ज्ञानसंजीवनी का परम उदेश्य

ज्ञानसंजीवनी नित्यम्, भूयात् कल्याणकारिणी ।
सदा विद्युत्समगत्या, ज्ञानं यच्छतु सर्वदा।।

ज्ञानसंजीवनी का परम उद्देश्य सत्यतः हमारा है ही नही, वस्तुतः यह सम्पूर्ण संसार का परम उद्देश्य है। जैसा की हम सब जानते है, कि इस दुनिया को परम सुख देने वाली एक ही वस्तु है और वह है ज्ञान। ज्ञान को श्रुतियों ने, विद्वत वरेण्यो ने परमेश्वर का साक्षात रूप कहा है। ज्ञान ही जीवन है, अज्ञानता तो मृत्यु। इसीलिये श्रुति वाक्य है-
सत्यं ज्ञानं अनन्तं ब्रह्म
ब्रह्म सत्यस्वरूप है, ज्ञानस्वरूप है, आनन्दस्वरूप है, अनन्त है।


अतः ज्ञान ही हमारा मूल लक्ष्य है। यह ज्ञान सनातन मूल्यों, पद्धतियों, विचारों, सिधान्तों एवं परंपराओं में हमारे ऋषियों ने गूथ दिया है। इस प्रकार से, हम भारतीय सनातन संस्कृति, सुसंस्कार, अध्यात्म, गौ, गंगा, गुरुकुल आदि संस्कृति को विश्व के हर जन-जन में समाना, बसाना, पिरोना चाहते है। यही हमारा परम पवित्र पावन उद्देश्य है, और यह हमें लगता है, की हमारे सभी सनातनी भाई-बहनों का भी यही उदेश्य है।

उपरोक्त उद्देश्य को दृष्टिगत रखते हुए, हम सनातन के सभी अंगो को विश्व के शीर्षस्थ स्थान पर प्रतिष्ठित देखना चाहते है, जिसका मानक वेद पुराण, उपनिषद, अन्य सनातन ग्रंथ एवम् आर्ष वचन है।

इन्ही के प्रेरक सूत्रों के सहारे हम यह सेवा जन जन की भागीदारी एवम् सहयोग से आगे बढ़ाना चाहते हैं एवम् इन प्रेरक विचारों के सहारे यह सेवा नि:शुल्क एवं निःस्वार्थ रूप से गतिमान है। मनुष्य शरीर के द्वारा अपने किये हुए कर्मों का फल ही लोक तथा परलोक में भोगा जाता है। जैसे धूल का छोटा से छोटा कण भी विशाल पृथ्वी का ही एक अंश है, ऐसे ही यह शरीर भी विशाल ब्रह्माण्ड का ही एक अंश है। ऐसा मानने से कर्म तो संसार के लिए होंगें पर योग (नित्य योग) अपने लिए अर्थात परमात्मा का अनुभव हो जाएगा।

हमारा उद्देश्य का प्रेरणास्रोत व्यास जी महाराज का एक श्लोक है और वस्तुतः दुनिया की समस्त मानवता भी इसी में समाहित है-
अष्टादश पुराणेषु व्यासस्य वचन्द्वयम।
परोपकाराय पुण्याय पापाय परपीडनं।।


ॐ शांतिः शांतिः शांतिः






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