आइये हम ज्ञान संजीवनी के माध्यम से चतुर्विध पुरुषार्थ ( धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष ) को सिद्ध करने तथा अपने जीवन के उद्देश्य समझने का सार्थक प्रयास करें – आचार्य अभिजीत
वैदिक दिनचर्या चारों वर्ण चारों आश्रम (ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ एवं संन्यास) के लिए निश्चित किया गया है। सभी वर्गों के लोगों को अलग -अलग( अपनी -अपनी ) स्थिति में दिनचर्या का पालन करना चाहिए क्योंकि वैदिक काल के मानवीय जीवन में सभी लोगों के पास अपने -अपने कार्य निश्चित थे।
आज के अति व्यस्ततम् समय के प्रतियोगितात्मक माहौल में मानव अपने वास्तविकता को भूलकर धन और भोग को ही एकमात्र जीवनचर्या बना लिया है.परिणामस्वरूप धन तो अर्जित कर ही लेता है ,परन्तु अपने जीवन के अन्य पहलुओं को काफी पीछे छोड़ चुका होता है। इस कारन नाना प्रकार की बीमारियां मानव देह में घर बना ली होतीं है। आइये हम ज्ञान संजीवनी के माध्यम से चतुर्विध पुरुषार्थ ( धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष ) को सिद्ध करने तथा अपने जीवन के उद्देश्य समझने का सार्थक प्रयास करें। ताकि इस भाग दौड़ भरे समय को विस्तार से समझ सकें तथा अपने जीवन में इनका संतुलन व्यवहार कर सकें। मानवीय जीवन में सर्वप्रथम योग एवं आयुर्वेद का स्थान अति महत्वपूर्ण है । जो कि हमे समय एवं कार्य की कटिबद्धता की ओर प्रेरित करता है। योग के माध्यम से हम स्वास्थ्य एवं रोग को नियंत्रित कर सकते हैं। हम अपने जीवन को कैसे प्राकृतिक ढंग से संतुलित करें , हमारी दिनभर की क्रियाएं कैसी हों यही आयुर्वेद का सार है। यह संतुलन आहार-विहार, विचार व निद्रा पर आधारित है। आयुर्वेद के द्वारा रोगियों को रोग से मुक्ति मिलती है और स्वस्थ व्यक्तियों के स्वास्थ्य की रक्षा होती है, आयुर्वेद चिकित्सा शास्त्र में प्रात:काल ब्रम्ह मुहूर्त में उठने से लेकर रात्रि में शयन पर्यन्त किस प्रकार समय व्यतीत करना चाहिए, इसके लिए वैदिक जीवनचर्या और दिनचर्या का नियमित पालन करना होगा