चतुर्थी तिथि प्रारम्भ – 11:02 पी शनिवार, 21/08/2020
चतुर्थी तिथि समाप्त – अगस्त 22, 2020 07:57 पी॰ एम॰ शनिवार,
21/08/2020

श्री गणेश चतुर्थी पूजन का शुभ समय
11:06 ए॰ एम॰ से 01:42 पी॰ एम॰ शनिवार, 21/08/2020

वर्जित चन्द्रदर्शन का समय  
09:07 ए॰ एम॰ से 09:26 पी॰ एम॰, शनिवार, 21/08/2020

श्रीगणेश विसर्जन 
मंगलवार, 01/09/2020

भाद्रपद मास
सनातन धर्म के अनुसार वैसे तो भाद्रपद मास को भगवान श्री कृष्ण की पूजा का महीना माना जाता है लेकिन भाद्रपद की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के बाद तो यह मास विघ्नहर्ता भगवान श्रीगणेश की पूजा का माह होता है। मान्यता है कि भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मध्याह्न के समय श्रीगणेश का अवतरण हुआ था। इसी कारण इस दिन को श्रीगणेश चतुर्थी के रुप में मनाया जाता है। श्रीगणेश जी का यह जन्मोत्सव चतुर्थी तिथि से लेकर दस दिनों तक चलता है। अनंत चतुर्दशी के दिन श्रीगणेश जी की प्रतिमा विसर्जन के साथ यह उत्सव संपन्न होता है। महाराष्ट्र में यह त्यौहार विशेष रूप से लोकप्रिय होता है।

श्रीगणेश चतुर्थी पूजा विधि
श्रीगणेश चतुर्थी के दिन प्रातः काल स्नानादि से निवृत्त होकर सोना, तांबा, चांदी, मिट्टी या गोबर से भगवान श्रीगणेश की मूर्ति बनाकर उसकी पूजा करनी चाहिए।
पूजन स्थल को साफ कर गंगा-यमुना या किसी पवित्र नदी के जल से पवित्र करें।
एक चौकी लेकर उस पर पीले रंग का कपड़ा बिछाएं। कुमकुम से उस कपड़े पर स्वास्तिक बनाएं। स्वास्तिक का पूजन चावल और फूल अर्पित कर करें।
भगवान श्रीगणेश की प्रतिमा को उस चौकी पर विराजमान करें। श्रीगणेश जी के मस्तक पर कुमकुम लगाएं। भगवान श्रीगणेश की प्रतिमा पर पीले फूलों की माला अर्पित करें।दीपक जलाकर श्रीगणेश जी का स्मरण करें। उन्हें प्रणाम करके श्रीगणेश स्तुति, श्रीगणेश चालीसा और श्रीगणेश मंत्रों का जप करें। कम से कम 108 जप जरूर करें। ॐ गणेशाय नमः और ॐ गं गणपते नमः का जाप किया जा सकता है।

सामान्य पूजन
पूजन सामग्री (सामान्य पूजन के लिए)-

शुद्ध जल,गंगाजल,सिन्दूर,रोली,रक्षा,कपूर,घी,दही,दूब,चीनी,पुष्प,पान,सुपारी,रूई,प्रसाद (लड्डू श्रीगणेश जी को बहुत प्रिय है)।
विधि- श्रीगणेश जी की मूर्ती सामने रखकर और श्रद्धा पूर्वक उस पर पुष्प छोड़े यदि मूर्ती न हो तो सुपारी पर मौली लपेटकर चावल पर स्थापित करें और आवाहन मंत्र पढकर अक्षत डालें |

ध्यान श्लोक 
शुक्लाम्बर धरं विष्णुं शशि वर्णम् चतुर्भुजम्।
प्रसन्न वदनं ध्यायेत् सर्व विघ्नोपशान्तये।।

