Category: दैनिक कर्मकांड संजीवनी

दिशाओं के देवता

ब्रह्मदेव के कर्णों से १० दिशाओं की उत्पत्ति होती है और फिर उनके अनुरोध पर ब्रह्मदेव उनके पतियों के रूप में ८ देवताओं की रचना करते हैं और उन्हें ८…

पूजा करते समय क्या करें क्या न करें

।। अति महत्वपूर्ण बातें पूजा से जुड़ी हुई।। एक हाथ से प्रणाम नही करना चाहिए। सोए हुए व्यक्ति का चरण स्पर्श नहीं करना चाहिए। बड़ों को प्रणाम करते समय उनके…

हेमाद्रि संकल्पः

ॐ स्वस्ति श्री समस्त जगदुत्पत्तिस्थितिलयकारणस्य रक्षाशिक्षाविचक्षणस्य प्रणतपारिजातस्य अशेषपराक्रमस्य श्रीमदनंतवीर्यस्यादिनारायणस्य अचिन्त्यापरिमितशक्त्या ध्रियमाणस्य महाजलौघमध्ये परिभ्रममाणानामनेक कोटिब्रह्माण्डानामेकतमेS व्यक्तमहदहंकारपृथिव्यप्तेजोवाय्वाकाशाद्यावरणैरावृते अस्मिन्महति ब्रह्माण्डखण्डे आधारशक्ति श्रीमदादिवाराहदंष्ट्राग्रविराजिते कूर्मानंतवासुकितक्षक कुलिककर्कोटकपद्म महापद्मशंखाद्यष्टमहानागैर्ध्रियमाणे ऐरावतपुंडरीकवामनकुमुदांजनपुष्पदन्तसार्वभौमसुप्रतीकाष्टदिग्गजोपरिप्रतिष्ठितानामतलवितलसुतलतलालरसातलमहातलपाताललोकानामुपरिभागे भूर्लोकभुवर्लोकस्वर्लोकमहर्लोकजनोलोकतपोलोकसत्यलोकाख्यसप्तलोकानामधोभागेचक्रवालशैलमहावलयनागमध्यवर्तिनो महाकालमहाफणिराजशेषस्य सहस्र फणामणिमण्डलमण्डितेदिग्दन्तिशुण्डादण्डोद्दंडिते अमरावत्यशोकवतीभोगवतीसिद्धवतीगांधर्ववतीकांच्यवन्त्यलकावतीयशोवतीतिपुण्यपूरीप्रतिष्ठिते लोकालोकाचलवलयिते लवणेक्षु…

इस प्रकार करें घर मे रोज की पूजा”

पूजा हमेशा पूर्व या उत्तर की ओर मुँह करके करनी चाहिये, हो सके तो सुबह 6 से 8 बजे के बीच में करें। पूजा जमीन पर आसन पर बैठकर ही…

शौचाचार

   शौचाचार ( मल-मूत्र त्याग ) शौच का अर्थ है पवित्रता। शौच दो प्रकार का होता है, बाह्य शौच एवं आभ्यन्तर शौच। बाह्य शौच-मिट्टी, साबुन, जल आदि द्वारा शरीर के अंगों…

सन्ध्योपासना

॥ॐ श्री गणेशाय नमः ॥ प्रातःकाल की संध्या तारे छिपने के बाद तथा सूर्योदय पूर्व करनी चाहिए। शौच एवं स्नान के बाद शुद्ध वस्त्र पहन कर, पूजा के कमरे या…

॥ कलश स्थापनम् ॥

कलश पर रोली से स्वस्तिक का चिह्न बनाकर गले में मोली बाँधकर कलश को एक और रख लें। कलश स्थापित करने वाली भूमि अथवा पाटे पर कुङ्कुम या रोली से…

पंचांग पूजा प्रयोगः

वैदिक सनातन में प्रायः प्रत्येक संस्कार, व्रतोद्यापन, हवन आदि यज्ञ यज्ञादि में पञ्चाङ्ग पूजन का विधान है। षोडशोपचार या पञ्चोपचार अर्चन का क्रम सामान्यतः प्रचलित है। अतः तत्सबंधी मंत्र दे…

पञ्च भू:संस्कार

वेदी निर्माण-पंचांग पूजन के अनन्तर यथा परिमित तीन कण्ठ युक्त कुण्ड अथवा स्थण्डिल का निर्माण करना चाहिए। कुण्ड के अभाव में बालू से मेखला सहित स्थण्डिल का प्रयोग भी किया…

तर्पण-विधि:

(देवर्षिमनुप्यपितृतर्पणविधि:) प्रातःकाल संध्योपासना करने के पश्चात् बायें और दायें हाथ की अनामिका अङ्गुलि में ‘पवित्रे स्थो वैष्णव्यौ०’ इस मन्त्र को पढते हुए पवित्री (पैंती) धारण करें । फिर हाथ में…

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