सेठ सुजानमल अपने जीवन को आनंद से गुजार रहे थे। एक दिन उन्होंने रात्रि में स्वप्न देखा कि यमराज के दूत उन्हें मारते पीटते हुए कहीं ले जा रहे हैं। वे हड़बड़ाकर उठ बैठे और प्रातःकाल अपने धर्मगुरू संत हरिदास जी के पास पहुँचकर उन्हें इस घटना का विवरण दिया। संत जी ने कहा कि जीवन में कर्मों के फल से ही प्राणी अपने जीवनकाल में ही स्वर्ग और नरक का अनुभव करता है यह सुनकर सेठ जी ने उनसे विनम्रता पूर्वक आग्रह किया कि स्वर्ग और नरक कहाँ पर स्थित है एवं उनका अनुभव कैसे हो सकता है ? संत जी बोले कि मैं आपको अभी अपने साथ ले जाकर इसका अनुभव करा देता हूँ।
स्वामी जी सेठ जी को सबसे पहले एक कसाई के घर ले जाते है, कसाई का काम प्रतिदिन जीवों का संहार करना रहता है उनके रक्त से उसका शरीर सना हुआ रहता है। उस पर मक्खियाँ मँडराती रहती है और वह एक बदबूदार वातावरण में दूषित हवा में साँस लेकर जीवन जीता है। उसके घर में भी सभी लोगों का स्वभाव कर्कश एवं झगडालू प्रवृत्ति का रहता है वे आपस में झगडा करते हुये जीवन यापन करते हैं। इसके बाद स्वामी जी और सेठ जी एक वकील के घर पहुँचते है। वह वकील न्यायप्रिय, ईमानदार एवं जनहित के कार्यों के लिये समर्पित व्यक्तित्व था। वह कई जरूरतमंदों को बिना किसी सेवा शुल्क के मुकदमों में सहायता करता था। वह कई जनहितकारी मामलों को समाज के हित में न्यायालय में ले जाकर समुचित मार्गदर्शन दिलाकर समाज में सकारात्मक विचारधारा लाने हेतु गतिशील रहता था। वह मान-सम्मान पूर्वक परिवार में शांति एवं सुख के साथ दिन बिता रहा था।
स्वामी जी ने अब सेठजी को कहा कि मैंने तुम्हें जीवन में सुख और दुख दोनों दिखा दिये। पहले व्यक्ति का जीवन नरक के समान है और दूसरे व्यक्ति का जीवन स्वर्ग का अनुभव कराता है। इन्हें अपने कर्मो के अनुसार यही पर स्वर्ग एवं नर्क मिला हुआ है।
व्यक्ति अपने कर्मों से ही इसी धरती पर स्वर्ग या नरक का जीवन जीता है। सेठ जी स्वामी जी का आशय समझ गये थे।