श्री शनिदेव भगवान सूर्यनारायण के पुत्र हैं और पिता-पुत्र में शत्रुतापूर्ण व्यवहार है। शनिदेव सूर्यनारायणके शत्रु हैं शनिदेव एक ऐसे ग्रह हैं जिनके प्रभाव से संसार का कोई प्राणी बच नहीं पाता है। सूर्य, मंगल,राहु-केतु का असर तो कुछ समय का होता है वे एक-आध बार अपना स्वरूप दिखाते हैं परंतु शनिदेव समय-समय पर अपना रूप दिखलाते ही रहते हैं कभी महादशा में तो कभी अंतर्दशा में तो कभी गोचर में तो कभी ढैया में तो कभी साढ़े सात साल की साढ़ेसाती में शनिदेव का प्रकोप मनुष्य जीवन पर पड़ता ही रहता है । शनिदेव एक ऐसे ग्रह है जो रंक को राजा और राजा को रंक बना देते हैं शनिदेव आजकल मकर राशि में स्थित है इसी प्रकार जब किसी व्यक्ति की जन्म राशि में लग्न में दूसरे भाव में एवं बारहवें भाव में शनि देव आ जाए तो उसे साढ़ेसाती लग जाती है जैसे कि शनिदेव अभी मकर राशि में स्थित है तो धनु राशि को शनिदेव का आखरी ढैया होगा और मकर राशि को शनि देव का दूसरा ढैया होगा और कुंभ राशि को शनि देव का पहला ढैया होगा ढैया ढाई वर्ष के समय को कहते हैं जिन व्यक्तियों की जन्मपत्रिका में शनिदेव की स्थिति अच्छी होती है उन्हें शनिदेव विशेष हानि नहीं पहुंचाते हैं बल्कि लाभ ही पहुंचाते हैं कुछ लग्न ऐसे भी होते हैं जिनमें शनिदेव कारक होते हैं और वहां भी शनिदेव विशेष हानि नहीं पहुंचाते हैं जो राशियां शनिदेव की शत्रु है या फिर जिन राशियों में शनिदेव मार्केश बन जाते हैं अथवा जो लग्न शनि देव के शत्रु है उन्हें शनिदेव हानि पहुंचाते हैं कर्क ,सिंह,धनु और मकर लग्न वालों के लिए शनिदेव मार्केश बन जाते हैं मगर शनिदेव मकर राशि के स्वामी होने से मकर लग्न वालों को ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचाते हैं परंतु कर्क और सिंह लग्न वालों के लिए शनि देव मार्केश बन जाते हैं और मृत्यु तुल्य कष्ट प्रदान करते हैं जब शनिदेव की साढ़ेसाती अथवा चौथी और आठवीं ढैया चल रही हो या फिर शनिदेव की महादशा या अंतर्दशा चल रही हो कारण कि शनि देव सूर्यनारायण और चंद्रदेव के शत्रु है ग्रहों के अच्छे और बुरे प्रभावों का असर जड़-चेतन दोनों पर पड़ता है कई बार अधिकांश ज्योतिषी यह निर्णय नहीं कर पाते हैं कि अमुक व्यक्ति पर शनि देव की साढ़ेसाती का असर किस पहलू पर होगा उसके लिए कुछ मुख्य बातें इस प्रकार ध्यातव्य है:-
यदि गोचर में शनिदेव चतुर्थ स्थान में स्थित हो तो मकान,माता जनता का सुख, संतान,शिक्षा और छोटे भाई, प्रेमी सम्बन्धी पर आघात होता है सुख का नाश व्याधि बंधु विरोध दूर देश गमन और बड़ी भारी चिंताएं करवाता है
शनिदेव गोचर में अष्टम स्थान में स्थित हो तो दैनिक रोजगार व्यापार पति अथवा पत्नी का सम्मान, भाग्य धर्म-कर्म और सेहत पर असर होता है दूर देश गमन,बंधु विरोध, व्याधि और बड़ी भारी चिंता भी करवाता है
