भारत में बरगद को पूजनीय स्‍थान प्राप्‍त है। इस संसार में कोई अमर हो या न हो किन्तु बरगद के पेड़ों ने अपनी संरचना के आधार पर मानों अमरता प्राप्‍त कर ली है। ये वृक्ष दशकों और शतकों से कहीं अधिक समय तक जीवित खड़े रहते हैं।
भारत में बरगद के लाखों पेड़ काट दिए जाने के बाद अभी भी लाखों बरगद के पेड़ जीवित बचे हैं। बरगद और पीपल के पेड़ों की सरकारों द्वारा घोर उपेक्षा की गई है। चूंकि हिन्दू इसे पवित्र और पूजनीय वृक्ष मानते हैं इसलिए इसे सरकारी संरक्षण नहीं दिया गया। साम्प्रदायिक तुष्टिकरण के भी कितने रूप हो सकते हैं इसे सहज ही समझा जा सकता है। जो वृक्ष प्रत्येक नगर के सभी पार्कों, बगीचों, चौराहों और सार्वजनिक स्थलों पर लगना चाहिए थे उन्हें लगाना बन्द कर दिया गया। उनके स्थान पर यूकेलिप्टस, गुलमोहर जैसे हानिकारक अथवा अल्प लाभदायक पेड़ों को लगाया गया। गांव की चौपालों, मन्दिरों, बगीचों, विद्यालयों और पुलिस थानों जैसे स्थानों पर ये पेड़ लगाने से जनता को छाया तो मिलती ही है साथ शुद्ध प्राणवायु भी उपलब्ध होती है। ये दोनों वृक्ष दिन-रात आक्सीजन छोड़ते रहते हैं। इसलिए इनको सभी नगरों के सभी पार्कों रेलवे स्टेशनों, बस स्टैण्डों, अस्पतालों, पुलिस थानों, न्यायालयों, विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में लगाया जाना चाहिए।



वैशाख ज्येष्ठ की धूप में चलकर इन वृक्षों के नीचे आकर खड़े होने मात्र से ही प्रकृति के इस वरदान का महत्व समझ में आ जाता है। कहा जाता है कि बरगद की एक डाल इतनी ठंडक देती है जो तीन एसी मिलकर देते हैं। एसी का कपटपूर्ण व्यवहार यह है कि भवन के भीतर यह जितनी ठंडक देता है उससे अधिक गर्मी यह बाहर छोड़ता है। यह उस संस्कृति का वाहक है जहाँ केवल अपना स्वार्थ देखा जाता है। अपने लाभ के लिए पड़ौसियों का सर्वनाश होता हो तो होने दिया जाए।


सभी गाँवों नगरों में इन दस ( पीपल, बरगद, बेल, आम, अशोक, अनार, केला, नरियल, शमी, नीम) वृक्षों को बड़ी संख्या में रोपा जाना चाहिए।

यह बरगद का वृक्ष इस एसी संस्कृति का स्वच्छ और कल्याणकारी विकल्प है। यह अपनी उन्नति के साथ सबकी उन्नति का प्रतीक है। सर्वे भवन्तु सुखिन: और परस्परोपग्रहो जीवनाम् का यह जीवन्त परिचय है।

बरगद के कई हजार पुराने बरगदों में उज्जैन का सिद्धवट, प्रयाग का अक्षयवट, मथुरा-वृंदावन का वंशीवट, गया का गयावट, पंचवटी (नासिक) का पंचवट प्रमुख माना जाता है। इसके सिवाय भी भारत में और भी कई विशालकाय वट वृक्ष पाए जाते हैं। उन्हीं में से एक है ‘द ग्रेट बनियान ट्री’। यह विश्व का सबसे विशालकाय बरगद का पेड़ भारत में ही विद्यमान है। इस विशालकाय वृक्ष को पहली बार देखने से यह कोई छोटा जंगल सा समझ में आता है जिसमें हजारों एक जैसे वृक्ष उगे हुए हैं परन्तु ध्यान से देखने पर समझ में आता है कि यह तो एक ही वृक्ष है जिसकी जटाएँ, जड़ और तने चारों और फैल गए हैं। प्रति वर्ष देश-विदेश से हजारों यात्री इस बरगद को देखने के लिए आते हैं।

