सदैव की तरह इस वर्ष भी फाल्गुन शुक्लपक्ष की पूर्णिमा के दिन होलिका-दहन होगा. इस वर्ष होलिका-दहन पर कई दुर्लभ योग के संयोग बन रहे हैं, जो पर्व के साथ-साथ सांसारिक एवं आध्यात्मिक रूप से मंगलकारी साबित हो सकते हैं, इससे दो दिवसीय होली का यह पर्व बहुत खास हो जाएगा। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष 28 मार्च (रविवार) को होलिका दहन एवं 29 मार्च (सोमवार) को रंगों की होली (धुलेंडी) मनाई जाएगी।

इस साल लगभग 500 साल बाद होली पर बन रहे हैं विशेष योग…आइए फिर से जानते हैं विस्तार से….
इस बार होलिका दहन रविवार, 28 मार्च 2021 को होगा और रंगों की होली 29 मार्च 2021 को फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को है। इस दिन बहुत ही शुभ ध्रुव योग का निर्माण हो रहा है। साथ ही 499 साल बाद, या कहें कि लगभग 500 सालों बाद इस होली में एक विशेष दुर्लभ योग भी बन रहा है। जो इससे पहले 03 मार्च, सन् 1521 को निर्मित हुआ था।
29 मार्च को होली में चंद्रमा, कन्या राशि में विराजमान रहेंगे। गुरु और शनि ग्रह अपनी ही राशियों में रहेंगे। इससे पहले इन दोनों ग्रहों का ऐसा संयोग 3 मार्च, सन् 1521 में बना था। गुरु की राशि धनु है जबकि शनि की राशि मकर है। दशकों बाद होली पर सूर्य, ब्रह्मा और अर्यमा की साक्षी भी रहेगी। जो दूसरा विशेष दुर्लभ योग है।
साल 2021 की होली सर्वार्थसिद्धि योग में मनेगी। साथ ही इस दिन अमृतसिद्धि योग भी रहेगा।



होली का इतिहास
होली का वर्णन बहुत पहले से हमें देखने को मिलता है। प्राचीन विजयनगर साम्राज्य की राजधानी हम्पी में १६वीं शताब्दी का चित्र मिला है जिसमें होली के पर्व को उकेरा गया है। ऐसे ही विंध्य पर्वतों के निकट स्थित रामगढ़ में मिले एक ईसा से ३०० वर्ष पुराने अभिलेख में भी इसका उल्लेख मिलता है।


होली पौराणिक तथ्य :
होली का त्योहार भारतवर्ष में अति प्राचीनकाल से मनाया जाता आ रहा है। इतिहास की दृष्टि से देखें तो यह वैदिक काल से मनाया जाता आ रहा है। हिन्दू मास के अनुसार होली के दिन से नए संवत की शुरुआत होती है। चैत्र कृष्ण प्रतिप्रदा के दिन धरती पर प्रथम मानव मनु का जन्म हुआ था। इसी दिन कामदेव का पुनर्जन्म हुआ था। इन सभी खुशियों को व्यक्त करने के लिए रंगोत्सव मनाया जाता है। नरसिंह रूप में भगवान इसी दिन प्रकट हुए थे और हिरण्यकश्यप नामक महासुर का वध कर भक्त प्रहलाद को दर्शन दिए थे।

रंगवाली होली से एक दिन पहले होलिका दहन करने की परंपरा है। फाल्गुन मास की पूर्णिमा को बुराई पर अच्छाई की जीत को याद करते हुए होलिका दहन किया जाता है। कथा के अनुसार असुर हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था, लेकिन यह बात हिरण्यकश्यप को बिल्कुल अच्छी नहीं लगती थी। बालक प्रह्लाद को भगवान कि भक्ति से विमुख करने का कार्य उसने अपनी बहन होलिका को सौंपा, जिसके पास वरदान था कि अग्नि उसके शरीर को जला नहीं सकती। भक्तराज प्रह्लाद को मारने के उद्देश्य से होलिका उन्हें अपनी गोद में लेकर अग्नि में प्रविष्ट हो गयी, लेकिन प्रह्लाद की भक्ति के प्रताप और भगवान की कृपा के फलस्वरूप ख़ुद होलिका ही आग में जल गयी। अग्नि में प्रह्लाद के शरीर को कोई नुक़सान नहीं हुआ।
रंगवाली होली को राधा-कृष्ण के पावन प्रेम की याद में भी मनाया जाता है। कथानक के अनुसार एक बार बाल-गोपाल ने माता यशोदा से पूछा कि वे स्वयं राधा की तरह गोरे क्यों नहीं हैं। यशोदा ने मज़ाक़ में उनसे कहा कि राधा के चेहरे पर रंग मलने से राधाजी का रंग भी कन्हैया की ही तरह हो जाएगा। इसके बाद कान्हा ने राधा और गोपियों के साथ रंगों से होली खेली और तब से यह पर्व रंगों के त्योहार के रूप में मनाया जा रहा है।
यह भी कहा जाता है कि भगवान शिव के श्राप के कारण धुण्डी नामक राक्षसी को पृथु के लोगों ने इस दिन भगा दिया था, जिसकी याद में होली मनाते हैं।


विभिन्न क्षेत्रों में होली का पर्व
कुछ स्थानों जैसे की मध्यप्रदेश के मालवा अंचल में होली के पांचवें दिन रंगपंचमी मनाई जाती है, जो मुख्य होली से भी अधिक ज़ोर-शोर से खेली जाती है। यह पर्व सबसे ज़्यादा धूम-धाम से ब्रज क्षेत्र में मनाया जाता है। ख़ास तौर पर बरसाना की लट्ठमार होली बहुत मशहूर है। मथुरा और वृन्दावन में भी १५ दिनों तक होली की धूम रहती है। हरयाणा में भाभी द्वारा देवर को सताने की परंपरा है। महाराष्ट्र में रंग पंचमी के दिन सूखे गुलाल से खेलने की परंपरा है। दक्षिण गुजरात के आदि-वासियों के लिए होली सबसे बड़ा पर्व है। छत्तीसगढ़ में लोक-गीतों का बहुत प्रचलन है और मालवांचल में भगोरिया मनाया जाता है।
रंग-पर्व होली हमें जाति, वर्ग और लिंग आदि विभेदों से ऊपर उठकर प्रेम व शान्ति के रंगों को फैलाने का संदेश देता है। आप सभी को होली की हार्दिक शुभकामनाएँ!

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