Category: श्रीमद्भगवद्गीता

श्रीमद्भगवद्गीता-अध्याय १०

विभूति योग(भगवान की ऎश्वर्य पूर्ण योग-शक्ति) श्रीभगवानुवाचभूय एव महाबाहो श्रृणु मे परमं वचः ।यत्तेऽहं प्रीयमाणाय वक्ष्यामि हितकाम्यया ॥ (१) भावार्थ : श्री भगवान्‌ ने कहा – हे महाबाहु अर्जुन! तू…

श्रीमद्भगवद्गीता-अध्याय ६

आत्म संयम योगयोग में स्थित मनुष्य के लक्षण श्रीभगवानुवाचअनाश्रितः कर्मफलं कार्यं कर्म करोति यः ।स सन्न्यासी च योगी च न निरग्निर्न चाक्रियः॥ (१) भावार्थ : श्री भगवान ने कहा –…

श्रीमद्भगवद्गीता-अध्याय ४

ज्ञान कर्म सन्यास योग(कर्म-अकर्म और विकर्म का निरुपण) श्री भगवानुवाचइमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम्‌ ।विवस्वान्मनवे प्राह मनुरिक्ष्वाकवेऽब्रवीत्‌ ॥ (१) भावार्थ : श्री भगवान ने कहा – मैंने इस अविनाशी योग-विधा का…

श्रीमद्भगवद्गीता -अध्याय ३

कर्म योग(कर्म-योग और ज्ञान-योग का भेद) अर्जुन उवाचज्यायसी चेत्कर्मणस्ते मता बुद्धिर्जनार्दन।तत्किं कर्मणि घोरे मां नियोजयसि केशव॥ (१)भावार्थ : अर्जुन ने कहा – हे जनार्दन! हे केशव! यदि आप निष्काम-कर्म मार्ग…

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय-१५

पुरुषोत्तम-योगसंसार रूपी वृक्ष का वर्णन श्रीभगवानुवाचऊर्ध्वमूलमधः शाखमश्वत्थं प्राहुरव्ययम्‌ ।छन्दांसि यस्य पर्णानि यस्तं वेद स वेदवित्‌ ॥१ भावार्थ : श्री भगवान ने कहा – हे अर्जुन! इस संसार को अविनाशी वृक्ष…

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय-१२

भक्ति-योगसाकार और निराकार रूप से भगवत्प्राप्ति अर्जुन उवाच एवं सततयुक्ता ये भक्तास्त्वां पर्युपासते ।ये चाप्यक्षरमव्यक्तं तेषां के योगवित्तमाः ॥१ भावार्थ : अर्जुन ने पूछा – हे भगवन! जो विधि आपने…

अद्वैतवाद

( अद्वैतवाद : संस्कृत शब्द, अर्थात एकत्ववाद )या दो न होना), भारत के सनातन दर्शन वेदांत के सबसे प्रभावशाली मतों में से एक। इसके अनुया यी मानते है कि उपनिषदों…

ज्ञान-मार्ग

ज्ञान योग परमात्मा को देखने की दूसरी विधि है| इसको कुशाग्र बुद्धि युक्त व्यक्ति अपना सकते हैं। गीता में श्री कृष्ण कहते हैं-चतुर्विद्याभजन्ते माँ जनाः सुकृतिनोSर्जुन।आर्तो जिज्ञासुरर्थार्थी ज्ञानी च भरतर्षभ…

कर्म-मार्ग

सिद्धांत वादियों के लिए भगवान श्री कृष्ण ने गीता में ज्ञान मार्ग को सबसे अच्छा साधन बताया है जबकि योगियों के लिए कर्म मार्ग को| सिद्धांतवादी बिना ज्ञान अर्जित किये…

देवकी के गर्भ से जन्मे वे 6 पुत्र कोन थे?

समय द्वापर का था. बड़ी भीषण परिस्थितियां थीं. राज्याध्यक्ष उच्श्रृंखल हो चुके थे। प्रजा परेशान थी. न्याय माँगने वालों को काल कोठरी नसीब होती थी। अराजकता का बोल-बाला था. भोग-विलास…

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