यह बरगद का पेड़ कोलकाता के आचार्य जगदीश चंद्र बोस बॉटनिकल गार्डन में है। वर्ष 1787 में जब इस बोटेनिकल गार्डेन को स्थापित किया गया था, उस समय इस बरगद की उम्र 15 से 20 वर्ष की थी। इस गणना से आज इस बरगद की आयु लगभग 250 वर्षों से भी अधिक है। बरगद के पेड़ की शाखाओं से निकली जटाएँ पानी की खोज में नीचे धरती की ओर बढतीं गईं जो कालान्तर में जड़ के रूप में पेड़ को पानी और सम्बल देने लगीं।

वैज्ञानिकों का मानना है कि यह बरगद विश्व का सबसे चौड़ा पेड़ है, जो लगभग 14,500 वर्ग मीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। इस बरगद की 3,372 से अधिक जटाएँ जड़ों का रूप ले चुकी हैं। सबसे सुखद यह कि यह बरगद पक्षियों की 87 अलग-अलग प्रजातियों का सुखमय घर भी है। मूल तने की परिधि धरती से 1.7 मी. की ऊंचाई पर 16.5 मी. थी। वर्तमान में यह लगभग 18.918 वर्ग मी. के क्षेत्र में फैला है। वृक्ष की परिधि लगभग 486 मी. है। इसकी सबसे ऊंची शाखा 24 मी. लंबी है। वर्तमान में धरती तक पहुंचने वाली इसकी स्तम्भ जड़ों की कुल संख्या 3,772 है।
वर्ष 1884 और 1987 में आए 2 चक्रवाती झंझावातों ने इस बरगद को बहुत क्षति पहुंचायी थी। वर्ष 1925 में इस विशाल बरगद की मुख्य शाखा में फंगस रोग लग गया था जिसके कारण मुख्य शाखा को काटना पड़ा था। परन्तु इतना कुछ झेलने के बाद भी ये बरगद आज गर्व से अपने स्थान पर अडिग और अटल खड़ा है। 19वीं शताब्दी की कुछ यात्रा वृत्तातों में इसका उल्लेख अवश्य मिलता है।
इसकी विशालता को देखते हुए गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में इसका नाम अंकित है। इस विशाल बरगद के सम्मान में भारत सरकार ने वर्ष 1987 में डाक टिकट निर्गमित किया था और यह बरगद बॉटनिकल सर्वे ऑफ इंडिया का प्रतीक चिन्ह भी है।
बरगद का वैज्ञानिक नाम फ़ाइकस वेनगैलेंसिस (Ficus bengalensis) और अंग्रेज़ी का नाम ‘बनियन ट्री’ है।


बरगद भारत का राष्‍ट्रीय वृक्ष है। इसे ‘बर’, ‘बट’ या ‘वट’ भी कहते हैं। हिन्दू लोग इस वृक्ष को पूजनीय मानते हैं। इसके दर्शन, स्पर्श तथा सेवा करने से पाप दूर होता है तथा दु:ख और व्याधि नष्ट होती है। अत: इस वृक्ष के रोपने और ग्रीष्म काल में इसकी जड़ों में पानी देने से पुण्य संचय होने की मान्यता है। उत्तर से दक्षिण तक समस्त भारत में वट वृक्ष उत्पन्न होते देखा जाता है। इसकी शाखाओं से बरोह निकलकर जमीन पर पहुँचकर स्तम्भ का रूप ले लेती हैं। इससे पेड़ का विस्तार बहुत शीघ्र बढ़ जाता है।
बरगद के पेड़ को मघा नक्षत्र का प्रतीक माना जाता है। मघा नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति बरगद की पूजा करते है। ऐसे व्यक्ति अपने घर में बरगद के पेड़ को लगाते हैं।

पौराणिक मान्यता
भारत में बरगद के वृक्ष को एक महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। यह एक सदाप्रफुल्ल पेड़ है, जो अपने प्ररोहों के लिए विश्वविख्यात है। इसके पत्तों से दूध जैसा पदार्थ निकलता है। यह पेड़ ‘त्रिमूर्ति’ का प्रतीक है। इसकी छाल में विष्णु, जड़ों में ब्रह्मा और शाखाओं में शिव विराजते हैं।

अग्निपुराण के अनुसार बरगद उत्सर्जन को दर्शाता है। इसीलिए सन्तान के लिए इच्छुक लोग इसकी पूजा करते हैं। इस कारण से बरगद को काटा नहीं जाता है। अकाल में इसके पत्ते पशुओं को खिलाए जाते हैं। अपनी विशेषताओं और लम्बे जीवन के कारण इस वृक्ष को अनश्‍वर माना जाता है। अर्थात इसका विनाश नहीं होता। इसीलिए इस वृक्ष को अक्षयवट भी कहा जाता है।

