यह श्लोक इस प्रकार हैं-
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे ।
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥३८॥
श्लोक का अन्वय —
वरानने! राम राम इति राम इति (जप)। (अहं) मनोरमे रामे रमे। तत् रामनाम सहस्रनाम तुल्यम्।
अर्थ : (शिव पार्वती से बोले –) हे (वरानने) सुमुखी ! राम-राम ऐसा या राम ऐसा अर्थात् दो बार राम या एक बार राम का नाम ‘विष्णु सहस्त्रनाम’ के समान हैं । मैं मनोरम अर्थात जिसमें मन रमण करता है और राम अर्थात् जो सर्वत्र रमण करता है, में सदा रमण करता हूँ।
यह श्लोक पद्म पुराण के शिव पार्वती संवाद से लिया गया है। यहाँ वरानने शब्द पार्वती के लिए सम्बोधन है। मूल शब्द वरानना अर्थात् श्रेष्ठ और सुन्दर मुख वाली है।
शिव पार्वती की कथा इस प्रकार है-
एक बार भूतभावन भगवान् शंकर ने अपनी प्राणवल्लभा पार्वती जी से अपने ही साथ भोजन करने का अनुरोध किया। भगवती पार्वती जी ने यह कहकर टाला कि वे विष्णुसहस्रनाम का पाठ कर रही हैं। कुछ समय तक प्रतीक्षा करके शिवजी ने जब पुनः पार्वती जी को बुलाया तब भी पार्वती जी ने यही उत्तर दिया कि वे विष्णुसहस्रनाम के पाठ के विश्राम के पश्चात् ही आ सकेंगी। शिव जी को शीघ्रता थी। भोजन ठण्डा हो रहा था। अतः भगवान् शंकर ने कहा- पार्वति! राम राम कहो। एक बार राम कहने से विष्णुसहस्रनाम का सम्पूर्ण फल मिल जाता है, क्योंकि श्रीराम नाम ही विष्णु सहस्रनाम के तुल्य है। इस प्रकार शिवजी के मुख से ‘राम’ इस दो अक्षर के नाम का विष्णुसहस्रनाम के समान सुनकर ‘राम’ इस द्व्यक्षर नाम का जप करके पार्वती जी ने प्रसन्न होकर शिवजी के साथ भोजन किया।
इस बात का उल्लेख तुलसीदास जी ने भी किया है। देखिए –
सहस नाम सम सुनि शिव बानी। जपि जेई पिय संग भवानी॥
– मानस १-१९-६
यहाँ जेई शब्द का अर्थ है भोजन करना। अर्थात् शिवजी की वाणी से राम नाम को सहस्रनाम के समान सुनकर तथा उसे ही जपकर पार्वती जी ने अपने प्रियतम भगवान् शंकर के साथ जीमन किया।
अब हम इसके प्रत्येक पद का अर्थ करते हैं।
रामरामेति – राम राम ऐसा। अर्थात दो बार राम नाम का उच्चारण।
रामेति – राम ऐसा। एक बार राम नाम का उच्चारण।
रमे – यह पद रम् धातु (रमन्ते योगिनः यस्मिन् स रामः)के आत्मनेपद लट् लकार उत्तम पुरुष एकवचन का रूप है। इसका अर्थ हुआ योगिजन जिस राम में रमण करते हैं अर्थात् सतत् जिस तत्व का चिन्तन करते हैं वह पूर्ण ब्रह्म राम। आत्मनेपद रूप होने के कारण इसका अर्थ सोच-समझकर उत्तरदायित्व लेते हुए रमण करता हूँ, बनता है।
रामे – राम शब्द का सप्तमी एकवचनान्त रूप है। इसका अर्थ है राम में
मनोरमे – यह शब्द मनोरम शब्द का सप्तमी विभक्ति एक एकवचन रूप है। यह राम शब्द के विशेषण के रूप में श्लोक में आया है। इसका अर्थ हुआ मनोरम (मनोरम राम) में।
सहस्रनाम – यह शब्द बनाने के लिए नाम शब्द के साथ संख्यावाचक शब्द सहस्र लिखकर द्विगु समास बनाया गया है। तब इसके रूप नाम शब्द के समान ही चलेंगे। अत: सहस्त्रनाम शब्द नपुंसकलिंग के कर्त्ताकारक एक वचन का रूप है। यह सहस्रनाम उस राम नाम के तुल्य है। इसलिए इसका कर्त्ताकारक एक वचन रूप उचित है।
तत् – यह सर्वनाम रामनाम पद के सर्वनाम के रूप में इस श्लोक में आया है। तत् भी तद् सर्वनाम नपुंसक लिंग का एकवचन रूप है। अर्थ हुआ वह। वह कौन? रामनाम।
तुल्यम् – यह पद भी रामनाम पद के विशेषण के लिए आया है।
रामनाम – यह पद भी राम और नाम इन दो पदों को समास के रूप में इकट्ठा बनाया है। इसके रूप भी नाम शब्द के समान चलेंगे। अतः रामनाम शब्द कर्त्ताकारक एक वचन नपुंसक लिंग में है। यदि इस राम नाम पर को अलग-अलग राम नाम लिखेंगे तो राम पद विभक्ति रहित होकर अशुद्ध हो जाएगा। अतः रामनाम इकट्ठा ही लिखा जाएगा।
वरानने – पार्वती वस्तुतः वरानना हैं। उन्हीं का सम्बोधन ‘वरानने’ है। यह वरानना शब्द का सम्बोधन कारक का एकवचन रूप है। इसका अर्थ हुआ हे सुन्दर मुख वाली! हे सुमुखी!
आशा है, अर्थ स्पष्ट हो गया होगा।
आशीष कुमार पांडेय (केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय तिरुपति)