किसी नगर में एक सेठ जी रहते थे, उनके घर के नजदीक ही एक मंदिर था। एक रात्रि को पुजारी के कीर्तन की ध्वनि के कारण उन्हें ठीक से नींद नहीं आयी….

सुबह उन्होंने पुजारी जी को खूब डाँटा कि ~ यह सब क्या है?

पुजारी ~ एकादशी का जागरण कीर्तन चल रहा था…!!

सेठजी ~ जागरण कीर्तन करते हो, तो क्या हमारी नींद हराम करोगे ? अच्छी नींद के बाद ही व्यक्ति काम करने के लिए तैयार हो पाता है, फिर कमाता है, तब खाता है.

पुजारी ~ सेठजी ! खिलाता तो वह खिलाने वाला ही है,

सेठजी ~ कौन खिलाता है ? क्या तुम्हारा भगवान खिलाने आयेगा ?

पुजारी ~ वही तो खिलाता है,

सेठजी ~ क्या भगवान खिलाता है ? हम कमाते हैं, तब खाते हैं…

पुजारी ~ निमित्त होता है तुम्हारा कमाना, और पत्नी का रोटी बनाना, बाकी सब को खिलाने वाला, सब का पालनहार तो वह जगन्नाथ ही है,

सेठजी ~ क्या पालनहार-पालनहार लगा रखा है ! बाबा आदम के जमाने की बातें करते हो, क्या तुम्हारा पालने वाला एक – एक को आकर खिलाता है ? हम कमाते हैं, तभी तो खाते हैं,

पुजारी ~ सभी को वही खिलाता है,

सेठजी ~ हम नहीं खाते उसका दिया…

पुजारी ~ नहीं खाओ तो मारकर भी खिलाता है,

सेठ~ पुजारी जी ! अगर तुम्हारा भगवान मुझे चौबीस घंटों में नहीं खिला पाया तो फिर तुम्हें अपना यह भजन कीर्तन सदा के लिए बंद करना होगा,

पुजारी ~मैं जानता हूँ कि तुम्हारी पहुँच बहुत ऊपर तक है, लेकिन उसके हाथ बड़े लम्बे हैं, जब तक वह नहीं चाहता, तब तक किसी का बाल भी बाँका नहीं हो सकता, आजमाकर देख लेना….

पुजारी की निष्ठा परखने के लिये सेठ जी घोर जंगल में चले गये और एक विशालकाय वृक्ष की ऊँची डाल पर ये सोचकर बैठ गये कि अब देखता हूँ, इधर कौन खिलाने आता है ? चौबीस घंटे बीत जायेंगे और पुजारी की हार हो जायेगी. सदा के लिए कीर्तन की झंझट मिट जायेगी…

तभी एक अजनबी आदमी वहाँ आया… उसने उसी वृक्ष के नीचे आराम किया, फिर अपना सामान उठाकर चल दिया, लेकिन अपना एक थैला वहीं भूल गया। भूल गया या छोड़ गया, ये ईश्वर ही जाने….

थोड़ी देर बाद पाँच डकैत वहाँ पहुँचे, उनमें से एक ने अपने सरदार से कहा, ~ उस्ताद ! यहाँ कोई थैला पड़ा है,

क्या है ? जरा देखो ! खोल कर देखा, तो उसमें गरमा-गरम भोजन से भरा टिफिन था ! उस्ताद भूख लगी है, लगता है यह भोजन भगवान ने हमारे लिए ही भेजा है…

अरे ! तेरा भगवान यहाँ कैसे भोजन भेजेगा ? हम को पकड़ने या फँसाने के लिए किसी शत्रु ने ही जहर-वहर डालकर यह टिफिन यहाँ रखा होगा, अथवा पुलिस का कोई षडयंत्र होगा, इधर – उधर देखो जरा, कौन रखकर गया है… उन्होंने इधर-उधर देखा, लेकिन कोई भी आदमी नहीं दिखा, तब डाकुओं के मुखिया ने जोर से आवाज लगायी, कोई हो तो बताये कि यह थैला यहाँ कौन छोड़ गया है ?

