कर्मा बाई का खिचड़ी भोग
भगवान श्रीकृष्ण की परम उपासक कर्मा बाई जी जगन्नाथ पुरी में रहती थी और भगवान को बचपन से ही पुत्र रुप में भजती थीं । ठाकुर जी के बाल रुप…
भगवान श्रीकृष्ण की परम उपासक कर्मा बाई जी जगन्नाथ पुरी में रहती थी और भगवान को बचपन से ही पुत्र रुप में भजती थीं । ठाकुर जी के बाल रुप…
हमारी सनातन वैदिक सामाजिक व्यवस्था में वर्णाश्रम धर्म का विशेष महत्व रहा है। वर्ण व्यवस्थाओं में भारत का प्राचीन समाज आज की अपेक्षाकृत कहीं अधिक व्यवस्थित एवं अनुशासित था। वर्णव्यवस्था…
लाल किताब के मत अनुसार जिस भी ग्रह को चौथे घर में भेजना होता है उसको हम हाथ में धारण करते हैं।चौथा भाव माता का होता है। माता के द्वारा…
०३ अगस्त, २०२० को पूर्णिमा तिथि में रक्षा बंधन का त्योहार मनाया जाएगा ।आइए सबसे पहले येजानते है कि पूर्णिमा कब से प्रारम्भ होकर कब तक है =२/अगस्त, २०२० को…
आज के व्यस्ततम युग में अधिकतर यह देखने को मिलता है कि माता-पिता के कहने पर युवा यज्ञोपवीत संस्कार तो करवा लेते हैं लेकिन उसे धारण करके नही रखते या…
किसी नगर में एक सेठ जी रहते थे, उनके घर के नजदीक ही एक मंदिर था। एक रात्रि को पुजारी के कीर्तन की ध्वनि के कारण उन्हें ठीक से नींद…
सनातन वैदिक धर्म व संस्कृति में मनुष्य के 16 संस्कार किये जाने का विधान है। इनमें से एक संस्कार उपनयन संस्कार कहलाता है, जिसे यज्ञोपवीत, जनेऊ, उपवीत, यज्ञसूत्र, व्रतबन्ध, बलबन्ध,…
ब्रह्ममुरारिसुरार्चितलिंगं निर्मलभासित शोभितलिंगम्।जन्मजदु:खविनाशकलिंगं तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम्।।1।। देवमुनिप्रवरार्चितलिंगं कामदहं करुणाकरलिंगम्।रावणदर्पविनाशन लिंगं तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम् ।।2।। सर्वसुगंधिसुलेपित लिंगं बुद्धि विवर्धनकारणलिंगम् ।सिद्धसुरासुरवंदितलिंगं तत्प्रणमामि सदाशिव लिंगम्।।3।। कनकमहामणिभूषितलिंगं फणिपति वेष्टित शोभितलिंगम् ।दक्षसुयज्ञविनाशकलिंगं तत्प्रणमामि सदाशिव लिंगम् ।।4।। कुंकुमचन्दनलेपितलिंगंं…
महिम्न: पारं ते परमविदुषो यद्यसदृशी स्तुतिर्ब्रह्मादीनामपि तदवसन्नास्त्वयि गिर: ।अथावाच्य: सर्व: स्वमतिपरिणामावधि गृणन्ममाप्येष स्तोत्रे हर निरपवाद: परिकर: ।।1।। अतीत: पन्थानं तव च महिमा वाड्मनसयो – रतद्व्यावृत्त्या यं चकितमभिधत्ते श्रुतिरपि ।स कस्य स्तोतव्य: कतिविधगुण:…
रत्नै: कल्पितमासनं हिमजलै: स्नानं च दिव्याम्बरंनानारत्नविभूषितं मृगमदामोदांकितं चन्दनम्।जातीचम्पकबिल्वपत्ररचितं पुष्पं च धूपं तथादीपं देव दयानिधे पशुपते हृत्कल्पितं गृह्यताम्।।1।।हे दयानिधे! हे पशुपते! हे देव! यह रत्ननिर्मित सिंहासन, शीतल…