ज्ञानसंजीवनी

अनन्त चतुर्दशी मंगलवार, सितम्बर 1, 2020 को

अनन्त चतुर्दशी पूजा मुहूर्त – 05:59 ए॰ एम॰ से 09:38 ए॰ एम॰


अवधि – 03 घण्टे 39 मिनट्स


चतुर्दशी तिथि प्रारम्भ – अगस्त 31, 2020 को 08:48 ए एम बजे


चतुर्दशी तिथि समाप्त – सितम्बर 01, 2020 को 09:38 ए एम बजे

अनंत चतुर्दशी के दिन अनंत देव की पूजा की जाती हैं, इसे विपत्ति से उभारने वाला व्रत कहा जाता हैं। इस दिन भगवान अनंत देव को सूत्र चढ़ाया जाता हैं, पूजा के बाद उस सूत्र को रक्षासूत्र अथवा अनंत देव के तुल्य मानकर हाथ में पहना जाता है। माना जाता हैं कि यह सूत्र रक्षा करता हैं।

व्रत कथा
पौराणिक युग में सुमंत नाम का एक ब्राम्हण था, जो बहुत विद्वान था। उसकी पत्नी भी धार्मिक स्त्री थी, जिसका नाम दीक्षा था। सुमंत और दीक्षा की एक संस्कारी पुत्री थी, जिसका नाम सुशीला था। सुशीला के बड़े होते होते उसकी माँ दीक्षा का स्वर्गवास हो गया।
सुशीला छोटी थी, उसकी परवरिश को ध्यान में रखते हुए सुमंत ने कर्कशा नामक स्त्री से दूसरा विवाह किया। कर्कशा का व्यवहार सुशीला के साथ अच्छा नहीं था, लेकिन सुशीला में उसकी माँ दीक्षा के गुण थे, वो अपने नाम के समान ही सुशील और धार्मिक प्रवत्ति की थी।
कुछ समय बाद जब सुशीला विवाह योग्य हुई, तो उसका विवाह कौण्डिन्य ऋषि के साथ किया गया। कौण्डिन्य ऋषि और सुशीला अपने माता पिता के साथ उसी आश्रम में रहने लगे. माता कर्कशा का स्वभाव अच्छा ना होने के कारण सुशीला और उनके पति कौण्डिन्य को आश्रम छोड़ कर जाना पड़ा।
जीवन बहुत कष्टमयी हो गया। ना रहने को जगह थी और ना ही जीविका के लिए कोई भी जरिया दोनों काम की तलाश में एक स्थान से दुसरे स्थान भटक रहे थे तभी वे दोनों एक नदी तट पर पहुँचे, जहाँ रात्रि का विश्राम किया. उसी दौरान सुशीला ने देखा वहाँ कई स्त्रियाँ सुंदर सज कर पूजा कर रही थी और एक दुसरे को रक्षा सूत्र बाँध रही थी। सुशीला ने उसने उस व्रत का महत्व पूछा। वे सभी अनंत देव की पूजा कर रही थी और उनका रक्षा सूत्र जिसे अनंत सूत्र कहते हैं वो एक दुसरे को बाँध रही थी, जिसके प्रभाव से सभी कष्ट दूर होते हैं और व्यक्ति के मन की इच्छा पूरी होती हैं। सुशीला ने व्रत का पूरा विधान सुनकर उसका पालन किया और विधि विधान से पूजन कर अपने हाथ में अनंत सूत्र धारण किया और अनंत देव से अपने पति के सभी कष्ट दूर करने की प्रार्थना की।
समय बीतने लगा ऋषि कौण्डिन्य और सुशीला का जीवन सुधरने लगा. अनंत देव की कृपा से धन धान्य की कोई कमी ना थी
अगले वर्ष फिर से अनंत चतुर्दशी का दिन आया सुशीला ने भगवान को धन्यवाद देने हेतु फिर से पूजा की और सूत्र धारण किया.नदी तट से वापस आई. ऋषि कौण्डिन्य ने हाथ में बने सूत्र के बारे में पूछा, तब सुशीला ने पूरी बात बताई और कहा कि यह सभी सुख भगवान अनंत के कारण मिले हैं. यह सुनकर ऋषि को क्रोध आ गया, उन्हें लगा कि उनकी मेहनत के श्रेय भगवान को दे दिया और उन्होंने धागे को तोड़ दिया इस तरह से अपमान के कारण अनंत देव रुष्ठ हो गए और धीरे- धीरे ऋषि कौण्डिन्य के सारे सुख, दुःख में बदल गए और वो वन- वन भटकने को मजबूर हो गए. तब उन्हें एक प्रतापी ऋषि मिले, जिसने उन्हें बताया कि यह सब भगवान के अपमान के कारण हुआ हैं. तब ऋषि कौण्डिन्य को उनके पाप का आभास हुआ और उन्होंने विधि विधान से अपनी पत्नी के साथ अनंत देव का पूजन एवम व्रत किया। यह व्रत उन्होंने कई वर्षो तक किया, जिसके 14 वर्ष बाद अनंत देव प्रसन्न हुये और उन्होंने ऋषि कौण्डिन्य को क्षमा कर उन्हें दर्शन दिये, जिसके फलस्वरूप ऋषि और उनकी पत्नी के जीवन में सुखों ने पुनः स्थान बनाया
अनंत चतुर्दशी व्रत की कहानी भगवान कृष्ण ने पांडवो से भी कही थी, जिसके कारण पांडवो ने अपने वनवास में प्रति वर्ष इस व्रत का पालन किया था जिसके बाद उनकी विजय हुई थी।
अनंत चतुर्दशी का पालन राजा हरिशचन्द्र ने भी किया था, जिसके बाद उनसे प्रसन्न होकर उन्हें अपना राज पाठ वापस मिला था।

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