धर्मराज युधिष्ठिर बोले – हे भगवान ! आपको कोटि बार प्रणाम है I आपसे निवेदन करता हूं आप कृपा कर चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी का वर्णन कीजिए ।
श्री कृष्ण भगवान बोले कि, हे – राजन ! आप एक पुरानी कथा सुनिये जिसको राजा दिलीप से वशिष्ठजी ने कही थी ।
राजा दिलीप ने पूछा कि गुरुदेव ! चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी का क्या नाम है ?
इसमें किस देवता की पूजा होती है तथा इसकी विधि क्या है ?
सो कहिए ।
महर्षि वशिष्ठ जी बोले – हे राजन ! चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम कामदा है, यह पापों को नष्ट कर देती है । और पुत्र की प्राप्ति होती है । इसके व्रत से कुयोनि छूट जाती है । और अंत में स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
अब मैं इसका माहात्य मैं कहता हूं ध्यानपूर्वक सुनो ।
प्राचीन काल में एक भोगीपुर नामक नगर में पुण्डरीक नामक एक राजा राज्य करता था। वहाँ अनेकों अप्सरा, गंधर्व, किन्नर आदि वास करते थे । उसी जगह ललिता और ललित नाम के दो स्त्री-पुरुष अत्यंत वैभवशाली घर में निवास करते हुए विहार किया करते थे। एक समय राजा पुण्डरीक गन्धर्वी सहित एक सभा में क्रीड़ा कर रहे थे । उस जगह ललित गन्धर्व भी उनके साथ गाना गा रहा था । उसकी प्रियतमा ललिता उस जगह नहीं थी। इससे वह उसको याद करने के कारण अशुद्ध गाना गाने लगा। नामराज कर्कोटक ने राजा पुण्डरीक से इसकी चुगली खादी।
इस पर राजा पुण्डरीक ने ललित को शाप दिया । कि अरे दुष्ट मेरे सामने गाता हुआ भी अपनी स्त्री को स्मरण कर रहा है। इससे तू कच्चे माँस और मनुष्यों को खाने वाला राक्षस होगा। राजा पुण्डरीक के श्राप से वह ललित गन्धर्व उसी समय एक राक्षस हो गया। उसका आठ आयोजन का शरीर हो गया। राक्षस हो जाने पर उसको महान दु :ख मिलने लगे और अपने कर्म का फल भोगने लगा ।
जब ललिता को अपने प्रियतम ललित का ऐसा हाल मालूम हुआ तो वह बहुत दु:खी हुई। वह सदैव अपने पति के उद्धार के लिए सोचने लगी कि मैं कहाँ जाऊँ और क्या करूँ एक दिन वह घूमते – घूमते विंध्याचल पर्वत चली गई।
उसने उस जगह श्रृंगी ऋषि का आश्रम देखा। वह शीघ्र ही आश्रम के पास गई और उस ऋषि के सम्मुख जाकर विनय करने लगी ।
उसे देखकर श्रृंगी ऋषि बोले – हे सुभगे ! तुम कौन हो और यहाँ किस लिए आई हो ?
ललिता बोली -है मुनि ! में वीर धन्वा नामक गंधर्व की कन्या ललिता हूं ! मेरा पति राजा पुण्डरीक के श्राप से एक भयानक राक्षस हो गया है। आप राक्षस योनी छूटने का कोई श्रेष्ठ उपाय बतलाइये ।
तब श्रृंगी ऋषि बोले – अरी गंधर्व कन्या ललिता| अब चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी आने वाली है । उसका नाम कामदा एकादशी है। उसके व्रत करने से मनुष्य के समस्त कार्य शीघ्र ही सिद्ध हो जाते हैं । यदि तू उसके व्रत के पुण्य को अपने पति को देती है तो वह शीघ्र ही राक्षस योनि से छूट जाएगा ।
मुनि के वचनों को सुनकर ललिता ने आनंद पूर्वक उसका व्रत किया और द्वादशी के दिन ब्राह्मणों के सामने व्रत का फल अपने पति को देने लगी और भगवान से इस तरह प्रार्थना करने लगी हे प्रभो ! मैंने जो व्रत किया है वह राक्षस योनी से शीघ्र ही छूट जाय । एकादशी का फल देते ही उसका पति राक्षस की योनि से छूट गया और अपने पुराने स्वरूप को प्राप्त हुआ ।
वह पहले की भांति ललिता के साथ विहार करने लगा। कामदा एकदशी के प्रभाव से ये पहले की भाँति अब अधिक सुंदर हो गए और पुष्प विमान पर बैठकर स्वर्गलोक को चले गये।
हे – राजन ! इस व्रत को विधिपूर्वक करने से सब पाप नष्ट हो जाते हैं । इसके व्रत से मनुष्य ब्रह्महत्या इत्यादि के पाप और राक्षस आदि की योनि से छूट जाते हैं । इसकी कथा वह माहात्म्य के श्रवण व पठन से वाजपेई यज्ञ का फल प्राप्त होता है ।