कलियुग के कलिकाल में मानव का मानसिक रूप से भटक जाना स्वाभाविक है, क्योंकि इस युग में बात ही कुछ ऐसी है ,आइये मैं आपको आज के कलियुगी मानव के जीवनचर्या से साक्षात्कार अपने कुछ पंक्तियों से करवाता हूँ जो वास्तविक रूप से परिचय करवाएंगी।
भटक गया है जीव जगत में माया के अंधियारे में|
नर भी पशुवत काम हैं करता कलियुग के गलियारे में ||
इस पंक्ति में जो शब्द हैं उन पर प्रकाश डालते हु हुए आपको बताना चाहूंगा कि सम्पूर्ण जगत के प्राणी अपने पथ से, अपने कर्तव्य से और अपने कर्मक्षेत्र से भटक गया है ,भटकने के कारण तो अनेक हो सकते हैं परंतु यहाँ केवल माया का जिक्र कर रहा हूँ ,क्योंकि माया एक ऐसी अदृश्यकारी शक्ति है जो सम्पूर्ण सृष्टि को अपने वश में करने का निरंतर प्रयासरत रहती है|
इसके जाल में जो प्राणी एकबार फंस जाता है उसको बाहर निकलना प्रायः कठिन सा हो जाता है,
क्योंकि माया का जाल कोई रस्सी या तार का नहीं हुआ करता, माया तो हमारे मन की ही छाया है ।
इसके वशीभूत मनुष्य पशुवत कार्य भी करने लगते हैं,जैसे धन कमाना और उस धन से अपने विलासिताओं को पूर्ण करना अपने बच्चों की चिंता करना और पडोसी के बच्चों से ईर्ष्या करना ये सब पशुवत व्यवहार इंसानों के आम व्यवहार में आ चुका है ,इस कलियुग रुपी गलियारे में आकर मायारूपी जाल में मानव फंस गया है, भोजनार्थ और वासना को पूर्ण करने हेतु धन का अर्जित करना और अपने बच्चों का पेट भरना ही एक मात्र कर्तव्य रह गया है, निरंतर इसी में लगे रहना मानव जीवन का उद्देश्य रह गया है| शिक्षा,संस्कार और ज्ञान को तो माया ने नष्ट करके मानव को पथभ्रष्ट कर दिया है।
प्रचलित मुद्राके चक्कर में भूल गया है गीता को |रावण सा है भिक्षा करता रोज उठाता सीता को ||
धन दौलत के चक्कर में , रुपये पैसों के चक्कर में पड़कर स्वयं के संस्कार परिवार और अपने शिक्षा को भूल गया है ,कैसे भी धन कमा लेना
ही सोंच रह गया है, उसे कमाने के लिए चाहे खुद को किसी भी स्थिति में लेकर चला जाता है , और उस धन का अनुचित व्यय करता है,उसी धन के अभिमान में पराई स्त्री पर गलत दृष्टकोण भी रखता है ,इस विषय पर मैं चाणक्य नीति का विचार प्रकट करूँगा
आपदर्थे धनं रक्षेद् दारान रक्षेद् धनैरपि!
आत्मानं सततं रक्षेद् दारैरपि धनैरपि!
