ज्ञानसंजीवनी

दिपावली पूजन मुहूर्त –
अमावस्या तिथि प्रारम्भ: 14 नबंवर 2020 दोपहर 01 बजकर 49 मिनट
अमावस्या तिथि समाप्त: 15 नवम्बर 2020 दिन में सुबह 11 बजकर 32 मिनट तक
लक्ष्मी पूजा मुहूर्त:
दिन में स्थिर कुम्भ लग्न दोपहर 12:36 बजे से 02:09 बजे तक।
सर्वोत्तम स्थिर वृष लग्न सायं 05:16 बजे से 07:13 बजे तक।
महानिशा में स्थिर सिंह लग्न रात्रि 11:44 बजे से 01:57 बजे तक।

पांच दिवसीय दीपोत्सव इस साल 5 दिन के स्थान पर 4 दिन का होगा। छोटी दिवाली यानि रूप चौदस और दिवाली एक ही दिन मनाई जाएगी। इस बार दिपावली पर गुरु ग्रह अपने स्वराशि धनु और शनि अपने स्वराशि मकर में रहेगा, जबकि शुक्र ग्रह कन्या राशि में रहेगा। बताया जा रहा है कि दिपावली पर तीन ग्रहों का यह दुलर्भ संयोग 2020 से पहले 1521 में बना था। ऐसे में यह संयोग 499 साल बाद बन रहा है।


धार्मिक मान्यता है कि जिस दिन सूर्यास्त के बाद एक घड़ी अधिक तक अमावस्या तिथि रहे, उस दिन दिपावली मनाई जाती है। कार्तिक अमावस्या के दिन माता लक्ष्मी धरती पर आती हैं। अमावस्या की रात्रि में ही माता धरती पर विचरण करती हैं। इसी वजह से यह त्योहार अमावस्या की रात को मनाना सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।

बालव्यास आराधना चतुर्वेदी

इस बार अमावस्या तिथि 14 नवंबर दोपहर 01:49 बजे से शुरू होगी और दूसरे दिन 15 नवंबर को सुबह 11:32 बजे तक रहेगी। यही वजह है कि माता लक्ष्मी का पूजन 14 नवंबर शनिवार को होगा।

नवरात्रि में कलश स्थापना शनिवार को था और दीपावली भी शनिवार को है। यह एक बड़ा ही मंगलकारी योग है कि शनि स्वगृही मकर राशि पर है। यह योग व्यापार के लिए लाभकारी एवं जनता के लिए शुभ फलदाई रहेगा। कई वर्षों बाद यह दुर्लभ संयोग बन रहा है। तंत्र पूजा के लिए दीपावली पर्व को विशेष माना जाता है।

दिपावली के दिन भगवान श्री गणेश और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है। दिपावली से पहले पूरे घर की अच्छी तरह से सफाई की जाती है और शाम के समय गणेश जी और लक्ष्मी जी का पूजन करके पूरे घर को दीपों से सजाकर माता लक्ष्मी की स्वागत किया जाता है।

पुराणों के अनुसार दीपावली के दिन ही भगवान राम अयोध्या लौटे थे। भगवान राम के आने की खुशी में अयोध्यावासियों ने उनका दीप जलाकर स्वागत किया था। उसी समय से दिपावली का त्योहार बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। तो आइए जानते हैं दिपावली 2020 की तिथि, लक्ष्मी पूजा का मुहूर्त, दिपावली का महत्व, दिपावली पूजन विधि और दिपावली की कथा के बारे में।

दिपावली का पर्व कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है। दिपावली पर माता लक्ष्मी, कुबेर जी और भगवान श्री गणेश की पूजा का विधान है।

● दिपावली की पूजा विधि –
दिपावली के दिन भगवान गणेश और माता लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है।
इस दिन घर के सभी लोगो शाम के समय स्नान करने के बाद कोरे वस्त्र धारण करने चाहिए।इसके बाद एक चौकी पर गंगाजल छिड़कर उस पर लाल रंग का कपड़ा बिछाएं। कपड़ा बिछाने के बाद खील और बताशों की ढेरी लगाकर उस पर भगवान गणेश, माता लक्ष्मी की प्रतिमा और कुबेर जी की प्रतिमा स्थापित करें। इसके बाद कुबेर जी प्रतिमा भी स्थापित करें और साथ ही कलश की स्थापना भी करें । उस पर स्वास्तिक बनाकर आम के पत्ते रखें और नारियल स्थापित करें। कलश स्थापित करने के बाद पंच मेवा, गुड़ फूल , मिठाई,घी , कमल का फूल ,खील और बातसे भगवान गणेश और माता लक्ष्मी के आगे रखें। इसके बाद अपने घर के पैसों, गहनों और बही-खातों आदि को भगवान गणेश और माता लक्ष्मी के आगे रखें। यह सभी चीजें रखने के बाद घी और तेल के दीपक जलाएं और विधिवत भगवान गणेश और माता लक्ष्मी जी की पूजा करें। माता लक्ष्मी के मंत्रों का जाप और साथ ही श्री सूक्त का भी पाठ करें। पूजा समाप्त होने के बाद अंत में अपने घर के मुख्य द्वार पर तेल के दो दीपक अवश्य जलाएं और साथ ही अपनी तिजोरी पर भी एक दीया अवश्य रखें।

पौराणिक कथा के अनुसार एक गांव में एक साहूकार रहा करता था। उसकी एक बेटी थी जो रोज पीपल पर जल चढ़ाया करती थी। जिस पेड़ को वह जल देती थी वहां पर लक्ष्मी जी भी वास करती थी। लक्ष्मी जी उस साहूकार की लड़की से बहुत अधिक प्रसन्न थी। जिसके बाद उन्होंने उस लड़की से मित्र बनने की इच्छा प्रकट की। लड़की ने कहा कि मैं अपने पिता से इस विषय में पूछूंगी। जब उसने अपने पिता को इस बारे में बताया तो उसके पिता ने इसके लिए हां कर दी। जिसके बाद वह एक दिन लक्ष्मी जी साहूकार की बेटी को अपने घर लेकर आ गई। उन्होंने साहूकार की पुत्री का बहुत स्वागत किया। जब साहूकार की बेटी जाने लगी तो लक्ष्मी जी ने पूछा कि अब तुम मुझे अपने घर कब बुलाओगी। जिसके बाद एक दिन उसने लक्ष्मी जी को अपने घर बुलाया लेकिन उसकी वह बहुत ही निर्धन थी। जिसके कारण उसके मन में डर था कि वह लक्ष्मी जी का स्वागत कैसे करेगी। उसके पिता ने जब उसकी यह हालत देखी तो उससे कहा कि तू घर की सफाई करके चार बाती वाला दीपक जला और लक्ष्मी जी को याद कर। उसी समय एक चील अपनी चोंच में नोलखा हार लेकर जा रही थी और उसने उस हार को साहूकार के घर पर डाल दिया। जिसे बेचकर उसने लक्ष्मी जी के स्वागत की तैयारी की। लक्ष्मी जी भगवान गणेश के साथ उसके घर में पधारी। साहूकार की बेटी ने उन दोनों की खूब सेवा की। उसकी सेवा से प्रसन्न होकर माता लक्ष्मी ने साहूकार को अमीर बना दिया।

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