सेठजी ऊपर बैठे-बैठे सोचने लगे कि अगर मैं कुछ बोलूँगा तो ये मेरे ही गले पड़ जायेंगे… वे तो चुप रहे,लेकिन जो सबके हृदय की धड़कनें चलाता है, भक्तवत्सल है, वह अपने भक्त का वचन पूरा किये बिना शान्त नहीं रह सकता…

उसने उन डकैतों को प्रेरित किया उनके मन में प्रेरणा दी कि .. ‘ऊपर भी देखो, उन्होंने ऊपर देखा तो वृक्ष की डाल पर एक आदमी बैठा हुआ दिखा, डकैत चिल्लाये ~ अरे ! नीचे उतर!

सेठजी बोले ~ मैं नहीं उतरता,

डकैत ~ क्यों नहीं उतरता, यह भोजन तूने ही रखा होगा.

सेठजी ~ मैंने नहीं रखा, कोई यात्री अभी यहाँ आया था, वही इसे यहाँ भूलकर चला गया,

डकैत ~ नीचे उतर! तूने ही रखा होगा जहर मिलाकर, और अब बचने के लिए बहाने बना रहा है, अब तुझे ही यह भोजन खाना पड़ेगा….

सेठजी ~ मैं नीचे नहीं उतरूँगा और खाना तो मैं कतई नहीं खाऊँगा,

डकैत ~ पक्का तूने खाने में जहर मिलाया है, अब नीचे उतर और ये तो तुझे खाना ही होगा,

सेठजी ~ मैं नहीं खाऊँगा, नीचे भी नहीं उतरूँगा,

अरे कैसे नहीं उतरेगा, सरदार ने एक आदमी को हुक्म दिया इसको जबरदस्ती नीचे उतारो… डकैत ने सेठ को पकड़कर नीचे उतारा…

डकैत ~ ले खाना खा!

सेठ जी~ मैं नहीं खाऊँगा,

उस्ताद ने चटाक से उसके मुँह पर तमाचा जड़ दिया… सेठ को पुजारी जी की बात याद आ गयी कि ~ नहीं खाओगे तो, मारकर भी खिलायेगा….

सेठ फिर भी बोला ~ मैं नहीं खाऊँगा…

डकैत ~ अरे कैसे नहीं खायेगा ! इसकी नाक दबाओ और मुँह खोलो, डकैतों ने सेठ की नाक दबायी, मुँह खुलवाया और जबरदस्ती खिलाने लगे, वे नहीं खा रहे थे, तो डकैत उन्हें पीटने लगे…

तब सेठ जी ने सोचा कि ये पाँच हैं और मैं अकेला हूँ, नहीं खाऊँगा तो ये मेरी हड्डी पसली एक कर देंगे, इसलिए चुपचाप खाने लगे और मन-ही-मन कहा ~ मान गये मेरे बाप ! मार कर भी खिलाता है!

डकैतों के रूप में आकर खिला, चाहे भक्तों के रूप में आकर खिला लेकिन खिलाने वाला तो तू ही है, आपने पुजारी की बात सत्य साबित कर दिखायी….

सेठजी के मन में भक्ति की धारा फूट पड़ी…उनको मार-पीट कर … डकैत वहाँ से चले गये, तो सेठजी भागे और पुजारी जी के पास आकर बोले ~
पुजारी जी ! मान गये आपकी बात… कि नहीं खायें तो वह मार कर भी खिलाता है….!!

सार ~ सत्य यही है कि भगवान ही जगत की व्यवस्था का कुशल संचालन करते हैं । अतः भगवान पर विश्वास ही नहीं, बल्कि दृढ़ विश्वास होना चाहिए

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