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मानव समाज में आभूषण और अलंकारो के धारण करने का रिवाज बहुत पुराना है आभूषण का अर्थ है शोभा बढ़ाना और सजाना | जहां ये स्वास्थ व शारीरिक सौंदर्य को कायम रखते है वहीँ आभूषण व अलंकार धारण करने से सौंदर्य बोध भी बढ़ता है यदि आभूषण और अलंकारों के साथ मानव के स्वास्थ के द्रष्टि न जुड़ी हो तो आभूषणों के नए नए डिज़ाइनों का विकास न होता और शरीर के किस अंग पर किस धातु का और किस किस्म का आभूषण पहनना चाहिए इस विज्ञान का भी विकास नहीं होता जिस तरह से नारी सौंदर्य के वर्णन में नखशिख श्रृंगार का वर्णन होता है उसी प्रकार स्वास्थ की द्रष्टि से नख से शिख तक आभूषणों को पहनने की अपनी प्रक्रिया एवं परंपरा है |
आभूषणों में अनेक प्रकार की धातुओं का प्रयोग होता है पत्थरों से लेकर प्लेटिनम तक के जेवर जो स्त्री और पुरुष दोनों धारण करते है आदिवासी समाज में उनके आसपास मिलने वाली धातुओं और वस्तुओं से ही आभूषण बनाये जाते रहे है |
जहाँ आदिवासी समाज में पत्थर, हड्डी, कोड़ी, और जमीन से मिलने वाले उपरत्न इस्तेमाल होते है वाही कई आदिवासियों में जंगल में मिलने वाली लकड़ियों से भी आभूषण बनाकर पहनने का रिवाज है किन्तुनगरीय समाज में सभ्यता के विकास के साथ साथ अनेक प्रकार के संपन्न धुतुओं का प्रयोग शुरू हुआ जिनमे सोना चांदी तथा जवाहरात प्रमुख है |

इन धातुओं और आभूषणों के उपयोग का शरीर और मन पर क्या प्रभाव पड़ता है इसका अलग अलग द्रष्टि से अध्ययन किया गया है ज्योतिष विज्ञान ने इनके प्रभाव को ग्रहों के प्रभाव से जोड़कर एक नया आधार दिया है | आभूषण शरीर को सजाते ही नहीं बल्कि स्वस्थ भी रखते है |

माथे की बिंदी :
माथे पर दोनों भौहों के मध्य थोड़ा ऊपर एक ब्रह्म छिद्र रहता है जिस पर राखी हुई बिंदी मस्तिष्क के विचारों को सुव्यवस्थित रखती है यह बिंदी तथा मांग में भरा जाने वाला सिंदूर परे का लाल आक्साइड होता है जो पोषकतत्व होने के नाते शरीर पर विशिष्ट प्रभाव डालता है साथ ही चेहरे पर झुर्रियों को जल्द पड़ने नहीं देता है |

माथे का टीका :
यह आभूषण माथे पर लटका रहता है किन्तु इसकी चेन का हुक पीछे सर के लगभग बीच में बालों में लगा रहता है जिससे मष्तिस्क को विशेष शांति और नियंत्रण प्राप्त होता है |
आभूषण में चांदी व सोने का प्रमुखता से प्रयोग इसलिए होता है क्योंकि चांदी शीतल होती है जबकि सोना गर्म | इसके पहनने से कैंसर होने की आशंका नगण्य रहती है साथ ही दोनों धातु शरीर में रक्त संचालन को संतुलित करने में भरी योगदान देती है |

नथुनी :
यह कफ, नासिका रोगों से हिफाजत करती है इसे पहनने वाली महिलाओं को पुरुषों के अपेक्षा ये रोग काफी कम होते है विचार के साथ भी इसका विशेष संबंध है |

बुलाक :
दोनों नथुनों के बीच का उध्र्व झिल्ली में छिद्र कर बुलाक पहना जाता है इससे सूंघने की शक्ति प्रबल होती है जिसकी गृहणी को पाकशाला में बहुत आवश्यकता पड़ती है कफ के विचारों पर भी अंकुश रहता है |

कुंडल बाली टाप्स :
प्रकृति ने मानव की इस प्रकार रचना की है कि यदि तजुर्बेकार व्यक्ति द्वारा नाक व कान सही स्थान से बींधे जाए तो उनसे न तो खून निकलेगा और न ही वे पकेंगे |
कान के निचले हिस्से को छेदकर उसमें आभूषण धारण करने से गला, बहरापन, टांसिल का बढ़ना भी नहीं होता इसके अलावा मौसमी रोग दुखी नहीं करते |

कान के ऊपरी हिस्से की बाली :
कान के इस हिस्से में एक नस होती है जिसे बींधने से उसमे बाली पहनने से भारी बोझ उठाने के कारण आंते उतरने की बीमारी नहीं होती | मासिक धर्म की अनियमिता नहीं रहने से हिस्टीरिया के दौरे का रोग नहीं होता | मसाने के रोगों से निजात मिलती है |

