०३ अगस्त, २०२० को  पूर्णिमा तिथि में रक्षा बंधन का त्योहार मनाया जाएगा ।आइए सबसे पहले ये
जानते है कि पूर्णिमा कब से  प्रारम्भ होकर कब तक है =२/अगस्त, २०२० को २१:२८ बजे प्रारंभ 

पूर्णिमा तिथि प्रारंभ हो रही है जो कि ३/अगस्त/२०२० को  २१:२७ मिनट तक रहेगी,जिसमें ३ को  भद्रा होने के कारण प्रातः ६:२८ से ९:२८ तक  राखी नहीं बंधी जा सकती ।   

रखी बांधने का शुभ मुहूर्त
रक्षा बन्धन अनुष्ठान का समय = ०९:३० से २१:१५
अवधि = ११ घण्टे ४९ मिनट्स तक का है। जिसमे अलग अलग प्रान्तों के हिसाब से नीचे मुहूर्त विवरण भी दिया जा रहा है ताकि भारत समेत अन्य देशों के लोग जो इस त्योहार को मानाते है उन्हें किसी प्रकार की कोई असुविधा  न हो। रक्षा बन्धन के लिये अपराह्न का मुहूर्त = १३:५१ से १६:२७ अवधि = २ घण्टे ३६ मिनट्स
रक्षा बन्धन के लिये प्रदोष काल का मुहूर्त = १९:०४ से २१:१५ अवधि = २ घण्टे ११ मिनट्स तक है उसके बाद तिथि बदल जाएगी।

रक्षा बन्धन समय-सारणी (भारतीय, दिल्ली) समयानुसार:

रक्षा बन्धन अनुष्ठान का समय
०९:३० से २१:१५
अवधि:११ घण्टे ४९ मिनट्स

रक्षा बन्धन के लिये अपराह्न का मुहूर्त

१३:५१ से १६:२७
अवधि: २ घण्टे ३६ मिनट्स

रक्षा बन्धन के लिये प्रदोष काल का मुहूर्त

१९:०४ से २१:१५
अवधि: २ घण्टे ११ मिनट्स

भद्रा पूँछ : ०५:१६ से ०६:२८
भद्रा मुख : ०६:२८ से ०८:२८
भद्रा अन्त समय : ०९:२८

पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ

२/अगस्त/२०२० को २१:२८ बजे

पूर्णिमा तिथि समाप्त

३/अगस्त/२०२० को २१:२७ बजे

हमारे सनातन धर्म  में प्रत्येक वर्ष, माह एवं, पक्ष में कोई न कोई त्योहार मनाया जाता रहा है, जिसका उल्लेख वेद एवं पुराणों में भी किया गया है। इसके अतिरिक्त लौकिक एवं प्रांतीय पर्व भी आदि काल से मनाया जाता रहा है । 
आइए आज हम चर्चा करते है भाई बहनों के उत्साह का महापर्व रक्षाबंधन का, इस दिन बहन अपने भाइयों को रक्षाधागा बंधती हैं और भाई अपनी बहनों को जीवन भर उनकी रक्षा करने का वचन देते हैं।  इस त्यौहार के दिन सभी भाई बहन एक साथ भगवान की पूजा आदि करके आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। सदियों से चली आ रही रीति के मुताबिक, बहन भाई को राखी बांधने से पहले प्रकृति की सुरक्षा के लिए तुलसी और नीम के पेड़ को राखी बांधती है जिसे वृक्ष-रक्षाबंधन भी कहा जाता है। हालांकि आजकल इसका प्रचलन नही है। राखी सिर्फ बहन अपने भाई को ही नहीं बल्कि वो किसी खास दोस्त को भी राखी बांधती है जिसे वो अपना भाई जैसा समझती है और तो और रक्षाबंधन के दिन पत्नी अपने पति को और शिष्य अपने गुरु को भी राखी बांधते है। 