वामनपुराण में वनस्पतियों की व्युत्पत्ति को लेकर एक कथा भी आती है। आश्विन मास में विष्णु की नाभि से जब कमल प्रकट हुआ, तब अन्य देवों से भी विभिन्न वृक्ष उत्पन्न हुए। उसी समय यक्षों के राजा ‘मणिभद्र’ से वट का वृक्ष उत्पन्न हुआ।

यक्षाणामधिपस्यापि मणिभद्रस्य नारद।
वटवृक्ष: समभवत् तस्मिंस्तस्य रति: सदा।।
वामन पुराण १७/३

स्कन्दपुराण का उल्लेख
यक्ष से निकट सम्बन्ध के कारण ही वट वृक्ष को ‘यक्षवास’, ‘यक्षतरु’, ‘यक्षवारूक’ आदि नामों से भी पुकारा जाता है। पुराणों में ऐसी अनेक प्रतीकात्मक कथाएँ, प्रकृति, वनस्पति व देवताओं को लेकर मिलती हैं। जिस प्रकार अश्वत्थ अर्थात् पीपल को विष्णु का प्रतीक कहा गया, उसी प्रकार इस जटाधारी वट वृक्ष को साक्षात जटाधारी पशुपति शंकर का रूप मान लिया गया है। स्कन्दपुराण में कहा गया है-
अश्वत्थरूपो विष्णु: स्याद्वटरूपो शिवो यत:
अर्थात् पीपलरूपी विष्णु व जटारूपी शिव हैं।

हरिवंश पुराण का उल्लेख
हरिवंश पुराण में एक विशाल वृक्ष का वर्णन आता है, जिसका नाम ‘भंडीरवट’ था और उसकी भव्यता से मुग्ध हो स्वयं भगवान ने उसकी छाया में विश्राम किया।
न्यग्रोधर्वताग्रामं भाण्डीर नाम नामत:।
दृष्ट्वा तत्र मतिं चक्रे निवासाय तत: प्रभु:।।

रामायण का उल्लेख
‘सुभद्रवट’ नाम से एक और वट वृक्ष का भी वर्णन मिलता है, जिसकी डाली गरुड़ ने तोड़ दी थी। रामायण के अक्षयवट की कथा तो लोक प्रचलित है ही। परन्तु वाल्मीकि रामायण में इसे ‘श्यामन्यग्रोध’ कहा गया है। यमुना के तट पर वह वट अत्यन्त विशाल था। उसकी छाया इतनी ठण्डी थी कि उसे ‘श्यामन्योग्राध’ नाम दिया गया। श्याम शब्द कदाचित वृक्ष की विशाल छाया के नीचे के घने अथाह अंधकार की ओर संकेत करता है और गहरे रंग की पत्रावलि की ओर। रामायण के परवर्ती साहित्य में इसका अक्षयवट के नाम से उल्लेख मिलता है। राम, लक्ष्मण और सीता अपने वन प्रवास के समय जब यमुना पार कर दूसरे तट पर उतरते हैं, तो तट पर स्थित इस विशाल वट वृक्ष को सीता प्रणाम करती हैं।

यजुर्वेद, अथर्ववेद, रामायण, महाभारत, शतपथ ब्राह्मण, ऐतरेय ब्राह्मण, महोपनिषद, सुभाषितावली, मनुस्मृति, रघुवंश और रामचरितमानस आदि ग्रंथों में इसका उल्लेख किया गया है। हिन्दुओं में बरगद के सम्बन्ध में अनेक धार्मिक विश्वास और किंवदंतियाँ प्रचलित हैं। जेठ मास की अमावस्या को की जाने वाली ‘वट सावित्री’ की पूजा इसका प्रमाण है। बरगद को पवित्र वृक्ष मानने के कारण इसे काटना पाप समझा जाता है।

बरगद की पूजा का विशेष महत्व-
वृक्षों की पूजा हमारे देश की समृद्ध परम्परा और जीवनशैली का अंग रहा है. वैसे तो प्रत्येक पेड़-पौधे को उपयोगी जानकर उसकी रक्षा करने की परम्परा है परन्तु वटवृक्ष या बरगद की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है

