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वैदिक पंचांग के अनुसार, माघ मास की शुक्ल एकादशी को जया एकादशी कहा जाता है।

धर्मराज युधिष्ठिर बोले- हे भगवान! आपने 7 माघ माह की कृष्ण पक्ष की षटतिला एकादशी का अत्यंत सुंदर वर्णन किया है। अब कृपा कर माघ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी की कथा का वर्णन कीजिये। इस एकादशी का नाम, विधि और देवता क्या और कौन सा है?
श्री कृष्ण भगवान बोले -हे राजन!माघ माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम जया है।
इस एकादशी व्रत से मनुष्य ब्रह्म हत्या के पाप से छूट जाते हैं और अंत में उनको स्वर्ग प्राप्ति होती है। इस व्रत से मनुष्य कुयोनि अर्थात भूत,प्रेत, पिशाच आदि की योनि से छूट जाता है। अतः इस एकादशी के व्रत को विधिपूर्वक करना चाहिए।
हे राजन! मैं एक पौराणिक कथा कहता हूं।
कथा
एक समय इंद्र नाग- लोक में अपनी इच्छाअनुसार अप्सराओं के साथ रमण कर रहा था। गंन्धर्वगान कर रहे थे। वहां गंधर्वों में प्रसिद्ध पुष्पवन्त, उसकी लड़की तथा चित्रसेन की स्त्री मलिन यह सब थे। उस जगह मलिन का लड़का पुष्पवान और उसका लड़का मल्यवान भी था। उस समय पुष्पवती नामक एक गंधर्व स्त्री मल्लवान को देखकर मोहित हो गई और कामबाण से चलायमान होने लगी। उसने रूप, सौंदर्य, हाव- भाव आदि द्वारा मल्यवान को वश में कर लिया। पुष्पवती के सौंदर्य को देखकर मल्यवान भी मोहित हो गया। अतः ये दोनों कामदेव के वश में हो गए परंतु फिर भी इंद्र के बुलाने पर नाच गाने के लिए जाना पड़ा और अप्सराओं के साथ गाना शुरू किया। परंतु कामदेव के प्रभाव से इनका मन न लगा और अशुद्ध गाना गाने लगे।
इनकी भाव भॢगियों को देखकर इंद्र ने इनके प्रेम को समझ लिया और इसमें अपना अपमान समझ इन्हें श्राप दे दिया कि तुम स्त्री पुरुष के रूप में मृत्युलोक में जाकर पिशाच का रूप धारण करो और अपने कर्मों का फल भोगो।
इंद्र का श्राप सुनकर यह अत्यंत दुःखी हुए और हिमाचल पर्वत पर पिशाच बनकर दुःख पूर्वक अपना जीवन व्यतीत करने लगे।रात दिन में उन्हें एक क्षण भी निंद्रा नहीं आती थी इस स्थान पर अत्यंत सर्दी थी। एक दिन पिशाच ने अपनी स्त्री से कहा -न मालूम हमने पिछले जन्म में ऐसे कौन से पाप किए हैं। जिससे हमें इतनी दु:खदायी यह पिशाच योनि प्राप्त हुई है।
देवयोग से एक दिन माघ माह के शुक्ल पक्ष की जया नाम की एकादशी आई। इस दिन दोनों ने कुछ भी भोजन नहीं किया और न कोई पाप कर्म ही किया।इस दिन केवल फल- फूल खाकर ही दिन व्यतीत किया और महान दुःख के साथ पीपल के वृक्ष के नीचे बैठ गये।
वह रात्रि इन दोनों ने एक दूसरे से चिपक कर बड़ी कठिनाई के साथ काटी। सर्दी के कारण उनको रात्रि में निंद्रा भी न आई।दूसरे दिन प्रातः काल होते ही भगवान के प्रभाव से इनकी पिशाच देह छूट गई और अत्यंत सुंदर अप्सरा और गंन्धर्व की देह धारण करके तथा सुंदर वस्त्रों तथा आभूषणों से अलंकृत होकर नाग लोक को प्रस्थान किया।
आकाश में देव गण तथा गंधर्व इनकी स्तुति तथा पुष्प वर्षा करने लगे। नागलोक में जाकर इन दोनों ने देवराज इंद्र को प्रणाम किया। इंद्र को भी इन्हें अपने प्रथम रूप में देखकर महान आश्चर्य हुआऔर इनसे पूछने लगे कि तुमने अपनी पिशाच देह से किस प्रकार छुटकारा पाया सो सब बतलाओ। इस प्रकार मल्यवान बोले कि,हे देव इंद्र!भगवान विष्णु के प्रभाव तथा जया एकादशी के व्रत के पुण्य से हमारी पिशाच देह छूटी है।
इंद्र बोले- हे! मल्यवान एकादशी व्रत करने से तथा विष्णु के प्रभाव से तुम लोग पिशाच की देह को छोड़कर पवित्र हो गए हो और हम लोगों के भी वंदनीय हो गए हो क्योंकि शिव भगत हम लोगों के वंदना करने योग्य हैं। अतः आप को धन्य है! धन्य है!! अब तुम पुष्पवती के साथ जाकर विहार करो।
हे युधिष्ठिर! इस जया एकादशी के व्रत करने से समस्त को योनि छूट जाती हैं। मनुष्य ने इस एकादशी का व्रत किया है उससे मानो सब यज्ञ, तप आदि किए हैं।जो मनुष्य भक्ति पूर्वक जया एकादशी का व्रत करते हैं वह अवश्य ही सहस्त्र वर्ष तक निवास करते हैं।
एकादशी की कथा को पढ़ने, सुनने से भी पुण्य मिलता हैं।

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