बाजूबंद :
यह आभूषण कंधे व कुहनी के बीच में धारण किया जाता है इसके पहनने से ह्रदय को अत्यधिक शक्ति मिलती है शत्रु अथवा डरावनी वस्तु को देखकर भय नहीं होता | कंधे व हाथ के दर्द से बचाव होता है हाथ में सुन्नी नहीं होती | वीर पुरुष इसे विशेष रूप से धारण करते है | पुरुषों में पौरुष तथा स्त्रियों में संयम उत्पन्न करता है |

गले की हंसुली :
हार चेन हंसुली में गर्दन की ओर मुड़े हुए दोनों गोल सिरे गर्दन से गुजने वाली नाड़ियो पर इस प्रकार का दबाव रखते है जिसके कारण आंखो की ज्योति ठीक रहती है तथा रीढ़ ही हड्डी के रोग नहीं होते | गला फूलने वाला गलकंठ रोग नहीं होता | वाणी में सुरीलापन आटा है दिल व दिमाग के संपर्क को सुद्रढ करता है गर्दन के हड्डी बढ़ जाने से उत्पन्न रोग मेरुदंड विभीषिका रोग महिलाओं में प्राय: इसलिए नगण्य होता है क्योंकि वे गले में जेवर धारण करती है जबकि इसके अभाव में यह रोग पुरुषों में सर्वाधिक पाया जाता है | सिरदर्द हिस्टीरिया के दौरे मतिभ्रम आदि मानसिक वाधियों में भी यह आभूषण लाभप्रद रहते है मस्तिष्क को आराम देने तथा दर्द निवारण में फायदेमंद होते है कफ तथा वात रोगों पर भी ये अंकुश लगाते हिया गर्दन से ऊपर के सभी रोगों को रामबाण औषधि है यह आभूषण |

अंगूठी :
अर्द्धमूर्छा, हाथ, व अंगुलियों में शिथिलता तथा कंपन, ज्वर, कफ, दमा, आदि से राहत मिलती है सबसे छोटी कनकी उंगली में पहनने से घवराहट छाती के दर्द, मानसिक आघात को विशेष राहत मिलती है | ज्योतिषियो के अनुसार दोनों हाथो की दस अंगुलिया नवरत्न नवग्रहों का निवारण करती है कलाई के स्थान को मणिबंध भी कहते है |

कंगन चूड़ी दस्तबंद :
इनके धारण करने से शरीर के समस्त दर्दो में राहत मिलती है ओजिस्विता का विकास होता है मुंह का लकवा, बहरापन,दान्त्दर्द आदि न होने देने तथा उनके उपचार में लाभप्रद है वाणी के दोष, जैसे हकलाना, तुतलाना क्षीणता नहीं होता | ह्रदय रोगों जैसे घबराहट, गति का बढ़ जाना, तीव्र वेदना में राहत मिलती है मानसिक रोगों जैसे हिस्टीरिया दु:स्वप्न, अल्कोहल आदि मादक द्रवों का आदी होने के कारण भयग्रस्त होना नींद न आना, याददाश्त कम पड़ने आदि में लाभप्रद होते है साथ ही उल्टी उबकाई जैसी प्रवृत्तियों को नियंत्रित करने में सहायक रहते है |

पिंडली पर पहने जाने वाले कड़े :
इन्हें धारण करने से मासिक धर्म नियमित कष्टहीन तथा परिपक्व उम्र में होता है विशेषकर नृत्यांगनाओ खिलाडीयों एवं श्रमिक महिलाओं के स्वास्थ की द्रष्टि से अत्यधिक लाभकारी है |

तगड़ी, करधनी :
कटि प्रदेश में इसे धारण करने के बहुत लाभी है इससे मासिक धर्म और पाचन शक्ति नियमित रहती है कमर दर्द नहीं होता | रीढ़ के हड्डी से सम्बंधित रोग नहीं होता | बांझपन में लाभकारी हर्निया रोगों से बचाव होता है सुषुम्ना नाड़ी जिसका संबंध हमारी चेतना व निद्रा से रहता है पर पूर्ण नियंत्रण रहता है नाभि के नीचे के रोग ठीक रहते है |

पैरो के अंगूठे के गुठले :
अंगूठो में पहना जाने छल्ला जिसे गुठला भी कहते है शरीर में नाप नहीं होने देता | क्यूंकि नाप हो जाने से दस्त, दर्द से बदन टूटना आदि व्याधियां उत्पन्न हो जाती है धातु के छल्ले के अभाव में अंगूठों को मात्र सूत के डोरे के छल्ले से बाँध देने से भी यही लाभ मिलता है दू:स्वप्न नहीं आते |

चुटकियाँ, बिछियां :
इन्हें धारण करने से महिला को प्रसव के समय वेदना कम होती है तेज बुखार अर्द्धमूर्छा आदि में राहत मिलती है मस्तिष्क को विकारों से दूर व विचारों को पुष्ट रखता है लंगड़ी, वाय (साइटिका का दर्द ) नहीं होता |