बरगद का धार्मिक महत्व
इस वृक्ष की बड़ी महिमा बताई गई है। यह पेड़ लम्बे समय तक अक्षय रहने के कारण इसे ‘अक्षयवट’ भी कहते हैं। अखण्ड सौभाग्य और आरोग्य के लिए भी वटवृक्ष की पूजा की जाती है।

अक्षयवट के पत्ते पर ही प्रलय के अन्त में भगवान श्रीकृष्ण ने मार्कण्डेय को दर्शन दिए थे। देवी सावित्री भी वटवृक्ष में निवास करती हैं। प्रयाग में गंगा के तट पर स्थि‍त अक्षयवट को तुलसीदासजी ने ‘तीर्थराज का छत्र’ कहा है। वटवृक्ष के नीचे सावित्री ने अपने पति को पुन: जीवित किया था। तब से यह व्रत ‘वट सावित्री’ के नाम से जाना जाता है।

सौभाग्य व सुख-शांति की प्राप्ति
ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या तिथि के दिन वटवृक्ष की पूजा का विधान है। शास्त्रों में कहा गया है कि इस दिन वटवृक्ष की पूजा से सौभाग्य व स्थायी धन और सुख-शांति की प्राप्ति होती है। संयोग की बात है कि इसी दिन शनि महाराज का जन्म हुआ। सावित्री ने यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राण की रक्षा की।

चार तरह के वटवृक्ष
बरगद को वटवृक्ष भी कहा जाता है। सनातन धर्म में वट-सावत्री नाम का एक उत्सव पूर्णतया वट को ही समर्पित है। चार वटवृक्षों का महत्व अधिक बताया गया है। ये हैं- अक्षयवट, पंचवट, वंशीवट, गयावट और सिद्धवट। कहा जाता है कि इनकी प्राचीनता के बारे में कोई नहीं जानता।

भगवान शिव जैसे योगी भी वटवृक्ष के नीचे ही समाधि लगाकर तप साधना करते थे-
तहं पुनि संभु समुझिपन आसन।
बैठे वटतर, करि कमलासन।।
(बालकांड/रामचरितमानस)

आयुर्वेद में बरगद का महत्व
कई तरह रोगों को दूर करने में बरगद के सभी भाग काम आते हैं। इसके फल, जड़, छाल, पत्ती आदि सभी भागों से कई तरह के रोगों का नाश होता है।

पर्यावरण की रक्षा में उपयोगी
वायुमण्डल से कार्बन डाइऑक्साइड ग्रहण करने और ऑक्सीजन छोड़ने की भी इसकी क्षमता अनुपम और अद्वितीय है। यह प्रत्येक दृष्टिकोण से लोगों को जीवन देता है. ऐसे में बरगद की पूजा का विशेष महत्व स्वाभाविक ही है।

  • इसकी छाया सीधे मन पर प्रभाव डालती है , और मन को शान्त बनाये रखती है।
  • अकाल में भी यह वृक्ष हरा भरा रहता है , अतः इस समय पशुओं को इसके पत्ते और लोगों को इसके फल पर निर्वाह करना सरल होता है।

वट वृक्ष की उपासना
** इसकी डालियों और पत्तों से दूध निकलता है जिसका तान्त्रिक प्रयोग होता है।
** वटवृक्ष की जड़ में भगवान् शिव का ध्यान करते हुए नियमित जल अर्पित करना फलदायक होता है।
** शनि या राहु की शान्ति हेतु शनिवार को इस वृक्ष के तने में काला सूत तीन बार लपेटकर दीपक जलाया जाता है। इसके साथ उसके नीचे बैठकर शनि मन्त्र का जाप और प्रार्थना की जाती है।

संतानोत्पत्ति के इच्छुक दम्पति बरगद का पेड़ लगाते हैं। सोमवार को उसकी जड़ में जल अर्पित करते हैं। उसके नीचे बैठकर प्रतिदिन “ॐ नमः शिवाय” मन्त्र का कम से कम ११ माला जाप करते हैं।
बरगद के वृक्ष की उपासना से सुखद दाम्पत्य जीवन की कामना भी लोग करते हैं। इसके लिए अमावस्या के दिन पीली सूत, फूल और जल लेकर प्रातः काल वट वृक्ष के निकट जाते हैं। वहाँ वट वृक्ष के नीचे घी का दीपक जलाकर वृक्ष की जल में जल और पुष्प अर्पित कर नौ परिक्रमा करते हुए पीला सूट तने में लपेटते जाते हैं।
तत्पश्चात सुखद दाम्पत्य जीवन हेतु प्रार्थना करते हैं।

