ज्ञानसंजीवनी

18 नवंबर 2020 दिन बुधवार को नहाय-खाय

19 नवंबर 2020 दिन गुरुवार को खरना (षष्ठी तिथि 19 नवंबर को रात 9:58 से शुरू हो जाएगी और 20 नवंबर को रात 9:29 बजे तक रहेगी)

20 नवंबर 2020 दिन शुक्रवार को डूबते सूर्य का अर्घ्य (सूर्यास्त – 17:26 पर)

21 नवंबर 2020 दिन शनिवार को उगते सूर्य का अर्घ्य (सूर्य को सुबह अर्घ्य देने का समय छह बजकर 48 मिनट है)

छठ पर्व “या छठी पूजा दीपावली के छह दिन बाद कार्तिक शुक्ल पक्ष को मनाये जाने के कारण ही इसे छठ पर्व कहते हैं। इस व्रत के कठिन नियम की वजह से “इसे महापर्व या महाव्रत के नाम से सम्बोधित करते हैं। 
ये महापर्व वैदिक आर्य सँस्कृति की झलक है। षष्ठी पूजा या”छठ पर्व हिन्दू लोक पर्व है। जो प्रवासी भारतीयों की वजह से पूरे देश मे फैल चुका है। 
यह हिन्दू पर्व बिहार झारखण्ड पूर्वी उत्तर प्रदेश” नेपाल तराई क्षेत्र मे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यह पर्व ऋग्वेद के अनुसार सूर्य पूजन, ऊषा पूजन को आर्य परम्परा से जोड़ता हैं। इस महा पर्व का उद्देश्य सर्व कामना पूर्ति है ।ये व्रत सूर्योपासना निर्जला रखा जाता है और लगातार चार दिन तक चलता है। 

पहला दिन नहाय खाय के रुप मे मनाया जाता है। दूसरा दिन गन्ने के शरबत के साथ खरना, तीसरे दिन डूबते सूर्य को  अर्घ्य देना, चौथा दिन उगते  सूर्य को अर्घ्य देना। पवित्र नदी गंगा, जमुना या किसी पवित्र तालाब या पोखर के किनारे ये पूजा की जाती है।  शाम डूबते सूर्य की पूजा के साथ पानी मे उतरते है। सुबह सूर्य उदय की पूजा के बाद पानी से बाहर निकलते है। छठ माता की पूजा सन्तान की रक्षा और लम्बी उम्र के लिए की जाती है। 

मार्कण्डेय पुराण के अनुसार सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी ने अपने आपको छह भागो मे विभाजित कर लिया इनके छठे अंश को सर्वश्रेष्ठ मातृशक्ति रूप में जाना जाता है। ये ब्रम्हाजी की मानस पुत्री है। ये ही भगवान कार्तिकेय की माता हैं। इसलिए कार्तिक मास में इनकी पूजा की जाती है। शिशु जन्म के छठे दिन भी इन्हीं छठी माता की पूजा होती हैं। पुराणों मे इन देवी का नाम आदिशक्ति माँ कात्यायनी है। जो नवरात्रि मे षष्ठी तिथि को पूजी जाती हैं। 

अध्यात्म कथाओं के अनुसार छठी देवी सूर्य देव की बहन है। उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु सूर्य व जल की महत्ता को मानते हुए इन्हें ही साक्षी मानते हुऐ भगवान सूर्य की आराधना और धन्यवाद करते है, और खुशहाल जीवन की कामना करते है। किंवदन्तीयों की माने तो सबसे पहले ये पूजा सीता माता ने लव कुश की रक्षा के लिए की थी, फिर आगे पांचाली ने ये पूजा उत्तरा के गर्भ मे परीक्षित की रक्षा के लिए की थी।

एक राजा थे बडे ही तेजस्वी और न्यायप्रिय, उनकी रानी भी बहुत सुन्दर मृदुभाषी चरित्रवान, उनके राज्य मे कुछ कमी न थी। सिवाय एक सन्तान के। उम्र बढ़ने के साथ राजा की चिंता बढ़ने लगी। जप तप सब कर डाला पर कही कुछ फायदा न हुआ। थक हार कर वो गुरु के पास पहुँचे। गुरू के आदेश से यज्ञ की तैयारी शुरू हो गई। गुरू के आदेश से रानी दासियों के साथ पूजा के लिए घड़े मे पानी लेने गई। गंगा माँ के तट पर पहुँचने पर वो क्या देखती है कि कुछ महिलाएँ जल मे खडी सूर्य उगने की प्रतीक्षा कर रही है। 

रानी अचरज में पड़ गई। वो उनके पास चली गई और हाथ जोड़कर विनम्रता से पूछा -हे देवियों ये पूजा तुम किसके लिए और क्यू कर रही हो। उन औरतों ने छठी माता और सूर्य की पूजा  का सारा व्याख्यान सुना दिया। रानी ने अँजुरी मे गंगाजल ले संकल्प किया की यदि मुझे अगली छठी तक सन्तान प्राप्त हुई तो मे भी ये पूजा करूँगी – और वो महल वापस आ गई।कुछ दिनों मे यज्ञ भी पूरा हो गया। छठी माँ और सूर्य देव के आशीर्वाद से छठी पर्व से पहले ही रानी को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई।राजकुमार के जन्म से पूरे राज्य मे उल्लास फैल गया। रानी अब हर साल छठ पर्व मनाने लगी, और राजा ने सुख समृद्धि के लिए नगर में मे ढिंढोरा पिटवा दिया और छठ पर्व को अनिवार्य घोषित कर दिया।

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