वेदा हि यज्ञार्थमभिप्रवृत्ताः कालानुपूर्वा विहिताश्च यज्ञाः।
तस्मादिदं कालविधानशास्त्रं यो ज्येतिषं वेद स वेद यज्ञान् ॥
(आर्चज्यौतिषम् ३६, याजुषज्याेतिषम् ३)

यथा शिखा मयूराणां नागानां मणयो यथा।
तद्वद् वेदांगशास्त्राणां गणितं मूर्धनि स्थितम्॥
(याजुषज्याेतिषम् ४)


(अर्थ : जिस प्रकार मोरों में शिखा और नागों में मणि का स्थान सबसे उपर है, उसी प्रकार सभी वेदांगशास्त्रों मे गणित अर्थात् ज्यातिष का स्थान सबसे उपर है।)

वेदों में , ब्राह्मण ग्रंथों में,श्रोत सूत्रों में , मीमांसा आदि दर्शनों में , पाणिनि सूत्रों में और पुराण- ₹इतिहास में प्रसंगानुसार प्रयोजनवश ज्योतिष विद्या के अनेक प्रकीर्णक विषय सूत्र रूप से उपलब्ध है।इसके स्वतंत्र विषय लगध (वेदांगज्योतिष) नामक अति प्राचीन ग्रंथ में प्रतिपादित है।
यह निःसंदेह है कि, वैदिक ज्योतिष तत्व का विकास ऋषि मुनियों के समय से लेकर कालक्रमानुसार बढ़ता गया है।
प्राचीन काल में ग्रह,नक्षत्र और अन्य खगोलीय पिंडों का अध्ययन करने के विषय को ही ज्योतिष कहा जाता था,
ज्योतिष का सर्वप्रथम तत्व वेदों से गणितीय भाषा मे प्राप्त कर मनीषियों ने खगोलीय घटनाओं का जीवमात्र पर पड़ने वाले असर का गहन खोज किया ,खोज के पश्चात उन्होंने नक्षत्रों का स्थान और उनकी धुरी पता लगाई, नक्षत्रों का गुण,प्रकृति,विकृति,के बारे में ज्ञात किया तथा मानव के ऊपर पड़ने वाले इनके असर का समुचित खोज किया, वेदों में ज्योतिष के जो श्लोक हैं उनका संबंध मानव भविष्य बताने से नहीं वरन ब्रह्मांडीय गणित और समय बताने से है। ज्यादातर नक्षत्रों पर आधारित और उनकी शक्ति की महिमा से है।आज का वैज्ञानिक युग जब तक पूर्ण रूप से किसी विषय को प्रमाणित नहीं कर देता तब तक विश्वास नहीं करता। ज्योतिष विज्ञान इतना विस्तृत है कि इसका पूर्ण ज्ञान किसी के पास नहीं है। सौरमंडल का मानव जीवन पर प्रत्यक्ष रूप से अनुकूल और प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है यहाँ तो ज्योतिष शास्त्र, विज्ञान की द्रष्टि से खरा उतरता है। ज्योतिष विज्ञान को यदि ज्योतिष के जानकार अपने स्वार्थ को सिद्ध करने हेतु प्रयोग न करके केवल मानव हित में प्रयोग करे तो ज्योतिष मानव जीवन से उनके दुखों का निवारण करने में सहायक सिद्ध हो सकता है। ज्योतिष शास्त्र किसी भी मनुष्य की लग्न कुंडली में वर्तमान में चल रही ग्रहों की स्थिति से उसके भविष्य में होने घटनाओं की रूप-रेखा को एक हद तक समझने में कारगर सिद्ध होता है।
वेदों को अपौरूषेय अर्थात बिना पुरुष के, ईश्वर कृत माना जाता है, इन्हें श्रुति भी कहते हैं। हिन्दुओं में अन्य ग्रन्थ स्मृति भी कहलाते हैं अर्थात मानव बुद्धि या श्रुति पर आधारित ज्ञान। ज्योतिष संबंधी ज्ञान वेदों में हैं, जिसमें ऋग्वेद में करीब 30 श्लोक। वेद शब्द संस्कृत भाषा के विद् धातु से बना है। विद् का आशय विदित अर्थात जाना हुआ, विद्या अर्थात ज्ञान, विद्वान अर्थात ज्ञानी। वेद भारतीय संस्कृति में सनातन धर्म के मूल अर्थात प्राचीनतम और आधारभूत धर्म ग्रन्थ है, जिन्हें ईश्वर की वाणी समझा जाता है। वेद ज्ञान के भंडार हैं एवं वेदों से अन्य शास्त्रों, पुराणों की उत्पत्ति मानी जाती है। यजुर्वेद में करीब 45 श्लोक एवं अथर्ववेद में करीब 165 श्लोक एवं प्राचीन वास्तु ग्रन्थ स्थापत्यवेदज् भी अथर्ववेद से लिया गया है जिसमें वास्तु से सम्बंधित ज्ञान संकलित हैं।
~ आचार्य अभिजीत

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