अर्जुन का शिर किसने काट दिया और जीवित कैसे हुए ??
〰〰🌸〰〰🌸〰〰🌸〰〰🌸〰〰🌸〰〰अर्जुन ने अपने-आपको श्रीकृष्ण को समर्पित कर दिया था| अर्जुन होता हुआ भी, नहीं था, इसलिए कि उसने जो कुछ किया, अर्जुन के रूप में नहीं, श्रीकृष्ण के सेवक के…
〰〰🌸〰〰🌸〰〰🌸〰〰🌸〰〰🌸〰〰अर्जुन ने अपने-आपको श्रीकृष्ण को समर्पित कर दिया था| अर्जुन होता हुआ भी, नहीं था, इसलिए कि उसने जो कुछ किया, अर्जुन के रूप में नहीं, श्रीकृष्ण के सेवक के…
प्रश्न: सुंदरकांड में रावण सहित प्रत्येक राक्षस के घर को मंदिर और विभीषण जी के घर भवन क्यों कहा गया है? मंदिर मंदिर प्रति करि सोधा। देखे जहँ तहँ अगनित…
हिंदू धर्म में एकादशी या ग्यारस एक महत्वपूर्ण तिथि है। एकादशी व्रत की बड़ी महिमा है। एक ही दशा में रहते हुए अपने आराध्य देव का पूजन व वंदन करने…
श्री शतकोटि रामचरितान्तर्गत श्रीमदानन्दरामायणेपञ्चमः सर्गः प्रारम्भः ।विष्णुदास उवाच –श्रीरामरक्षया प्रोक्तं कुशायह्यभिमन्त्रणम् ।कृतं तेनैव मुनिना गुरो तां मे प्रकाशय ॥ १॥ रामरक्षां वरां पुण्यां बालानां शान्तिकारिणीम् ।इति शिष्यवचः श्रुत्वा रामदासोऽब्रवीद्वचः ॥…
श्री शतकोटि रामचरितान्तर्गत श्रीमदानन्दरामायणेपञ्चमः सर्गः प्रारम्भः ।विष्णुदास उवाच –श्रीरामरक्षया प्रोक्तं कुशायह्यभिमन्त्रणम् ।कृतं तेनैव मुनिना गुरो तां मे प्रकाशय ॥ १॥ रामरक्षां वरां पुण्यां बालानां शान्तिकारिणीम् ।इति शिष्यवचः श्रुत्वा रामदासोऽब्रवीद्वचः ॥…
भगवान् के इस पुंसवन-व्रत का जो मनुष्य विधिपूर्वक अनुष्ठान करता है, उसे यहीं उसकी मनचाही वस्तु मिल जाती है। स्त्री इस व्रत का पालन करके सौभाग्य, सम्पत्ति, सन्तान, यश और…
ॐ॥ श्री गुरुभ्यो नमः हरिः ॐ॥॥ श्री बादरायणाभिधेयश्रीवेदव्यासमहर्षिप्रणीतानिश्री ब्रह्मसूत्राणि॥॥ अथ प्रथमोऽध्यायः॥ॐ अथातो ब्रह्मजिज्ञासा ॐ ॥ १.१.१॥ॐ जन्माद्यस्य यतः ॐ ॥ १.१.२॥ॐ शास्त्रयोनित्वात् ॐ ॥ १.१.३॥ॐ तत्तुसमन्वयात् ॐ ॥ १.१.४॥ॐ ईक्षतेर्नाशब्दम्…
वामांगी_महत्व शास्त्रों में पत्नी को वामंगी कहा गया है, जिसका अर्थ होता है बाएं अंग का अधिकारी। इसलिए पुरुष के शरीर का बायां हिस्सा स्त्री का माना जाता है।इसका कारण…
कनक कलस मनि कोपर रूरे। सुचि सुगंध मंगल जल पूरे॥निज कर मुदित रायँ अरु रानी। धरे राम के आगें आनी॥3॥भावार्थ:-पवित्र, सुगंधित और मंगल जल से भरे सोने के कलश और…
मनुमेकाग्रमासीनमभिगम्य महर्षयः ।प्रतिपूज्य यथान्यायमिदं वचनमब्रुवन् ॥ १.१॥ भगवन् सर्ववर्णानां यथावदनुपूर्वशः ।अन्तरप्रभवानां च धर्मान्नो वक्तुमर्हसि ॥ १.२॥ त्वमेको ह्यस्य सर्वस्य विधानस्य स्वयम्भुवः ।अचिन्त्यस्याप्रमेयस्य कार्यतत्त्वार्थवित्प्रभो ॥ १.३॥ स तैः पृष्टस्तथा सम्यगमितोजा महात्मभिः…