षोडशोपचार पूजन –
ॐ सिद्धि विनायकाय नमः ध्यायामि। ॐ सिद्धि विनायकाय नमःआवाहयामि। ॐ सिद्धि विनायकाय नमः आसनं समर्पयामि। ॐ सिद्धि विनायकाय नमः अर्घ्यं समर्पयामि। ॐ सिद्धि विनायकाय नमः। पाद्यं समर्पयामि। ॐ सिद्धि विनायकाय नमः आचमनीयं समर्पयामि। ॐ सिद्धि विनायकाय नमः उप हारं समर्पयामि। ॐ सिद्धि विनायकाय नमः पंचामृत स्नानं समर्पयामि।ॐ सिद्धि विनायकाय नमःवस्त्र युग्मं समर्पयामि। ॐ सिद्धि विनायकाय नमः यज्ञोपवीतं धारयामि। ॐ सिद्धि विनायकाय नमः। आभरणानि समर्पयामि। ॐ सिद्धि विनायकाय नमः गंधं धारयामि। ॐ सिद्धि विनायकाय नमः अक्षतान् समर्पयामि। ॐ सिद्धि विनायकाय नमः पुष्पैः पूजयामि। ॐ सिद्धि विनायकाय नमः प्राण प्रतिष्ठापयामि।


दुर्वा घास के इक्कीस अंकुरों को लेकर भगवान गणेश के नामों के साथ उन्हें चढ़ाएं। यह नाम इस प्रकार हैं –01 ॐ सुमुखाय नमः। 02 ॐ गणाधीशाय नमः। 03 ॐ उमा पुत्राय नमः। 04 ॐ गजमुखाय नमः। 05 ॐ लम्बोदराय नमः। 06 ॐ हर सूनवे नमः। 07 ॐ शूर्पकर्णाय नमः। 08 ॐ वक्रतुण्डाय नमः। 09 ॐ गुहाग्रजाय नमः। 10 ॐ एकदन्ताय नमः। 11 ॐ हेरम्बराय नमः। 12 ॐ चतुर्होत्रै नम:। 13 ॐ सर्वेश्वराय नमः। 14 ॐ विकटाय नमः। 15 ॐ हेमतुण्डाय नमः। 16 ॐ विनायकाय नमः। 17 ॐ कपिलाय नमः। 18 ॐ वटवे नमः। 19 ॐ भाल चन्द्राय नमः। 20 ॐ सुराग्रजाय नमः। 21 ॐ सिद्धि विनायकाय नमः।
इसके बाद भगवान श्रीगणेश की आरती करें। आरती के बाद गणेश जी को इक्कीस, ग्यारह या सात लड्डू या मोदक का भोग लगाएं। अन्य फल-मिठाई का भोग भी लगाया जा सकता है।

श्रीगणेश आरती के लिए यहाँ क्लिक करें।

गणेश चतुर्थी पर कई कथाएं प्रचलित हैं जो उनके जन्म को दर्शाती हैं लेकिन थोड़े बहुत परिवर्तन के बाद सभी कथाओं का सार लगभग समान ही है। यहां दो प्रचलित कथाएं ज्ञानसंजीवनी डिजिटल पत्रिका पाठकों के लिये प्रस्तुत हैं।

