चैत्र नवरात्रि का पर्व भारत में हिन्दुओं के द्वारा मनाया जाने वाला प्रमुख पर्व है। चैत्र नवरात्रि सभी चारों नवरात्रों में विशेष महत्व रखता है। आमतौर पर साल में चार चैत्र, आषाढ़, आश्विन और माघ नवरात्र माने गए हैं। जिसमें चैत्र नवरात्रि को विशेष महत्व दिया गया है क्योंकि भारतीय नववर्ष चैत्र मास के शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से ही प्रारंभ होती है। 
इस वर्ष चैत्र नवरात्रि 13 अप्रैल से लेकर 21 अप्रैल तक रहेगी। नवरात्रि के नौ दिनों में मां के अलग-अलग रुपों की पूजा को शक्ति की पूजा के रुप में भी देखा जाता है।

  • चैत्र घटस्थापना
    मंगलवार, अप्रैल 13, 2021 को

    घटस्थापना मुहूर्त – 05:18 ए एम से 09:31 ए एम
    अवधि – 04 घण्टे 13 मिनट्स


    घटस्थापना अभिजित मुहूर्त – 11:12 ए एम से 12:02 पी एम
    अवधि – 00 घण्टे 51 मिनट्स


    घटस्थापना मुहूर्त प्रतिपदा तिथि पर है।


    प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ – अप्रैल 12, 2021 को 08:00 ए एम बजे
    प्रतिपदा तिथि समाप्त – अप्रैल 13, 2021 को 10:16 ए एम बजे

चैत्र नवरात्रि महत्व
दुर्गा जी की पूजा ऋतु परिवर्तन के दिनों में निश्चित की गयी है। ग्रीष्म ऋतु की समाप्ति और शीत ऋतु के आगमन के समय आश्विन मास में नवरात्र तक दुर्गा माँ का व्रत और पूजा की जा सकती है। इसी तरह शीत ऋतु के समापन के साथ ग्रीष्म ऋतु के प्रारंभ के साथ चैत्र मास में नवरात्र में दुर्गा माँ के व्रत और पूजा की प्राचीन परम्परा है। आराधक को देवी का व्रत और पूजा करते हुए प्रार्थना करनी चाहिए- ‘हे देवी माँ, आप ही सब प्राणियों में शक्ति, बुद्धि, श्रद्धा, स्मृति और क्षमा के रूप में स्थित हैं। हम आपको बार-बार प्रणाम करते हैं। आपकी विधि-विधान से पूजा कर रहे हैं। देवी भवानी, दुर्गा, अम्बिका हम पर अनुकम्पा करें।
 माता शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्रि देवी दुर्गा के नौ अलग-अलग रुप हैं। हिन्दू शास्त्रों में किसी भी पूजन से पूर्व, भगवान गणेशजी की आराधना का प्रावधान बताया गया है। माता जी की पूजा में कलश से संबन्धित एक मान्यता है के अनुसार कलश को भगवान श्री गणेश का प्रतिरुप माना गया है।* इसलिये सबसे पहले कलश का पूजन किया जाता है। कलश स्थापना करने से पहले पूजा स्थान को गंगा जल से शुद्ध किया जाना चाहिए। पूजा में सभी देवताओं आमंत्रित किया जाता है। कलश में सात प्रकार की मिट्टी, सुपारी,मुद्रा रखी जाती है। और पांच प्रकार के पत्तों से कलश को सजाया जाता है। इस कलश के नीचे सात प्रकार के अनाज और जौ बौये जाते है। जिन्हें दशमी की तिथि पर काटा जाता है। माता दुर्गा की प्रतिमा पूजा स्थल के मध्य में स्थापित की जाती

कलश स्थापना के बाद, गणेश भगवान और माता दुर्गा जी की आरती से, नौ दिनों का व्रत प्रारंभ किया जाता है। कई व्यक्ति पूरे नौ दिन तो यह व्रत नहीं रख पाते हैं किन्तु प्रारंभ में ही यह संकल्प लिया जाता है कि व्रत सभी नौ दिन रखने हैं अथवा नौ में से कुछ ही दिन व्रत रखना है।

