सनातन धर्म की विशेषता है कि हर दिन ही व्रत के साथ जीना है इस मानव तन में। चाहें तन से व्रत कीजिए या मन से,पर अपने आपको संतुलन में रखिये। नियमबद्धता में रखिये। ऐसे ही व्रतों की श्रृंखला में पुत्रदा एकादशी व्रत है। तो जानते हैं इस व्रत के विषय में….
पुत्रदा एकादशी व्रत को सभी व्रतों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है। एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित है। वर्तमान समय में चातुर्मास चल रहा है। चातुर्मास में भगवान विष्णु पाताल लोक में शयन करते हैं यानि चातुर्मास में भगवान विष्णु विश्राम करते हैं। चातुर्मास में पड़ने वाली एकादशी को विशेष महत्व प्रदान किया गया है।
पंचांग के अनुसार आने वाली 18 अगस्त 2021, बुधवार को श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि है। इस एकादशी को पुत्रदा एकादशी के नाम से जाना जाता है।
पुत्रदा एकादशी मान्यता के अनुसार पुत्रदा एकादशी का व्रत संतान संबंधी परेशानियों को दूर करता है। यह व्रत संतान के लिए रखा जाता है। ऐसा भी माना जाता है कि पुत्रदा एकादशी का व्रत विधि पूर्वक रखने से श्रेष्ठ संतान प्राप्त होती है। इसीलिए इस एकादशी को पुत्रदा एकादशी कहा जाता है।
पुत्रदा एकादशी व्रत की विधि
एकादशी की तिथि के दिन सुबह स्नान करने के बाद पूजा करें। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इस दिन घी का दीपक जलाएं और पीले रंग की चीजों का अर्पण और भोग लगाएं।क्योंकि भगवान विष्णु का पीले वस्त्र और पीले पुष्प प्रिय हैं। इस दिन व्रत के दौरान अन्न का सेवन नहीं किया जाता है। इस दिन विष्णुसहस्रनाम का पाठ करने से शुभ फल प्राप्त होता है। पुत्रदा एकादशी का व्रत पापों से मुक्ति दिलाने वाला माना गया है। इस व्रत को रखने से घर में सुख समृद्धि आती है और भगवान विष्णु का आर्शीवाद प्राप्त होता है।
धार्मिक शास्त्रों के अनुसार इस चर और अचर संसार में पुत्रदा एकादशी के व्रत के समान दूसरा कोई व्रत नहीं है। जिन व्यक्तियों को संतान होने में बाधाएं आती हैं या जिन्हें पुत्र प्राप्ति की कामना हो उन्हें पुत्रदा एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए। संतान प्राप्ति के लिए इस व्रत को करना उत्तम माना जाता है। इस दिन संतान की कामना के लिए भगवान कृष्ण के बाल स्वरूप की भी पूजा की जाती है।
यदि आप स्वस्थ और उपवास करने में सक्षम हैं तो निर्जला व्रत रखें अन्यथा फलाहारी व्रत रखकर विधिवत पूजा के बाद समय पर इसका पारण करें। शिव आराधना और अपनी मुरादें पूरी करने के लिए श्रावण सबसे उत्तम माह है। श्रावण की यह एकादशी पुत्र की प्राप्ति का वरदान देने वाली मानी गई है।
पुत्रदा एकादशी की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार सुकेतुमान नाम का राजा भद्रावती राज्य पर राज करता था। उसकी पत्नी का नाम शैव्या था। इस राजा की कोई संतान नहीं थी।जिस कारण दोनों परेशान और उदास रहते थे। इसी दुख के कारण एक बार राजा के मन में आत्महत्या करने का विचार आया, लेकिन पाप समझकर उसने यह विचार त्याग दिया. एक दिन राजा का मन राज्य के कामकाज में नहीं लग रहा था, तो वो जंगल की तरफ चल दिया।
जंगल में उसे बहुत से पशु-पक्षी दिखाई दिए। राजा के मन में बुरे विचार आने लगे। राजा दुखी होकर एक तालाब के किनारे बैठ गया। इस तालाब के किनारे ऋषि मुनियों के आश्रम बने हुए थे। राजा एक आश्रम में गया और वहां पर ऋषि मुनियों को प्रणाम कर आसन ग्रहण किया. राजा को देखकर ऋषि मुनियों ने कहा कि राजा को यहां देखकर वे प्रसन्न हैं, अत: अपनी इच्छा बताओ? तब राजा ने अपनी चिंता ऋषि को बताई। ऋषि ने राजा की बात को सुनकर कहा कि आज पुत्रदा एकादशी है, इसलिए वे यहां स्नान करने आए हैं।
ऋषि मुनियों ने राजा को पुत्रदा एकादशी के दिन व्रत रखने को कहा। राजा ने उसी दिन से एकादशी का व्रत आरंभ कर दिया। राजा ने विधि पूर्वक व्रत रखा और द्वादशी को व्रत का पारण किया। कुछ दिनों बाद रानी ने गर्भ धारण किया और नौ माह पश्चात राजा को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। यह बालक साहसी और जनता का कल्याण करने वाला हुआ।
श्रावण पुत्रदा एकादशी मुहूर्त
श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन पुत्रदा एकादशी व्रत किया जाएगा। इस दिन तिथि का प्रारंभ 18 अगस्त, बुधवार को तड़के 03.20 मिनट से होकर उसी दिन देर रात 01.05 मिनट पर इसका समापन होगा। अत: श्रावण मास की पुत्रदा एकादशी का व्रत 18 अगस्त को रखा जाएगा।