शिवगुरुनन्दन-शङ्करशोभित-कामपदाङ्कित-पीठपते
नृपजनवन्दित विश्वमनोहर सर्वकलाधर पूततनो ।
श्रुतिमतपोषक दुर्मतशिक्षक सज्जनरक्षक कल्पतरो
जय जय हे शशिशेखरदेशिक काञ्चिमठेश्वर पालय माम् ॥ १॥
श्रीधर शशिधर भेदविकल्पन दोषनिवारण धीरमते
रघुपतिपूजित-लिङ्गसमर्चन-जातमनोहर शीलतनो ।
बहुविधपण्डितमण्डल-मण्डित संसदिपूजित वेदनिधे
जय जय हे शशिशेखरदेशिक काञ्चिमठेश्वर पालय माम् ॥ २॥
हिमगिरिसम्भव-दिव्यसरिद्वरशोभि-शिरोवर भक्तिनिधे
निजसकलागम-शास्त्रविमर्शक पण्डितमण्डल-वन्द्यतनो ।
बुधजनरञ्जक दुर्जनमानस-दोषनिवारक-वाक्यरते
जय जय हे a काञ्चिमठेश्वर पालय माम् ॥ ३॥
मधुसमभाषण दुर्मतशोषण सज्जनपोषण धीरमते
शुकमुनितातज-सूत्रविमर्शक-शङ्करबोधित-भाष्यरते ।
निगमसुलक्षणरक्षण-पण्डित भास्वरमण्डलपोषक हे
जय जय हे शशिशेखरदेशिक काञ्चिमठेश्वर पालय माम् ॥ ४॥
रतिपतिसुन्दररूपमनोहर बुधजनमानस-सारस हे
तुहिनधराधर-पुत्र्यभिमोहित-कामकलेश्वर-पूजक हे ।
कनकधराधर-कामुकनन्दित-कामकला-दृढभक्तनिधे
जय जय हे शशिशेखरदेशिक काञ्चिमठेश्वर पालय माम् ॥ ५॥

इति श्रीचन्द्रशेखरेन्द्रसरस्वतीगुरुस्तुतिपञ्चकं सम्पूर्णम् ।

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