चैत्र नवरात्रि 2021 की तिथियां

13 अप्रैल (पहला दिन)
प्रतिपदा – इस दिन पर “घटत्पन”, “चंद्र दर्शन” और “शैलपुत्री पूजा” की जाती है।

14 अप्रैल (दूसरा दिन)
दिन पर “सिंधारा दौज” और “माता ब्रह्राचारिणी पूजा” की जाती है।

15 अप्रैल (तीसरा दिन)
यह दिन “गौरी तेज” या “सौजन्य तीज” के रूप में मनाया जाता है और इस दिन का मुख्य अनुष्ठान “चन्द्रघंटा की पूजा” है।

16 अप्रैल (चौथा दिन)
“वरद विनायक चौथ” के रूप में भी जाना जाता है, इस दिन का मुख्य अनुष्ठान “कूष्मांडा की पूजा” है।

17 अप्रैल (पांचवा दिन)
इस दिन को “लक्ष्मी पंचमी” कहा जाता है और इस दिन का मुख्य अनुष्ठान “नाग पूजा” और “स्कंदमाता की पूजा” जाती है।

18 अप्रैल (छठा दिन)
इसे “यमुना छत” या “स्कंद सस्थी” के रूप में जाना जाता है और इस दिन का मुख्य अनुष्ठान “कात्यायनी की पूजा” है।

19 अप्रैल (सातवां दिन)
सप्तमी को “महा सप्तमी” के रूप में मनाया जाता है और देवी का आशीर्वाद मांगने के लिए “कालरात्रि की पूजा” की जाती है।

20 अप्रैल (आठवां दिन)
अष्टमी को “दुर्गा अष्टमी” के रूप में भी मनाया जाता है और इसे “अन्नपूर्णा अष्टमी” भी कहा जाता है। इस दिन “महागौरी की पूजा” और “संधि पूजा” की जाती है।

21 अप्रैल (नौंवा दिन)
“नवमी” नवरात्रि उत्सव का अंतिम दिन “राम नवमी” के रूप में मनाया जाता है और इस दिन “सिद्धिंदात्री की पूजा महाशय” की जाती है।


कलश / घट स्थापना विधि

सर्व प्रथम शुद्धि एवं आचमन
आसनी पर  गणपति एवं दुर्गा माता की मूर्ति के सम्मुख बैठ जाएं ( बिना आसन ,चलते-फिरते, पैर फैलाकर पूजन करना निषेध है )| 
इसके बाद अपने आपको तथा आसन को इस मंत्र से शुद्धि करें –
“ॐ अपवित्र : पवित्रोवा सर्वावस्थां गतोऽपिवा।* *य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचि :॥”
इन मंत्रों से अपने ऊपर तथा आसन पर 3-3 बार कुशा या पुष्पादि से छींटें लगायें फिर आचमन करें –

ॐ केशवाय नम: ॐ नारायणाय नम:, ॐ माधवायनम:, ॐ गो​विन्दाय नम:|
फिर हाथ धोएं, पुन: आसन शुद्धि मंत्र बोलें :-

ॐ पृथ्वी त्वयाधृता लोका देवि त्वं विष्णुनाधृता।
त्वं च धारयमां देवि पवित्रं कुरु चासनम्॥

इसके पश्चात अनामिका उंगली से अपने ललाट पर चंदन लगाते हुए यह मंत्र बोलें-
चन्दनस्य महत्पुण्यम् पवित्रं पापनाशनम्,
आपदां हरते नित्यम् लक्ष्मी तिष्ठतु सर्वदा।

