संस्कृत भाषा केवल विचार सम्प्रेषण का माध्यम ही नहीं है।
सभी भाषाएँ में उस भाषा के बोलने वाले लोगों के आचरण, परम्पराओं और संस्कृति की वाहक भी रहती हैं। जो लोग कहते हैं कि भाषा तो केवल सम्प्रेषण का माध्यम है; उनसे हमारा कहना है कि भाषा केवल वक्ता के वचनों का सम्प्रेषण नहीं करती अपितु उसके साथ वक्ता के समाज के चरित्र, परम्पराओं और संस्कृति का भी सम्प्रेषण करती है। इससे श्रोता अनायास ही श्रवण करने के साथ शिक्षित भी होता चलता है। भाषा चित्त को आह्लाद से भरकर स्वस्थ मनोरञ्जन भी करती है। व्यक्ति के विषाद को दूर कर देती है। वह सोते समाज को प्रेरणा देकर जगा भी देती है। बड़ी बड़ी क्रान्तियाँ करने में भाषा का बड़ा योगदान रहा है। रस और अलंकार इसीलिए भाषा के श्रृङ्गार हैं।
संस्कृत भाषा ऐसे अनेक क्षेत्रों में अन्यतम है। इसके इस श्लोक को देखिए। यह व्यक्ति के स्वाभिमान की रक्षा के लिए कैसे सचेत करता हुआ आह्वान करता है।
रे रे चातक सावधानमनसा मित्र क्षणं श्रूयताम्
अम्भोदा बहवो हि सन्ति गगने सर्वे तु नैतादृशा:।
केचिद्वृष्टिभिरार्द्रयन्ति वसुधां केचिद्गर्जन्ति वृथा
यं यं पश्यसि तस्य तस्य पुरतो मा ब्रूहि दीनं वच:।।
(भर्तृहरि नीतिशतकम्)
चातक स्वाति नक्षत्र के बादलों से ही अपनी प्यास बुझाता है। प्यासा होने के कारण एक चातक जिस भी बादल को आकाश में देखता उसी से प्यासा हूँ प्यासा हूँ की रट लगाने लगता। तब किसी बुद्धिमान कवि ने उससे कहा।
अरे चातक ! मित्र ! सावधान होकर क्षण भर के लिए मेरे वचनों को सुनो। आकाश में बहुत से बादल हैं किन्तु सभी एक जैसे नहीं होते हैं । उनमें से कुछ बादल तो वर्षा करके पृथ्वी को गीला कर देते हैं और कुछ तो व्यर्थ ही गरजते रहते हैं। इसलिए जिन-जिन बादलों को तुम आकाश में देखते हो, उन-उन के समक्ष अपने दीनतापूर्ण वचन मत बोलो।
कवि यह कहना चाहता है कि सभी बादल स्वाति नक्षत्र की वर्षा कर सकने की योग्यता नहीं रखते हैं तो तुम इनके समक्ष क्यों गिड़गिड़ा रहे हो। जब स्वाति नक्षत्र का बादल आए; तभी तुम उस सक्षम बादल से याचना करना।
तात्पर्य यह है कि हमें सब लोगों के समक्ष अपने दुःखों का रोना नहीं रोते रहना चाहिए। सक्षम और सहृदय व्यक्ति जो हमारे दुःखों को दूर करने की सामर्थ्य और सदिच्छा रखता है उसी से याचना करना चाहिए। अन्य लोग तो उपहास ही करते हैं।
संस्कृत साहित्य ऐसे ही जनोपयोगी और प्रेरक विचारों से भरा हुआ है। हमको उसमें अवगाहन करना चाहिए।