सदाशिव समारम्भाम् शंकराचार्य मध्यमाम्।।
अस्मद् आचार्य पर्यन्ताम् वंदे गुरु परम्पराम्।।
सनातन धर्मान्तर्गत वेदों में प्रतिपाद्य विषयों को हर विधा से जन-जन तक पहुंचा कर वैदिकोविश्वभूषणः का अलख जगाने वाले तपोनिष्ठ परम पूज्य राष्ट्रसंत स्वामी श्री गोविन्ददेव गिरी जी महाराज ने महर्षि वेदव्यास प्रतिष्ठान को मुख्य संस्था बनाकर भारतवर्ष के अनेकों राज्यों में गुरुकुल की स्थापना करके इस परंपरा को पुनर्जीवित किया।
तत्पश्चात श्री गीता जी के वचनों का हमारे भीतर बीज बोने के लिए गीता परिवार, संत ज्ञानेश्वर गुरुकुल इत्यादि अन्य कई समाजसेवी संस्थाओं का गठन किया, पूज्य स्वामी जी का यह संकल्प विंदु से विस्तार रूप वेदश्री तपोवन के में परिणित हुआ।
विगत 8 वर्षों से सम्पूर्ण वास्तु एवं वैदिक शुल्बसूत्रों द्वारा निर्देशित वेदश्री तपोवन में गौ माता की सेवा में समर्पित गौशाला, चारों वेदों के सभी मंत्रों का अनुसंधान तथा यांत्रिकी शोध केंद्र, वेदाङ्गों का समूल संरक्षण एवं अनुसंधान केंद्र इत्यादि मूर्त रूप ले रहे हैं।
पूज्य स्वामी जी के इस विराट संकल्प का शब्दों द्वारा आंकलन करना सूर्य को दिया दिखाने जैसा है।
ऐसे महान संत का सन्यास दिवस भी स्वयं को धन्य समझता होगा। आइये ऐसे ही कुछ इन बातों पर विचार करते है कि संन्यास की परंपरा कैसे शुरू हुई, और किसने प्रारम्भ किया, संन्यास में भी कितने सम्प्रदाय है आदि ।
जिस प्रकार सनातन धर्म में जीवन के चार भाग (आश्रम) किए गए हैं- ब्रह्मचर्य आश्रम, गृहस्थ आश्रम, वानप्रस्थ आश्रम और संन्यास आश्रम। संन्यास आश्रम का उद्देश्य मोक्ष की प्राप्ति है। सन्यास का अर्थ सांसारिक बन्धनों से मुक्त होकर निष्काम भाव से प्रभु का निरन्तर स्मरण करते रहना। शास्त्रों में संन्यास को जीवन की परमतत्वांश अवस्था कहा गया है।
जगद्गुरुआदि शंकराचार्य ने देश की चारों दिशाओं में चार आध्यात्मिक पीठों की स्थापना की थी और दशनामी संन्यास परंपरा को दस संन्यासी नामों में विभक्त किया था और हर एक पीठ के साथ इन संन्यासी दशनामों को संबद्ध किया गया। दशनामी संप्रदायों के दस नामों को आदि शंकराचार्य ने गिरि, पर्वत, सागर, पुरी, भारती, सरस्वती, वन, अरण्य, तीर्थ और आश्रम के 9 संन्यासी नाम प्रदान किए और दसवें नाम के रूप में गृहस्थ गोस्वामी नाम प्रदान किया जो समाज इसी दशनामी संप्रदाय से संबंधित हैं। सभी दशनामी प्रत्येक संप्रदाय स्थान विशेष और वेद से ताल्लुक रखते हैं। इनके शंकराचार्य, महंत, आचार्य महामंडलेश्वर महामंडलेश्वर हैं।
इसी विज्ञान संपन्न परंपरा से परम पूज्य स्वामी श्री गोविंददेव गिरी जी महाराज ने वैशाख शुक्ल तृतीया को भारतवर्ष के दो महान पुण्यश्लोकी आचार्यों के पावन उपस्थिति में संन्यास दीक्षा ग्रहण किया। जिनमें से एक उत्तर भारत के महान विद्वान पद्मभूषण से सम्मानित सनातन परंपरा के संतों में सहज, सरल और तपोनिष्ठ स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि का नाम उन संतों में लिया जाता है, जिनके आगे कोई भी पद या पुरस्कार छोटे पड़ जाते हैं।
प्रातःस्मरणीय स्वामी श्री सत्यमित्रानंद गिरी जी महाराज एवं दूसरे दक्षिण भारत के तमिलनाडु राज्य के काँचीपुरम नगर में स्थित कांची कामकोटि पीठ के ६९वें शंकराचार्य सम्पूर्ण शास्त्रों के मूर्धन्य विद्वान 50 वर्षों से अधिक शंकराचार्य रहे प्रातः स्मरणीय पूज्य स्वामी श्री जयेंद्र सरस्वती जी महाराज के पावन छाया में संन्यास दीक्षा ग्रहण किया। आगे चलकर पूज्य स्वामी जी श्री राम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र में कोषाध्यक्ष नियुक्त होकर भारतीय संत परंपरा को और भी दृढ़ एवं विश्वस्त किया ऐसे संतों के बारे में मेरी तुच्छ लेखनी जितना भी लिखे अधूरा ही रहेगा इसलिए मैं परमपूज्य स्वामी के चरणों मे प्रणाम कोटिशः प्रणाम अर्पित करता हूँ।
।।हरि ॐ तत्सत।।