शबरी भीलन की अथाह श्रद्धा और विश्वास का फल यह था कि…
श्रीरामजी को भक्तिन शबरी की कुटिया तक आना पड़ा।…
और श्रीराम जी ने प्रेमाभक्ति से भरे जूठे बेर भी खाये…

श्रमणा नाम की भीलन, जिसका बाद में नाम शबरी पड़ा , बहुत ही दयालु और प्रेमाभक्ति भावों वाली निश्छल महिला थी।अपने विवाह के समय बारातियों के स्वागत में निरीह पशुओं की बलि की बात सुनकर ,वे व्याकुल हो उठीं और घर से भागकर वन-वन घूमते हुये मंतग ऋषि के आश्रम में जा पहुंचीं और निस्वार्थ भाव से सेवा सुश्रुषा करने लगी ।प्रसन्न होकर मंतग ऋषि के द्वारा दिए वरदान के द्वारा राम दर्शन की अभिलाषा में वह श्रीरामजी की वाट निहारती रहती है।….वह गातीं हैं….

राहों में फूल बिछाऊंगी, जब राम मेरे घर आयेंगे
मैं अंगना गली बुहारूंगी जब राम मेरे घर आयेंगे
मैं इत्र से घर महकाऊंगी जब मेरे घर आयेंगे
मैं राम की वाट निहारूंगी जब राम मेरे घर आयेंगे…
राहों में फूल बिछाऊंगी…

मैं गा गा उन्हें रिझाऊंगी और रो रो उन्हें मनाऊंगी
मैं दिल का हाल सुनाऊंगी मैं अपना हाल बताऊंगी
जब राम मेरे घर आयेंगे…राहों में फूल बिछाऊंगी….

राम हे राम तुम कहां हो,। इस अभागन पर कब कृपा करोगे।
मेरी अंखियां तेरे दर्शन के लिए अति व्याकुल हैं…

शबरी ढूंढ रही किसी ने मेरा राम देखा……राम देखा घनश्याम देखा….
शबरी तेरा राम हमने अयोध्या में देखा
अवतार लेते हुए कि शबरी तेरा राम देखा..
शबरी तेरा राम हमने वन-वन देखा
असुरों को मारते हुये कि शबरी तेरा राम देखा…
शबरी तेरा राम हमने कुटिया में देखा
दर्शन देते हुए कि शबरी तेरा राम देखा…

कई वर्षों की तपस्या के बाद शबरी की कुटिया पे श्रीराम जी
आ पहुंचे,और भक्तिमती शबरी के प्रेम में पगे भावों और बेरों का भोग लगाया।
शबरी माता की निस्वार्थ भक्ति से प्रसन्न होकर श्रीरामजी ने उन्हें नवधा भक्ति का उपदेश दिया….

श्रवणं ,कीर्तनम् विष्णो:, स्मरणम्,पादसेवनम्।
अर्चनम् ,वंदनम्, दास्य, सख्यम्,आत्मनिवेदनम्।।
बाबा तुलसीदास जी द्वारा श्रीरामचरितमानस में अनूठा वर्णन है नवधाभक्ति का…

नवधा भक्ति कहऊं तोहि पाहीं,सावधान सुनु धरूं मन माहीं।।
प्रथम भगति संतन्ह कर संगा,,दूसरि रति मम कथा प्रसंगा।
दोहा–
गुरु पद पंकज सेवा,तीसरि भगति अमान।
चौथि भगत मम गुन गुन, करइ कपट तजि गान।।

मंत्र जाप मम दृढ़ विश्वासा, पंचम भजन सो वेद प्रकासा
छठ दम सील विरति बहु कर्मा ,निरत निरंतर सज्जन धर्मा
सातवं सम मोहि मय जग देखा, मोते संत अधिक करि लेखा।,
आठवं जथा लाभ संतोषा, सपनेहुं नाहिं देखईं पर दोषा,
नवम् सरल सब सन छलहीना, मम भरोसा हियं हरष ना दीना।।

इस प्रकार माता शबरी ने श्रीराम जी के सम्मुख ही उनका दर्शन करते करते अपने तत्त्व को परमतत्व में विलीन कर लिया।।

बोलो हनुमंतलाल सहित सियाराम जी की जय।

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