भगवान् श्री गणेश की जन्म कथा
माता पार्वती को स्नान करना था लेकिन तब उनकी सेवा और द्वार पर पहरे के लिये वहां कोई मौजूद नहीं था। माना जाता है कि तब उन्होंनें अपनी मैल से (कुछ कथाओं में उबटन से भी कहा गया है) एक बालक को उत्पन्न किया जिसका नाम उन्होंनें श्रीगणेश रखा। बालक श्रीगणेश को द्वारपाल बनाते हुए माता पार्वती ने कहा कि जब तक मैं स्नान करुं तब तक किसी को भी अंदर मत आने देना। अब बालक श्रीगणेश देने लगे पहरा और माता करने लगी स्नान। जब भगवान शिव शंकर द्वार पर पंहुचे और अंदर प्रवेश करने लगे तो बालक श्रीगणेश ने उनका रास्ता रोक लिया। भगवान शिव ने बालक को बहुत समझाया लेकिन बालक माता के आदेश पर अडिग रहे। फिर शिवगण उन्हें रास्ते से हटाने का प्रयास करने लगे लेकिन माता के आशीर्वाद से बालक में इतनी शक्ति तो थी की सभी गण उनसे परास्त हो गये लेकिन भगवान शिव के क्रोध से कोई न बच सका फिर इस छोटे से बालक की क्या बिसात। क्रोधवश आव देखा न ताव भगवान शिव बालक श्रीगणेश के सिर को धड़ से अलग कर अंदर प्रवेश कर चुके थे। उधर माता पार्वती ने स्नानोपरांत देखा कि भगवान शिव आये हुए हैं तो वे जल्द ही दो थालियों में भोजन परोस लायी। भगवान शिव को आश्चर्य हुआ और दो थालियों का कारण पूछा तब उन्होंनें बालक श्रीगणेश के बारे में बताया। इस भगवान शिव को क्रोधवश हुई अपनी गलती का भान हुआ और उन्होंने पूरा वृतांत माता पार्वती को कह सुनाया। पुत्र की मृत्यु के बाद माता पर जो बितती है वही उनके साथ भी बीती पर भगवान तो भगवान कोई इंसान थोड़े हैं उन्होंने कहा मुझे मेरा श्रीगणेश जीवित चाहिये तो चाहिये। तब भगवान शिव ने हाथी के बच्चे के मस्तक को काटकर बच्चे के धड़ पर लगाकर उसमें प्राणों का संचार किया।कुछ कहानियों में यह भी वर्णन है कि जब माता पार्वती को पुत्र की मृत्यु का भान हुआ तो वे शोकाकुल हो गई जिसके कारण पूरी प्रकृति में शक्ति का संचार थम गया। ब्रह्मांड का विनाश होने को आ गया। देवताओं की जान पर बन आयी सभी एकत्रित हुए और माता पार्वती को शांत करने के लिये बालक श्रीगणेश को जीवित करने को लेकर मंत्रणा होने लगी। तब भगवान ब्रह्मा ने उपाय सुझाया कि मृत्युलोक (पृथ्वी) पर जाओ और जो भी पहला माता विहीन नवजात शीशु दिखाई दे उसका सिर ले आओ। तब शिव गण शिशु की तलाश करते हुए पृथ्वी पर पंहुचे बहुत प्रयास के बाद भी कोई माता विहीन शिशु मनुष्यों में उन्हें नहीं मिला तो उन्होनें एक माता से विहीन नवजात हाथी के बच्चे को देखा उन्होंनें जरा भी देर न की और धड़ से शीश को अलग कर ले गये। फिर भगवान श्री हरि विष्णु ने बालक में जीवन का संचार किया। मान्यता है कि यह घटना भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को घटी थी।

 

