Author: ज्ञानसंजीवनी फाउंडेशन

रामरक्षा आनन्दरामायणान्तर्गता

श्री शतकोटि रामचरितान्तर्गत श्रीमदानन्दरामायणेपञ्चमः सर्गः प्रारम्भः ।विष्णुदास उवाच –श्रीरामरक्षया प्रोक्तं कुशायह्यभिमन्त्रणम् ।कृतं तेनैव मुनिना गुरो तां मे प्रकाशय ॥ १॥ रामरक्षां वरां पुण्यां बालानां शान्तिकारिणीम् ।इति शिष्यवचः श्रुत्वा रामदासोऽब्रवीद्वचः ॥…

पुंसवन-व्रत की विधि

भगवान् के इस पुंसवन-व्रत का जो मनुष्य विधिपूर्वक अनुष्ठान करता है, उसे यहीं उसकी मनचाही वस्तु मिल जाती है। स्त्री इस व्रत का पालन करके सौभाग्य, सम्पत्ति, सन्तान, यश और…

ब्रह्मसूत्राणि

ॐ॥ श्री गुरुभ्यो नमः हरिः ॐ॥॥ श्री बादरायणाभिधेयश्रीवेदव्यासमहर्षिप्रणीतानिश्री ब्रह्मसूत्राणि॥॥ अथ प्रथमोऽध्यायः॥ॐ अथातो ब्रह्मजिज्ञासा ॐ ॥ १.१.१॥ॐ जन्माद्यस्य यतः ॐ ॥ १.१.२॥ॐ शास्त्रयोनित्वात् ॐ ॥ १.१.३॥ॐ तत्तुसमन्वयात् ॐ ॥ १.१.४॥ॐ ईक्षतेर्नाशब्दम्…

पत्नी वामांगी क्यों कहलाती है?

वामांगी_महत्व शास्त्रों में पत्नी को वामंगी कहा गया है, जिसका अर्थ होता है बाएं अंग का अधिकारी। इसलिए पुरुष के शरीर का बायां हिस्सा स्त्री का माना जाता है।इसका कारण…

एकादशी एवं उसका माहात्म्य

हिंदू धर्म में एकादशी या ग्यारस एक महत्वपूर्ण तिथि है। एकादशी व्रत की बड़ी महिमा है। एक ही दशा में रहते हुए अपने आराध्य देव का पूजन व वंदन करने…

श्रीराम विवाह एक सुन्दर प्रसंग

कनक कलस मनि कोपर रूरे। सुचि सुगंध मंगल जल पूरे॥निज कर मुदित रायँ अरु रानी। धरे राम के आगें आनी॥3॥भावार्थ:-पवित्र, सुगंधित और मंगल जल से भरे सोने के कलश और…

स्वस्तिक का महत्व ?

स्वास्तिक का चिन्ह किसी भी शुभ कार्य को आरंभ करने से पहले हिन्दू धर्म में स्वास्तिक का चिन्ह बनाकर उसकी पूजा करने का महत्व है। मान्यता है कि ऐसा करने…

मनुस्मृति अध्याय १

मनुमेकाग्रमासीनमभिगम्य महर्षयः ।प्रतिपूज्य यथान्यायमिदं वचनमब्रुवन् ॥ १.१॥ भगवन् सर्ववर्णानां यथावदनुपूर्वशः ।अन्तरप्रभवानां च धर्मान्नो वक्तुमर्हसि ॥ १.२॥ त्वमेको ह्यस्य सर्वस्य विधानस्य स्वयम्भुवः ।अचिन्त्यस्याप्रमेयस्य कार्यतत्त्वार्थवित्प्रभो ॥ १.३॥ स तैः पृष्टस्तथा सम्यगमितोजा महात्मभिः…

पाठविधिः

साधक स्नान करके पवित्र हो आसन-शुद्धि की क्रिया सम्पन्न करके शुद्ध आसन पर बैठे; साथ में शुद्ध जल, पूजन-सामग्री और श्रीदुर्गासप्तशती की पुस्तक रखे। पुस्तक को अपने सामने काष्ठ आदि…

अथ सप्तश्‍लोकी दुर्गा

शिव उवाच देवि त्वं भक्तसुलभेसर्वकार्यविधायिनी।कलौ हि कार्यसिद्ध्यर्थमुपायंब्रूहि यत्नतः॥ देव्युवाचश्रृणु देव प्रवक्ष्यामिकलौ सर्वेष्टसाधनम्।मया तवैव स्नेहेनाप्यम्बास्तुतिः प्रकाश्यते॥ विनियोगःॐ अस्य श्रीदुर्गासप्तश्‍लोकीस्तोत्रमन्त्रस्यनारायण ऋषिः,अनुष्टुप्‌ छन्दः,श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वत्यो देवताः,श्रीदुर्गाप्रीत्यर्थं सप्तश्‍लोकीदुर्गापाठे विनियोगः। ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसिदेवी भगवती हि सा।बलादाकृष्य मोहायमहामाया…

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