(विपत्ति के समय काम आने वाले धन की रक्षा करें। धन से स्त्री की रक्षा करें और अपनी रक्षा धन और स्त्री से सदा करें।) धन के लोभ और पराई स्त्री से सदैव अपनी रक्षा करना चाहिए ।
पग -पग पर मदिरालय चलता वाणी जहर के प्याले में |
हे ईश बचाओ मानव को जो नित – नित गिरता नाले में ||
मायावी दुनिया में अपने आप को इतना लिप्त कर लेता है कि उसे स्वयं के चरित्र का ज्ञान और विज्ञान नष्ट हो जाता है और अनेक प्रकार का पीड़ा सहता हुआ मानसिक शान्ति पाने के लिए किसी आध्यात्मिक स्थान पर न जाकर मदिरालय का शरण लेता है , वहाँ पर दिनभर की सभी विपदाओं को स्मरण कर के मदिरा का प्याला पीता है ,उसे वहां कोई सांत्वना नहीं दे सकता है क्योंकि वो जो कुछ भी कर रहा होता है माया के वशीभूत होकर ही करता है, बेहिसाब मदिरा पीने के पश्चात् वहां से गाली अदि अपशब्द बड़बड़ाते हुवे मार्ग में विचरता है , कभी लड़खड़ाते कदमों को सम्हालते हुवे चलता है , कभी लड़खड़ाते हुवे गड्ढे या नाले में गिरता है ,गिरते पड़ते जैसे -तैसे अपने घर पहुचता है वहाँ अपनी धर्मपत्नी के साथ लड़ाई करता है फिर थक कर गिर जाता है,मेरी ईश्वर से करबद्ध प्रार्थना है कि हे देव! हे सृष्टि के रचयिता! अब मानव का कल्याण आप के हाथों में है ,आप शीघ्र ही इसका कल्याण कीजिये।
वेद मे भेद बताये मानव
डूब अधर्म विचारों में |
ढोंग पाखंड है जोरों पर
अब मूर्ख हुवे होंशियारों में ||
हे ईश्वर ! आप त्रिकाल दर्शी है सबकुछ आपको दृष्टिगोचर होता है फिर भी आप किस हेतु से ये देख रहे हैं ये कैसी लीला है प्रभु, मानव मूर्खता वश आपके स्वरुप वेद में भी भेद बताने लगा है क्या इस मानव के नजर में आपके वेद में भी दोष आ गया है ? थोड़ा बहुत इसको जानकर सम्पूर्ण ज्ञानी बनते है और सर्वोच्च गद्दी पर बैठकर वो मूर्ख मानव संसार में सबसे बड़े ज्ञानी कहे जाते है , और जो वास्तविक ज्ञानी है उनको समाज में उनका कोई सम्मान नहीं किया जाता ,उनके भीतर अधर्मी लोगों को नाना प्रकार के दोष दिखाई देते हैं, इसलिए समाज में उन्हें कोई नहीं पूछता । अब तो पाखंडियों के हाथों में ही आपका वेद ज्ञान रह गया है , हे देव! आप ही अब इस मानव का कल्याण कर सकते हैं ।
भूल गया है मानव निज को युवती के अंगारों में |
ना मान यहॉँ सम्मान किसी का असुरों सा व्यवहारों में ||
जगद्गुरु अदि शंकराचार्य ने कहा है
-तरुणस्तावत्तरूणी रक्तः युवा समाज युवती के चक्कर में अपना सर्वस्व खो रहा है उनको किसी बात की सुध बुध नहीं रहती है ,उसके जीवन का लक्ष्य केवल उसे पाना होता है,वो ये भी नहीं जानता कि वो क्या कर रहा है। स्वयं के मार्ग से उस युवती के चक्कर में कितना भटक गया है कि उस कामलोलुप अज्ञानी को उस पथ से हटाना भी मूर्खता करने जैसा प्रतीत होने लगा है .
उस कामांध ने यदि थोड़ी सी ऋषियों और महापुरुषों की जीवनी पढ़ी होती य उनका दिया हुआ दिव्य ज्ञान का स्मरण किया होता तो मुझे विश्वाश है जगद्गुरु शंकराचार्य के उस दिव्य वाक्य पर जो इस प्रकार है
नारीस्तनभरनाभिनिवेशं मिथ्यामायामोहावेशम्।
एतन्मांसवसादि विकारं मनसि विचारय बारम्बारम्॥
उसको इस बात का भान हो जाता कि वास्तविक स्वरूप या वास्तविक संसार क्या है यदि वो इस पंक्ति को ध्यान पूर्वक पढ़ लेता तो
भूल गया उपनिषदों को
जो “शब्द ब्रह्माति वर्तते’’|
अश्लील हुआ अब शब्द यहां पर
गाली आम इशारों में ||
बात -बात पर लड़ना झगड़ना बिना किसी कारण के भी अपशब्दों का व्यवहार करना इत्यादि निम्न कोटि के जानवरों को पालना और उनका गलत उपयोग करना
वेद उपनिषद आदि के संस्कारी बातों को भुलाकर मनचले बातों पर ही चलना अब इस मानव का कर्तव्य राह गया है
यहीं यहीं नही रुकते प्रभु आपके जो शास्त्र स्मृतियां हैं ज्योतिष आदि के जो सूत्र है उनका सूक्ष्म जानकर बाकी के बातों को निराधार बताते है बिना साधना किये ज्योतिषीय कार्य करते है प्रभु अब ये मानव इतना गिर गया है कि कोई उपाय नही है आपके सिवा
हस्तक्षेप भी करते है सब वैदिक ज्ञान विचारों में |
हे देव बचाओ मानव कोअब डूब गया अंधियारों में ||
-आचार्य अभिजीत