गणेश चतुर्थी व्रत की कथा
गणेश जन्म के साथ ही चतुर्थी के व्रत के महत्व को दर्शाने वाली भी एक कथा है जो कि इस प्रकार है। होता यूं है कि माता पार्वती ने भगवान शिव से चौपड़ खेलने का प्रस्ताव किया। अब इस प्रस्ताव को भगवान शिव ने सहर्ष स्वीकार भी कर लिया लेकिन संकट की स्थिति यह थी कि वहां पर कोई हार-जीत का निर्णय करने वाला नहीं था। भगवान शिव ने जब यह शंका प्रकट की तो माता पार्वती ने तुरंत अपनी शक्ति से वहीं पर घास के तिनकों से एक बालक का सृजन किया और उसे निर्णायक बना दिया। तीन बार खेल हुआ और तीनों बार ही माता पार्वती ने बाजी मारी लेकिन जब निर्णायक से पूछा गया तो उसने भगवान शिव को विजयी घोषित कर दिया। इससे माता पार्वती बहुत क्रोधित हुई और उन्होंनें बालक को एक पैर से अपाहिज होने एवं वहीं कीचड़ में दुख सहने का शाप दे दिया। बालक ने बड़े भोलेपन और विनम्रता से कहा कि माता मुझे इसका ज्ञान नहीं था मुझसे अज्ञानतावश यह भूल हुई, मेरी भूल माफ करें और मुझे इस नरक के जीवन से मुक्त होने का रास्ता दिखाएं।
बालक की याचना से माता पार्वती का मातृत्व जाग उठा उन्होंनें कहा कि जब यहां नाग कन्याएं श्रीगणेश पूजा के लिये आयेंगी तो वे ही तुम्हें मुक्ति का मार्ग भी सुझाएंगी। ठीक एक साल बाद वहां पर नाग कन्याएं श्रीगणेश पूजन के लिये आयीं। उन नाग कन्याओं ने बालक को श्रीगणेश के व्रत की विधि बतायी। इसके पश्चात बालक ने 12 दिनों तक भगवान श्रीगणेश का व्रत किया तो श्रीगणेश जी ने प्रसन्न होकर उसे ठीक कर दिया जिसके बाद बालक शिवधाम पंहुच गया। जब भगवान शिव ने वहां पंहुचने का माध्यम पूछा तो बालक ने भगवान गणेश के व्रत की महिमा कही। उन दिनों भगवान शिव माता पार्वती में भी अनबन चल रही थी। मान्यता है कि भगवान शिव ने भी श्रीगणेश जी का विधिवत व्रत किया जिसके बाद माता पार्वती स्वयं उनके पास चली आयीं। माता पार्वती ने आश्चर्यचकित होकर भोलेनाथ से इसका कारण पूछा तो भोलेनाथ ने सारा वृतांत माता पार्वती को कह सुनाया। माता पार्वती को पुत्र कार्तिकेय की याद आ रही थी तो उन्होंनें भी श्रीगणेश का व्रत किया जिसके फलस्वरुप कार्तिकेय भी दौड़े चले आये। कार्तिकेय से फिर व्रत की महिमा विश्वामित्र तक पंहुची उन्होंनें ब्रह्मऋषि बनने के लिये व्रत रखा। तत्पश्चात श्रीगणेश जी के व्रत की महिमा समस्त लोकों में लोकप्रिय हो गयी।
कुल मिलाकर उपरोक्त कथाओं का निष्कर्ष यही निकलता है कि भगवान श्रीगणेश विघ्नहर्ता हैं और उनका विधिवत व्रत पालन किया जाये तो व्रती की सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

चंद्र दर्शन दोष से बचाव
प्रत्येक शुक्ल पक्ष चतुर्थी को चन्द्रदर्शन के पश्चात्‌ व्रती को आहार लेने का निर्देश है, इसके पूर्व नहीं। किंतु भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को रात्रि में चन्द्र-दर्शन (चन्द्रमा देखने को) निषिद्ध किया गया है।जो व्यक्ति इस रात्रि को चन्द्रमा को देखते हैं उन्हें झूठा-कलंक प्राप्त होता है। ऐसा शास्त्रों का निर्देश है। यह अनुभूत भी है। इस श्रीगणेश चतुर्थी को चन्द्र-दर्शन करने वाले व्यक्तियों को उक्त परिणाम अनुभूत हुए, इसमें संशय नहीं है। यदि जाने-अनजाने में चन्द्रमा दिख भी जाए तो निम्न मंत्र का पाठ अवश्य कर लेना चाहिए-

सिहः प्रसेनम्‌ अवधीत्‌ सिंहो जाम्बवता हतः।
सुकुमारक मा रोदीस्तव ह्येष स्वमन्तकः॥

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