शनिदेव लग्न में अथवा दूसरे और बारहवीं स्थित में हो तो मानहानि, झगड़ा, मुकदमा ,व्यर्थ धन-हानि, सेहत तथा दिमागी हालत पर असर पड़ता है व्यक्ति का धन बीमारी ,मुकदमेबाजी अथवा व्यर्थ के कार्यों में खर्च होता है।
शनिदेव की गति मुंह से गुहा में, गुहा से नेत्रों में ,नेत्रों से मस्तक में, मस्तक से बाएं हाथ में ,बाएं हाथ से हृदय में ,हृदय से पैर में, पैरों से दाहिने हाथ में होती है।
साढ़े सात साल की शनिदेव का विचार:-
शनिदेव बारहवे में आते हैं तब नेत्रों में ,पहले में पेट में और दूसरे शनिदेव पैरों में आते हैं।
शनिदेव के पायो का विचार:-
पहला,छठा और ग्यारवे शनिदेव सोने के पाये में आते हैं। दूसरे, पांचवें और नवे शनिदेव चांदी के पाये से आते हैं ।तीसरे,सातवें और दसवें शनिदेव तांबे के पाये से आते हैं तथा चौथे,आठवें और बारहवे शनिदेव लोहे के पाये आते हैं। सोने के पाये में शनिदेव सुख प्रदान करते हैं। चांदी के पाये में शनिदेव सौभाग्यशाली बनाते हैं। तथा तांबे के पाये में शनिदेव सम रहते हैं ना अच्छा न बुरा।अंत में लोहे के पाये में शनिदेव धन का नाश करते हैं।
वर्तमानमें राशिनुसार फलादेश:-
वर्तमान गणना में मेष राशि मे दसवे शनि से मानसिक दुःख सम्भव
वृषभ राशि मे नवम शनि सुख साधन प्राप्ति सम्भव
मिथुन राशि अष्टम शनि शत्रु वृद्धि सम्भव
कर्क राशि सप्तम शनि बहुविध दोषकारक सम्भव
सिंह राशि छठे शनि लक्ष्मी प्राप्ति।
कन्या राशि पंचम शनि पुत्र के दुख की वृद्धि सम्भव
तुला राशि चतुर्थ शनि शत्रु वृद्धि सम्भव
वृश्चिक राशि तीसरे शनि धन लाभ।
धनु राशि दूसरा शनि वित्त नाश सम्भव
मकर राशि पहला शनि सर्व नाश
कुम्भ राशि बारहवे शनि अति अनर्थकारी सम्भव
मीन राशि ग्यारवे शनि धन लाभ सम्भव
अगर किसी भी व्यक्ति को शनि की साढ़ेसाती चल रही है या महादशा-अंतर्दशा चल रही हो अथवा चौथी , आठवीं ढैया चल रही हो तो योग्य ज्योतिषाचार्य से संपर्क करके उनकी सलाह से शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए विधि-विधान से उपाय करने चाहिए।
शनि का चक्र और लाल किताब
कुंडली के प्रत्येक भाव या खाने अनुसार शनि के शुभ-अशुभ प्रभाव को लाल किताब में विस्तृत रूप से समझाकर उसके उपाय बताए गए हैं। यहाँ प्रस्तुत है प्रत्येक भाव में शनि की स्थित और सावधानी के बारे में संक्षिप्त और सामान्य जानकारी।
(1) प्रथम भाव : यहाँ पर स्थित शनि यदि शुभ है तो व्यक्ति सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन की इच्छा रखता है। लोककल्याण के लिए सदा तत्पर रहता है। राजनेता या अधिकारी बन सकता है।
सावधानी : दगाबाजी और झगड़ालू प्रवृत्ति से बचें। शिक्षा और नौकरी के प्रति गंभीर व जिम्मेदार रहें। पत्नी और माँ का ध्यान रखें।
(2) द्वितीय भाव : यहाँ स्थित शनि को गुरु की शरण में कहा गया है। अर्थात गुरु की बुद्धि से चलने वाला। उसे जमीन-जायदाद से लाभ मिल सकता है। धार्मिक प्रवृत्ति वाला रहेगा।
