Category: सत्यसाधक संत श्री स्वर्गानंदजी महाराज

केनोपनिषद्- खण्ड १

विद्वानों ने उपनिषद शब्द की व्युत्पत्ति  उप+नि+षद् के रूप में मानी है। इसका अर्थ है कि जो ज्ञान व्यवधान रहित होकर निकट आये, जो ज्ञान विशिष्ट तथा संपूर्ण हो तथा…

शयन के नियम :

सूने तथा निर्जन घर में अकेला नहीं सोना चाहिए। देव मन्दिर और श्मशान में भी नहीं सोना चाहिए। (मनुस्मृति) किसी सोए हुए मनुष्य को अचानक नहीं जगाना चाहिए। (विष्णुस्मृति) विद्यार्थी,…

गोस्वामी तुलसीदास जी के विनय पत्रिका का एक अंश

जयति भूमिजा-रमण-पदकंज-मकरंद-रस- रसिक-मधुकर भरत भूरिभागी।भुवन-भूषण, भानुवंश-भूषण, भूमिपाल- मनि रामचंद्रानुरागी ॥ १ ॥ जयति विबुधेश-धनदादि-दुर्लभ-महा- राज-संम्राज-सुख-पद-विरागी।खड्ग-धाराव्रती-प्रथमरेखा प्रकट शुद्धमति-युवति पति-प्रेमपागी ॥ २ ॥ जयति निरुपाधि-भक्तिभाव-यंत्रित-ह्रदय , बंधु-हित चित्रकुटाद्रि-चारी।पादुका-नृप-सचिव,पुहुमि-पालक परम धरम-धुर-धीर, वरवीर भारी…

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