जीवन में हमेशा ऐसे मौके आते हैं हम समझ नहीं पाते हैं कि क्या करें और क्या न करें? इस समस्या के समाधान के लिए श्रीराम शलाका (गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित) प्रश्नावली एवं उनके उत्तर के रूप में एक कीमती कुंजी भारतीय परंपरा में उपलब्ध है। इसका उपयोग बहुत आसान है।
नोट :इस पावन एवं पवित्र परम्परा को कम्प्यूटर के सॉफ़्टवेयर के माध्यम से हम गणना नहीं कर रहे हैं। कारण कि हम यह नहीं चाहते हैं, कि जो गणना करके ख़ुशी मिलती है उससे आपको बंचित रखा जाए। धन्यवाद।।
विधि:
श्रीरामचन्द्रजी का ध्यान कर अपने प्रश्न को मन में दोहरायें। फिर नीचे दी गई सारणी में से किसी एक अक्षर अंगुली रखें। अब उससे अगले अक्षर से क्रमशः नौवां अक्षर लिखते जायें जब तक पुनः उसी जगह नहीं पहुँच जायें। इस प्रकार एक चौपाई बनेगी, जो अभीष्ट प्रश्न का उत्तर होगी।
सु | प्र | उ | बि | हो | मु | ग | ब | सु | नु | वि | घ | धि | इ | द |
र | रु | फ | सि | सि | रें | बस | है | मं | ल | न | ल | य | न | अ |
सुज | सी | ग | सु | कु | म | स | ग | त | न | ई | ल | धा | बे | अं |
त्य | र | न | कु | जो | म | रि | र | र | अ | की | हो | सं | रा | य |
पु | सु | थ | सी | जे | इ | ग | म | सं | क | रे | हो | स | स | नि |
त | र | त | र | स | इ | ह | ब | ब | प | चि | स | य | स | तु |
म | का | ा | र | र | मा | मि | मी | म्हा | ा | जा | हु | हीं | ा | जू |
ता | रा | रे | री | ह्र | का | फ | खा | जि | ई | र | रा | पू | द | ल |
नि | को | मि | गो | न | म | ज | य | ने | मनि | क | ज | प | स | ल |
हि | रा | म | स | रि | ग | द | न | ष | म | खि | जि | मनि | त | जं |
सिं | मु | न | न | कौ | मि | ज | र | ग | धु | ख | सु | का | स | र |
गु | क | म | अ | ध | नि | म | ल | ा | न | ब | ती | न | रि | भ |
ना | पु | व | अ | ढा | र | ल | का | ए | तू | र | न | नु | ब | थ |
सि | ह | सु | म्हा | रा | र | स | हिं | र | त | न | ष | ा | ज | ा |
र | सा | ा | ला | धी | ा | री | जा | हू | हीं | षा | जू | ई | रा | रे |
गणना के पश्चात प्राप्त चौपाईयाँ एवं उनके द्वारा दिए गए उत्तर निम्नलिखित हैं:
सुनु सिय सत्य असीस हमारी।
पूजिहि मन कामना तुम्हारी।
यह चौपाई बालकाण्ड में श्रीसीताजी के गौरीपूजन के प्रसंग में है। गौरीजी ने श्रीसीताजी को आशीर्वाद दिया है।
फलः- प्रश्नकर्त्ता का प्रश्न उत्तम है, कार्य सिद्ध होगा।
प्रबिसि नगर कीजै सब काजा।
हृदय राखि कोसलपुर राजा।
यह चौपाई सुन्दरकाण्ड में हनुमानजी के लंका में प्रवेश करने के समय की है।
फलः-भगवान् का स्मरण करके कार्यारम्भ करो, सफलता मिलेगी।
उघरें अंत न होइ निबाहू।
कालनेमि जिमि रावन राहू।।
यह चौपाई बालकाण्ड के आरम्भ में सत्संग-वर्णन के प्रसंग में है।
फलः-इस कार्य में भलाई नहीं है। कार्य की सफलता में सन्देह है।
बिधि बस सुजन कुसंगत परहीं।
फनि मनि सम निज गुन अनुसरहीं।।
यह चौपाई बालकाण्ड के आरम्भ में सत्संग-वर्णन के प्रसंग में है।
फलः-खोटे मनुष्यों का संग छोड़ दो। कार्य की सफलता में सन्देह है।
होइ है सोई जो राम रचि राखा।
को करि तरक बढ़ावहिं साषा।।
यह चौपाई बालकाण्डान्तर्गत शिव और पार्वती के संवाद में है।
फलः-कार्य होने में सन्देह है, अतः उसे भगवान् पर छोड़ देना श्रेयष्कर है।
मुद मंगलमय संत समाजू।
जग जंगम तीरथ राजू।।
यह चौपाई बालकाण्ड में संत-समाजरुपी तीर्थ के वर्णन में है।
फलः-प्रश्न उत्तम है। कार्य सिद्ध होगा।
गरल सुधा रिपु करय मिताई।
गोपद सिंधु अनल सितलाई।।
यह चौपाई श्रीहनुमान् जी के लंका प्रवेश करने के समय की है।
फलः-प्रश्न बहुत श्रेष्ठ है। कार्य सफल होगा।
बरुन कुबेर सुरेस समीरा।
रन सनमुख धरि काह न धीरा।।
यह चौपाई लंकाकाण्ड में रावन की मृत्यु के पश्चात् मन्दोदरी के विलाप के प्रसंग में है।
फलः-कार्य पूर्ण होने में सन्देह है।
सुफल मनोरथ होहुँ तुम्हारे।
राम लखनु सुनि भए सुखारे।।
यह चौपाई बालकाण्ड पुष्पवाटिका से पुष्प लाने पर विश्वामित्रजी का आशीर्वाद है।
फलः-प्रश्न बहुत उत्तम है। कार्य सिद्ध होगा।