Category: गीता से सम्बंधित आलेख

वास्तविक त्याग

त्याग और सन्यास का सामान्यतः यही अर्थ लिया जाता है कि घर छोड़कर,शादी न करके और कर्म का त्याग करके त्यागी या सन्यासी हो जायेंगें।घर छोड़कर कहाँ जाओगे,जहाँ जाओगे क्या…

ज्ञानयोग और कर्मयोग के अनुसार अनासक्त भाव से नियत कर्म करने की श्रेष्ठता का निरूपण :पं. तिवारी हर्षदेव शास्त्री

अर्जुन उवाचज्यायसी चेत्कर्मणस्ते मता बुद्धिर्जनार्दन ।तत्किं कर्मणि घोरे मां नियोजयसि केशव ॥भावार्थ : अर्जुन बोले- हे जनार्दन! यदि आपको कर्म की अपेक्षा ज्ञान श्रेष्ठ मान्य है तो फिर हे केशव!…

अद्वैतवाद

( अद्वैतवाद : संस्कृत शब्द, अर्थात एकत्ववाद )या दो न होना), भारत के सनातन दर्शन वेदांत के सबसे प्रभावशाली मतों में से एक। इसके अनुया यी मानते है कि उपनिषदों…

ज्ञान-मार्ग

ज्ञान योग परमात्मा को देखने की दूसरी विधि है| इसको कुशाग्र बुद्धि युक्त व्यक्ति अपना सकते हैं। गीता में श्री कृष्ण कहते हैं-चतुर्विद्याभजन्ते माँ जनाः सुकृतिनोSर्जुन।आर्तो जिज्ञासुरर्थार्थी ज्ञानी च भरतर्षभ…

कर्म-मार्ग

सिद्धांत वादियों के लिए भगवान श्री कृष्ण ने गीता में ज्ञान मार्ग को सबसे अच्छा साधन बताया है जबकि योगियों के लिए कर्म मार्ग को| सिद्धांतवादी बिना ज्ञान अर्जित किये…

देवकी के गर्भ से जन्मे वे 6 पुत्र कोन थे?

समय द्वापर का था. बड़ी भीषण परिस्थितियां थीं. राज्याध्यक्ष उच्श्रृंखल हो चुके थे। प्रजा परेशान थी. न्याय माँगने वालों को काल कोठरी नसीब होती थी। अराजकता का बोल-बाला था. भोग-विलास…

युधिष्ठिर को कलियुग में घटने वाली घटनाओं का ज्ञान था

पाँचो पाण्डव एवं द्रोपदी जंगल मे छूपने का स्थान ढूंढ रहे थे। उधर शनिदेव की आकाश मंडल से पाण्डवों पर नजर पड़ी शनिदेव के मन विचार आया कि इन 5…

गीता का श्लोक ७/७ एवं अद्वैत मत

गीता का श्लोक ७/७ एवं अद्वैत मत का समर्थन नहीं करता है। यह श्लोक इस प्रकार है।मत्तः परतरं नान्यत्किञ्चिदस्ति धनञ्जय।मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव॥भावार्थहे धनंजय! मुझसे भिन्न दूसरा कोई…

भगवद्गीता – बारहवाँ अध्याय – भक्तियोग प्राक्कथन

भगवद्गीता का बारहवाँ अध्याय भक्तियोग के नाम से प्रसिद्ध है। यह भगवद्गीता के अठारह अध्यायों में से सर्वाधिक लोकप्रिय अध्यायों में परिगणित है। आकार की दृष्टि से भले ही यह…

भगवद्गीता श्लोक ६/१ – एक चिन्तन

अनाश्रित: कर्मफलं कार्यं कर्म करोति य:।स संन्यासी च योगी च न निरग्निर्न चाक्रिय:।। – भगवद्गीता ६/१ श्लोक के दूसरे पद में कहा गया है कि कार्यं कर्म करोति य:। अर्थात…

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