नवरात्रि में कलश / घट स्थापना के लिए सर्वप्रथम प्रातः काल नित्य क्रिया से निवृत होने के बाद स्नान करके, नव वस्त्र अथवा स्वच्छ वस्त्र पहन कर ही विधिपूर्वक पूजा आरम्भ करनी चाहिए। प्रथम पूजा के दिन मुहूर्त (सूर्योदय के साथ अथवा द्विस्वभाव लग्न में  कलश स्थापना करना चाहिए।
कलश स्थापना के लिए अपने घर के उस स्थान को चुनना चाहिए जो पवित्र स्थान हो अर्थात घर में मंदिर के सामने या निकट या मंदिर के पास।  यदि इस स्थान में पूजा करने में दिक्कत हो तो घर में ही ईशान कोण अथवा उत्तर-पूर्व दिशा में, एक स्थान का चयन कर ले तथा उसे गंगा जल से शुद्ध कर ले।

जौ पात्र का प्रयोग (रोपण )
सर्वप्रथम जौ बोने के लिए मिट्टी का पात्र लेना चाहिए । इस पात्र में मिट्टी की एक अथवा दो परत बिछा ले । इसके बाद जौ बिछा लेना चाहिए। इसके ऊपर फिर मिट्टी की एक परत बिछाएं। अब पुनः एक परत जौ की बिछा ले । जौ को इस तरह चारों तरफ बिछाएं ताकि जौ कलश के नीचे पूरी तरह से न दबे। इसके ऊपर पुनः मिट्टी की एक परत बिछाएं।

कलश स्थापना
पुनः कलश में रोली से स्वास्तिक का चिन्ह बनाकर गले में तीन धागावाली मौली लपेटे और कलश को एक ओर रख ले। कलश स्थापित किये जानेवाली भूमि अथवा चौकी पर कुंकुंम या रोली से अष्टदलकमल बनाकर निम्न मंत्र से भूमि का स्पर्श करना चाहिए।

ॐ भूरसि भूमिरस्यदितिरसि विश्वधाया विश्वस्य भुवनस्य धरत्री।पृथिवीं यच्छ पृथिवीं द्रीं ह पृथिवीं मा हि सीः।।

कलश स्थापन
ॐ आ जिघ्न कलशं मह्यं त्वा विशंतिवन्दवः। पुनरूर्जा नि वर्तस्व सा नह सहत्रम् धुक्ष्वोरूधारा पयस्वती पुनर्मा विशताद्रयिः।।

पुनः इस मंत्रोच्चारण के बाद  कलश में गंगाजल मिला हुआ जल छोड़े उसके बाद क्रमशः चन्दन,  सर्वौषधि(मुरा,चम्पक, मुस्ता, वच, कुष्ठ, शिलाजीत, हल्दी, सठी)  दूब, पवित्री, सप्तमृत्तिका, सुपारी, पञ्चरत्न, द्रव्य कलश में अर्पित करे। पुनःपंचपल्लव(बरगद,गूलर,पीपल,पाकड़,आम) कलश के मुख पर रखें। अनन्तर कलश को वस्त्र से अलंकृत करें। तत्पश्चात चावल से भरे पूर्णपात्र को कलश के मुख पर स्थापित करें।


कलश पर श्रीफल की स्थापना

इसके बाद नारियल पर लाल कपडा लपेट  ले उसके बाद मोली लपेट दें। अब नारियल को कलश पर रख दे । नारियल के सम्बन्ध में शास्त्रों में कहा गया है:

अधोमुखं शत्रु विवर्धनाय,ऊर्ध्वस्य वस्त्रं बहुरोग वृध्यै।
प्राचीमुखं वित विनाशनाय,तस्तमात् शुभं संमुख्यं नारीकेलं”।

अर्थात् नारियल का मुख नीचे की तरफ रखने से शत्रु में वृद्धि होती है ।नारियल का मुख ऊपर की तरफ रखने से रोग बढ़ते हैं। पूर्व की तरफ नारियल का मुख रखने से धन का विनाश होता है। इसलिए नारियल की स्थापना  के समय हमेशा इस बात का ध्यान रखनी चाहिए कि उसका मुख साधक की तरफ रहे। ध्यान रहे कि नारियल का मुख उस सिरे पर होता है, जिस तरफ से वह पेड़ की टहनी से जुड़ा होता है।

