।। अति महत्वपूर्ण बातें पूजा से जुड़ी हुई।।
- एक हाथ से प्रणाम नही करना चाहिए।
- सोए हुए व्यक्ति का चरण स्पर्श नहीं करना चाहिए।
- बड़ों को प्रणाम करते समय उनके दाहिने पैर पर दाहिने हाथ से और उनके बांये पैर को बांये हाथ से छूकर प्रणाम करें।
- जप करते समय जीभ या होंठ को नहीं हिलाना चाहिए। इसे उपांशु जप कहते हैं। इसका फल सौगुणा फलदायक होता हैं।
- जप करते समय दाहिने हाथ को कपड़े या गौमुखी से ढककर रखना चाहिए।
- जप के बाद आसन के नीचे की भूमि को स्पर्श कर नेत्रों से लगाना चाहिए।
- संक्रान्ति, द्वादशी, अमावस्या, पूर्णिमा, रविवार और सन्ध्या के समय तुलसी तोड़ना निषिद्ध हैं।
- दीपक से दीपक को नही जलाना चाहिए।
- यज्ञ, श्राद्ध आदि में काले तिल का प्रयोग करना चाहिए, सफेद तिल का नहीं।
- शनिवार को पीपल पर जल चढ़ाना चाहिए। पीपल की सात परिक्रमा करनी चाहिए। परिक्रमा करना श्रेष्ठ है,
- कूमड़ा-मतीरा-नारियल आदि को स्त्रियां नहीं तोड़े या चाकू आदि से नहीं काटें। यह उत्तम नही माना गया हैं।
- भोजन प्रसाद को लाघंना नहीं चाहिए।
- देव प्रतिमा देखकर अवश्य प्रणाम करें।
- किसी को भी कोई वस्तु या दान-दक्षिणा दाहिने हाथ से देना चाहिए।
- एकादशी, अमावस्या, कृृष्ण चतुर्दशी, पूर्णिमा व्रत तथा श्राद्ध के दिन क्षौर-कर्म (दाढ़ी) नहीं बनाना चाहिए ।
- बिना यज्ञोपवित या शिखा बंधन के जो भी कार्य, कर्म किया जाता है, वह निष्फल हो जाता हैं।
- शंकर जी को बिल्वपत्र, विष्णु जी को तुलसी, गणेश जी को दूर्वा, लक्ष्मी जी को कमल प्रिय हैं।
- शंकर जी को शिवरात्रि के सिवाय कुंुकुम नहीं चढ़ती।
- शिवजी को कुंद, विष्णु जी को धतूरा, देवी जी को आक तथा मदार और सूर्य भगवानको तगर के फूल नहीं चढ़ावे।
- अक्षत देवताओं को तीन बार तथा पितरों को एक बार धोकर चढ़ावंे।
- नये बिल्व पत्र नहीं मिले तो चढ़ाये हुए बिल्व पत्र धोकर फिर चढ़ाए जा सकते हैं।
- विष्णु भगवान को चावल गणेश जी को तुलसी, दुर्गा जी और सूर्य नारायण को बिल्व पत्र नहीं चढ़ावें।
- पत्र-पुष्प-फल का मुख नीचे करके नहीं चढ़ावें, जैसे उत्पन्न होते हों वैसे ही चढ़ावें।
- किंतु बिल्वपत्र उलटा करके डंडी तोड़कर शंकर पर चढ़ावें।
- पान की डंडी का अग्रभाग तोड़कर चढ़ावें।
- सड़ा हुआ पान या पुष्प नहीं चढ़ावे।
- गणेश को तुलसी भाद्र शुक्ल चतुर्थी को चढ़ती हैं।
- पांच रात्रि तक कमल का फूल बासी नहीं होता है।
- दस रात्रि तक तुलसी पत्र बासी नहीं होते हैं।
- सभी धार्मिक कार्यो में पत्नी को दाहिने भाग में बिठाकर धार्मिक क्रियाएं सम्पन्न करनी चाहिए।
- पूजन करनेवाला ललाट पर तिलक लगाकर ही पूजा करें।
- पूर्वाभिमुख बैठकर अपने बांयी ओर घंटा, धूप तथा दाहिनी ओर शंख, जलपात्र एवं पूजन सामग्री रखें।