आइए और जानते है दीर्घायु बरगद को :

बरगद के पेड़ की जानकारी: बरगद बहुवर्षीय विशाल वृक्ष है। इस औषधीय पेड़ को सदाप्रफुल्ल वृक्षों (Evergreen tree) की श्रेणी में रखा जाता है। बरगद के पेड़ की विशेषता यह है कि यह पेड़ सैकड़ों वर्षो तक जीवित रह सकता है।
यह एक स्थलीय द्विबीजपत्री एवं सपुष्पक वृक्ष है। इस पेड़ की ऊँचाई लगभग 21 मीटर तक हो सकती है। इसकी पत्तियाँ 10 – 20 सेंटी मीटर लम्बी हो सकती है और इसके तनों से बहुत सी जड़ें भी निकलती हैं। इसका तना सीधा एवं कठोर होता है। इसकी शाखाओं से जड़े निकलकर हवा में लटकती हैं तथा बढ़ते हुए धरती के भीतर धँस जाती हैं और स्तम्भ बन जाती हैं। इन जड़ों को बरोह या प्राप जड़ कहते हैं। इसका फल छोटा गोलाकार एवं लाल रंग का होता है। इसके अन्दर बहुत छोटे आकार का बीज पाया जाता है किन्तु इसका पेड़ बहुत विशाल होता है। इसकी पत्ती चौड़ी, एवं लगभग अण्डाकार होती है। इसकी पत्ती, शाखाओं एवं कलिकाओं को तोड़ने से दूध जैसा रस निकलता है जिसे लेटेक्स अम्ल कहा जाता है। इनके पत्‍तों को तोड़ने पर सफेद और गाढ़ा दूध निकलता है। इसका आकार इतना बड़ा होता है, यदि बरगद का पेड़ वयस्‍क है तो इसकी छाँव में लगभग 5000 लोग बैठ सकते हैं। बरगद का पेड़ धार्मिक महत्‍व रखने के साथ-साथ आयुर्वेद में भी प्रमुख रूप से उपयोग किया जाता है। बरगद के पेड़ के लाभ प्राप्‍त करने के लिए आप इसकी जड़ों, छाल, पत्‍ते, फूल और फलों का उपयोग कर सकते हैं। अर्थात इस पेड़ के सभी हिस्‍से औषधीय गुण से भरपूर होते हैं।

बरगद के पेड़ के पोषक तत्‍व
पोषक तत्‍वों से भरपूर बरगद के पेड़ में बी सीटोस्‍टर (B Sitoster), एस्‍टर, ग्‍लाइकोसाइड्स, ल्‍यूकोसाइनिडिन, क्‍वार्सेटिन, स्‍टेरोल और फ्राइडेलिन (Friedelin) अच्‍छी मात्रा में उपस्थित रहते हैं। इनके सिवाय इसमें बर्गप्‍टन, फ्लेवोनॉयड, गैलेक्‍टोज, इनोजिटोल, ल्‍यूकोप्‍लेयर, रूटीन और टैनिन भी होते हैं। बरगद के पेड़ में केटोन, पॉलिसाक्राइड सिटोस्‍टेरॉल और टॉग्लिक एसिड भी रहते हैं।

बरगद के पेड़ का महत्‍व
भारतीय समाज में बरगद के पेड़ को अमरता का वृक्ष कहा जाता है क्‍योंकि इसके जीवन को बढ़ाने वाली जड़ें बहुत लम्बी होती हैं और वे इनकी शाखाओं को भी सहारा देती हैं। इस प्रकार इनकी जड़ें इस वृक्ष का एक अभिन्‍न भाग होती हैं। बरगद के पेड़ों का आध्‍यात्मिक महत्व भी है। भगवान बुद्ध को भी इसी पेड़ के नीचे ज्ञान प्राप्‍त हुआ था।

बरगद के पेड़ के लाभ
आयुर्वेद में बहुत सी बीमारियों के उपचार के लिए बरगद के पेड़ का उपयोग किया जाता है। इस पेड़ के सभी हिस्‍सों में औषधीय गुण होते हैं। पोषक तत्‍वों की भरपूर मात्रा होने के कारण बरगद के पेड़ के लाभ हमें बहुत से स्‍वास्‍थ्‍य लाभ प्रदान करते हैं।


आशीष कुमार पांडेय
केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय तिरुपति)

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