या॒ इन्द्रा॑य भा॒गं प्र॒जाव॑तीरनमी॒वा अ॑य॒क्ष्मा मा व॑ स्ते॒न ई॑शत॒ माघश॑ᳪ सोध्रु॒वा अ॒स्मिन् गोप॑तौ स्यात ब॒ह्वीर्यज॑मानस्य प॒शून्पा॑हि…

केनोपनिषद्- खण्ड १

विद्वानों ने उपनिषद शब्द की व्युत्पत्ति  उप+नि+षद् के रूप में मानी है। इसका अर्थ है कि जो ज्ञान व्यवधान रहित होकर निकट आये, जो ज्ञान विशिष्ट तथा संपूर्ण हो तथा…

चन्द्रमा का प्रभाव तथा उपाय

ऋग्वेद में कहा गया है कि ‘चन्द्रमा मनसो जातश्चक्षोः सूर्यो अजायत:।‘ वैदिक ज्योतिष में चंद्रमा को मन का कारक माना जाता है। ज्योतिषियों की माने तो चंद्रमा के प्रभाव से…

प्राचीन भारतीय विज्ञान

प्राचीन काल में वैदिक सभ्यता तथा ज्ञान विश्व व्यापी था। भारत में सभी प्रकार के विचारों को स्वीकार किया गया, अतः यहाँ विदेशी आक्रमण द्वारा नष्ट होने पर भी ज्ञान…

वैदिक कालीन शिक्षा

शिक्षा का उद्देश्य:शिक्षा के उद्देश्य का पहला उल्लेख ऋग्वेद के 10 वें मंडल में पाया जाता है. इस मंडल के एक सूक्त में कहा गया है कि विद्या का उद्देश्य…

वैदिक कालीन शिक्षा एवं आज का परिवेश

वेद शब्द संस्कृत भाषा के “विद्” धातु से बना है जिसका अर्थ है: जानना, ज्ञान इत्यादि। वेद हिन्दू धर्म के प्राचीन पवित्र ग्रंथों का नाम है । वेदों को श्रुति…

।।महर्षि मनु ।। : डा॰ आशीष पांडेय

भारतीय संविधान अपने नागरिकों को जाति, वर्ण, लिंग के आधार पर भेदभाव का निषेध करता है। संविधान जातिगत भेदभाव तो नहीं मानता परन्तु जातियों को मानता है। जो व्यक्ति जिस…

युवाओं को वैदिक मार्गदर्शन (आचार्य अभिजीत जी)

आज भागदौड़ के आपाधापी में हमारे युवाओं के जीवन में  नाना प्रकार की कठिनाइयां और उन्हें जीवन के हरेक मोड़ पर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। सभी विषयों…

श्रेय एवम् प्रेय का भेद – साधना का एक महत्वपूर्ण सूत्र (अभिषेक तिवारी)

कठोपनिषद अध्याय १, बल्ली २, मंत्र १ और २ : अन्यच्छ्रेयोऽन्यदुतैव प्रेयस्ते उभे नानार्थे पुरुषंसिनीतः ।तयोः श्रेय आददानस्य साधु भवति हीयतेऽर्थाद्य उ प्रेयो वृणीते ।।(कठोपनिषद्, अध्याय १, बल्ली २, मंत्र…

error: Content is protected !!