पौराणिक  मान्यता के अनुसार


द्रौपदी श्री कृष्ण की कथा
 शिशुपाल राजा का वध करते समय भगवान श्री कृष्ण के बाएं हाथ से खून बहने लगा, तो द्रोपदी ने तत्काल अपनी साड़ी का पल्लू फाड़कर उनके हाथ की अंगुली पर बांध दिया। कहा जाता है कि तभी से भगवान कृष्ण द्रोपदी को अपनी बहन मानने लगे और सालों के बाद जब पांडवों ने द्रोपदी को जुए में हरा दिया और भरी सभा में जब दुशासन द्रोपदी का चीरहरण करने लगा तो भगवान कृष्ण ने भाई का फर्ज निभाते हुए उसकी लाज बचाई थी।
मान्यता है कि तभी से रक्षाबंधन का पर्व मनाया जाने लगा, जो आज भी जारी है। श्रावण मास की पूर्णिमा को भाई-बहन के प्यार का त्योहार रक्षाबंधन मनाया जाता है। 

राजा बलि की कथा संदर्भ
राजा ने बलि सौ यज्ञ पूरे करने का प्रण लिया था। यदि राजा बलि के सौ यज्ञ पूरे हो जाते तो वो तीनों लोकों के स्वामी बन जाते। इससे देवतागण चिंतित थे, घबराकर देवराज इन्द्र ने भगवान विष्णु से राजा बलि को यज्ञ पूरा करने से रोकने की प्रार्थना की, देवराज इंद्र की बात सुनकर भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया। ब्राह्माण वेश धारण कर भगवान राजा बलि के यहां भिक्षा मांगने पहुंच गए, जब राज बलि ने ब्राह्माण बने श्री विष्णु से कुछ माँगने को कहां तो उन्होंने भिक्षा में तीन पग भूमि मांग ली। राजा बलि अपनी दानप्रियता के लिए प्रसिद्ध थे, उन्होंने वामन वेश में भगवान को तीन पग भूमि दान में देते हुए कहा कि आप अपने तीन पग से भूमि नाप लीजिए भगवान ने एक पग से स्वर्ग ओर दूसरे पग से पृ्थ्वी को नाप लिया,  जब तीसरे पग के लिए भूमि शेष नहीं रही बलि ने ने अपना सिर भगवान के आगे कर दिया और कहां तीसरा पग आप मेरे सिर पर रख दीजिए, भगवान श्री विष्णु के पैर रखते ही राजा बलि पाताल लोक पहुंच गए। बलि के इस प्रकार वचन का पालन करने पर भगवान विष्णु अत्यन्त प्रसन्न हुए, उन्होंने राजा बलि को कुछ मांगने के लिए कहा। बलि ने भगवान से सदैव अपने सामने रहने का वचन मांग लिया। भगवान विष्णु अपने वचन का पालन करते हुए राजा बलि के द्वारपाल बन गए।

येन बद्धो बलि राजा दानवेन्द्रोमहाबलः । 
तेनत्वांप्रतिबध्नामि रक्षेमाचलमाचल  ।।

जब यह बात लक्ष्मी जी को पता चली तो उन्होंने देवर्षि नारद  को बुलाया और इस समस्या का समाधान पूछा। नारद जी ने उन्हें उपाय बताया कि आप राजा बलि को राखी बांधकर उन्हें अपना भाई बना ले और उपहार में अपने पति भगवन विष्णु को मांग ले। लक्ष्मी जी ने ऐसा ही किया उन्होंने राजा बलि को राखी बांधकर अपना भाई बनाया और जब राजा बलि ने उनसे उपहार मांगने को कहा तो उन्होंने अपने पति विष्णु को उपहार में मांग लिया। इन्ही पौराणिक धारणाओं के तहत आज हम  रक्षाबंधन को बड़े हीं उल्लास पूर्वक पूर्वक मनाते है।

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