सावधानी: जुआ, सट्टा, लॉटरी के चक्कर में न पड़ें। वैराग्य भाव न रखें। सदा प्रसन्नचित्त रहें।
(3) तृतीय भाव : यहाँ स्थित शनि यदि शुभ हो तो गंभीर, शांतचित्त और विवेकशील होता है। धर्मपरायण और गुप्त विद्या के प्रति रुचि रखने वाला। दीर्घायु होता है।
सावधानी : छोटे भाई और बहनों का ध्यान रखें। पूर्व या दक्षिण दिशा में मकान का प्रवेश द्वार न रखें। दरवाजे के पास पत्थर गढ़ा या रखा हुआ न हो। मकान के आखिरी में यदि अँधेरी कोठरी हो तो उसमें रोशनी के रास्ते न निकालें।
(4) चतुर्थ भाव : यहाँ स्थित शनि को पनियारा साँप कहा गया है। पूर्वजों की सम्पत्ति प्राप्त हो सकती है। जमीन-जायदाद और भवन निर्माण के कार्य में लाभ।
सावधानी: पराई स्त्री के चक्कर में न रहें। रात में दूध न पिएँ। माता-पिता का ध्यान रखें।
(5) पंचम भाव : यहाँ स्थित शनि को संतान के लिए अच्छा नहीं माना गया है। इसे बच्चे खाने वाला साँप कहा गया है। शनि को पंचम भाव में बहुत ही बुरा माना जाता है लेकिन सावधानी और उपाय से इसका बुरा असर खत्म हो जाता है।
सावधानी : मकान न बनवाएँ बल्कि बने-बनाए खरीद लें या परदादाओं के मकान में ही रहें। दस बादाम धर्म स्थान पर चढ़ाएँ और उसमें से पाँच लाकर घर में रखें। शनि के मंदे कार्य अर्थात जुआ, सट्टा, शराब, वेश्या से संपर्क और ब्याज का धंधा आदि न करें।
(6) षष्ठ भाव : किस्मत लिखने का मालिक। भैंस पालना या दूध का धंधा लाभदायक हो सकता है। सम्पत्ति, यश और अधिकार में से कोई एक चीज ही मिलेगी।
सावधानी : मकान न बनवाएँ। शराब न पिएँ।
(7) सप्तम भाव: यहाँ स्थित शनि को कलमकार कहा गया है। जीवन साथी मिलने में देरी हो सकती है।
सावधानी : पराई स्त्री के मोह में न रहें। बाप-दादाओं के मकान में ही रहें। शराब न पिएँ।
(8) अष्टम् भाव : यह शनि का मुख्यालय है। व्यक्ति दीर्घायु होता है।
सावधानी: शनि के मंदे कार्य अर्थात जुआ, सट्टा, शराब, वेश्या से संपर्क और ब्याज का धंधा आदि न करें।
(9) नवम भाव : यदि यहाँ शनि है तो व्यक्ति ऊँचे दर्जे का शिक्षित होगा। प्रकांड पंडित माना जाएगा। भरापूरा परिवार होगा।
सावधानी : दो से ज्यादा मकान न रखें। अँधेरी कोठरी में रोशनदान या रोशनी के रास्ते न बनाएँ।
(10) दशम भाव : यहाँ स्थित शनि को कोरा कागज समझो अर्थात तुमने उस पर जैसा लिख दिया वैसा जीवन हो जाएगा। किस्मत को जगाने वाला, लेकिन शर्त यह कि शनि के मंदे कार्य न करें।
सावधानी : दूसरों का भला करने की न सोंचे। धर्मात्मा बनने से काम नहीं चलेगा। शराब कतई न पिएँ।
(11) एकादश भाव : यदि यहाँ शनि है तो व्यक्ति होशियार और फरेब देने वाला माना जा सकता है, लेकिन यदि शुभ है तो खुद विधाता माना जाएगा।
सावधानी : नेक और धर्मात्मा बने रहें। उधार न दें।
(12) द्वादश भाव : यहाँ यदि शनि है तो ऐसा व्यक्ति एकांत प्रिय, संन्यासी माना जाएगा।
सावधानी : मकान जैसा बन रहा है वैसा बनने दें, उसमें अपनी अक्ल न लगाएँ और न ही बनने से रोकें।