देवी-देवताओं का कलश में आवाहन
भक्त को अपने दाहिने हाथ में अक्षत और पुष्प लेकर वरुण आदि देवी-देवताओ का ध्यान और आवाहन करना चाहिए –

ॐ भूर्भुवःस्वःभो वरुण! इहागच्छ, इह तिष्ठ, स्थापयामि, पूजयामि, मम पूजां गृहाण।ओम अपां पतये वरुणाय नमः बोलकर अक्षत और पुष्प कलश पर छोड़ देना चाहिए।
पुनः दाहिने हाथ में अक्षत और पुष्प लेकर चारो वेद, तीर्थो, नदियों, सागरों, देवी और देवताओ के आवाहन करना चाहिए उसके बाद फिर अक्षत और पुष्प लेकर कलश की प्रतिष्ठा करें।

कलशे वरुणाद्यावाहितदेवताः सुप्रतिष्ठता वरदा भवन्तु।
तथा 
ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः  इस मंत्र के उच्चारण के साथ ही अक्षत और पुष्प कलश के पास छोड़ दे।


वरुण आदि देवताओ को —

ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमःध्यानार्थे पुष्पं समर्पयामि।

आदि मंत्र का उच्चारण करते हुए पुष्प समर्पित करे पुनः निम्न क्रम से वरुण आदि देवताओ को अक्षत रखे, जल चढ़ाये, स्नानीय जल, आचमनीय जल चढ़ाये, पंच्चामृत स्नान कराये,जल में मलय चन्दन मिलाकर स्नान कराये, शुद्ध जल से स्नान कराये, आचमनीय जल चढ़ाये, वस्त्र चढ़ाये, यज्ञोपवीत चढ़ाये, उपवस्त्र चढ़ाये, चन्दन लगाये, अक्षत समर्पित करे, फूल और फूलमाला चढ़ाये, द्रव्य समर्पित करे ,इत्र आदि चढ़ाये, दीप दिखाए, नैवेद्य चढ़ाये, सुपारी, इलायची, लौंग सहित पान चढ़ाये, द्रव्य-दक्षिणा चढ़ाये(समर्पयामि) इसके बाद आरती करे। पुनः पुस्पाञ्जलि समर्पित करे, प्रदक्षिणा करे तथा दाहिने हाथ में पुष्प लेकर प्रार्थना करे और अन्त में

ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः, प्रार्थनापूर्वकं अहं  नमस्कारान समर्पयामि।
इस मंत्र से नमस्कारपूर्वक फूल समर्पित करे। पुनः हाथ में जल लेकर अधोलिखित वाक्य का उच्चारण कर जल कलश के पास छोड़ते हुए समस्त पूजन-कर्म वरुणदेव को निवेदित करना चाहिए।
कृतेन अनेन पूजनेन कलशे वरुणाद्यावाहितदेवताः प्रीयन्तां न मम।

अखंड ज्योति
नवरात्री के प्रथम दिन ही अखंड ज्योति जलाई जाती है जो नौ दिन तक निरंतर जलती रहती है। अखंड ज्योति का बीच में बुझना अच्छा नही माना जाता है।  अतः इस बात का अवश्य ही धयान रखना चाहिए की अखंड ज्योति न बुझे।

देवी पूजन सामग्री
माँ दुर्गा की सुन्दर प्रतिमा, माता की प्रतिमा स्थापना के लिए चौकी, लाल वस्त्र , कलश/ घाट , नारियल का फल, पांच पल्लव आम का, फूल,अक्षत, मौली, रोली, पूजा के लिए थाली , धुप और दशांग, गंगा का जल, कुमकुम, गुलाल पान,सुपारी, चौकी,दीप, नैवेद्य,कच्चा धागा, दुर्गा सप्तसती किताब ,चुनरी, पैसा, माता दुर्गा की विशेष कृपा हेतु संकल्प तथा षोडशोपचार पूजन करने के बाद, प्रथम प्रतिपदा तिथि को, नैवेद्य के रूप में गाय का घी माता को अर्पित करना चाहिए तथा पुनः वह घी किसी ब्राह्मण को दे देना चाहिए।

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