पायल व कड़े :
इन्हें धारण करने से एड़ी, ताखनी, पीठ के निचले हिस्से में दर्द नहीं होता | कूल्हे से निचले भाग में लकवा मारने का भय नहीं रहता, हिस्टीरिया के दौरे नहीं पड़ते, स्वास रोग नहीं होता | मूत्र रोग नहीं होते खून का दौरा ठीक रहता है

आभूषण एवं महिला जातक :
भारतीय संस्कृति में गहने पहनना एक रस्म और मर्यादा के अन्तर्गत आते हैं। आभूषण एवं गहनों से केवल शारीरिक सौन्दर्य ही नहीं निखरता वरन् इससे स्वास्थ्य रक्षा भी होती हैं। शरीर को सजाने के साथ-साथ अनजाने में गहने हमारे शरीर के लिए चिकित्सा का कार्य भी करते हैं। आभूषण पहनने का चलन उतना ही पुराना हैं जितना कि मानव सभ्यता का विकास। आभूषण केवल महिलाएँ ही धारण नहीं करती बल्कि पुरूष भी उन्हें किसी न किसी रूप में धारण करते आये हैं। विज्ञान की आधुनिक खोज से भी आभूषणों द्वारा स्वास्थ्य लाभ की पुष्टि हो चुकी हैं।

कुछ महिला जातक धनी होने के बावजूद भी कम जेवर पहनने का शौक रखती हैं, तो कुछ महिला जातक अधिक से अधिक आभूषण खरीदने के प्रयास करती हैं। बाजार, शादी या अन्य समारोहों में जाते समय अधिक से अधिक गहने पहनकर खुबसूरती का पर्याय बनती हैं। इसके स्थान पर कुछ महिला जातक साधारण रहती हैं। आइए जानते हैं इसके ज्यातिषीय कारण जो निम्न हैं –

आभूषण कम पसन्द आने के ग्रह योग:
मकर एवं कुंभ लग्न वाली महिला जातकों को जेवर (आभूषण) पसन्द कम होते हैं। यदि लग्नेश शनि के नक्षत्र में हो तो ऐसा होता हैं। चर्तुथ भाव में शनि हो और चतुर्थेश निर्बल हो तो यह आभूषण ना पसन्द का कारण बनते हैं। शुक्र, शनि के साथ युति में हैं और शनि का जातक के लग्न से सम्बन्ध हो तो जेवर पसन्द नहीं आते। यदि कुण्डली में भाग्य स्थान में शनि हो, लग्नेश निर्बल हो अथवा शनि की दृष्टि हो तो भी महिला को आभूषण कम पसन्द होते हैं। यदि महिला जातक की कुण्डली में शनि द्वादश भाव में बैठा हो और शुक्र कमजोर होने पर भी जेवर का शौक नहीं रहता हैं।

आभूषण अधिक पसन्द आने के ग्रह योग:
यदि कुण्डली में शुक्र चर्तुथ भाव में, तुला, मीन या वृषभ राशियों में बैठा हो उस जातक को आभूषण अधिक पसन्द होगा। जातक की कुण्डली में सप्तम भाव में शुक्र प्रबल होकर स्थित हैं तो जातक को आभूषण अधिक पसन्द होगें। जन्म कुण्डली में शुक्र व चन्द्र के बीच युति सम्बन्ध, राशि परिवर्तन , दृष्टि सम्बन्ध या नक्षत्रीय सम्बन्ध स्थापित हो ऐसी महिला जातक को आभूषण अधिक पसन्द होगें। यदि एकादश भाव या लग्न में लग्नेश, आयेश और राहू एक साथ बैठे हो तो भी जातिका को आभूषण पसंद होगें। यदि कुण्डली में शुक्र लग्न , चर्तुथ, पंचम, सप्तम, एकादश या द्वादश भाव में हो तो उन महिला जातकों को भी आभूषण अधिक प्रिय होगें। यदि कुण्डली में शुक्र चतुर्थेश के साथ युति दृष्टि अथवा राशि परिवर्तन का सम्बन्ध बना रहा हो तो वह जेवर पसन्द आने का कारण बनेगा।

उपरोक्त कारणों में मुख्य रूप से देखा जाए तो ज्योतिष में शुक्र ग्रह एवं चतुर्थ भाव जेवर से सम्बन्ध बनाता हैं सामान्यतः वृषभ राशि या लग्न , तुला राशि या लग्न की महिला जातक को जेवर तुलनात्मक रूप से अधिक प्रिय होगें। इसी प्रकार महिला जातक की कुण्डली का लग्नेश (लग्न का स्वामी ग्रह) यदि भरणी नक्षत्र, पूर्वाषाढ़ या पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में होने पर भी आभूषण प्रिय होगें।

अतः उक्त दोनों प्रकार की स्थितियों ही महिला जातक की आभूषण के प्रति रूची या अरूची को दर्शाती हैं। इसी से पता चल जाता हैं कि महिला जातक आभूषण प्रिया होगी या नहीं|

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