काव्य रचना
सुंदर संदेशात्मक

अपने मन को पंक्षी बनाकर,
नीलगगन उड़ जाऊँ ।
उड़ उड़ के मैं हर मानव को,
ये संदेश सुनाऊँ ।
मानव बनकर तुमने
यह कैसा कोहराम मचाया
मार काट क्यों मचा रहे हो
ये सबको समझाऊं
बहुत कष्ट से पाया यह तन
बिरथा क्यूं हो गंवाओ
प्रेम प्रीत से जी लो प्यारो
यही गीत मैं गाऊं
उड़-उड़ कर मैं हर मानव को
ये संदेश सुनाऊं।

मैं सनातनी पक्षी बनकर,
नील गगन उड़ जाऊं।
उड़-उड़ कर मैं खुद जानूं,
और सबको ही बतलाऊं।
एक नूर से सब जग उपजा,
ये संदेश सुनाऊं
सब मेरे अपने हैं जग में,
कोई नहीं है पराया।
माना पराया जब है हमने,
कष्ट बहुत पंहुचाया
काम क्रोध मद लोभ मत्सर को,
सही दिशा में मोड़ो ।
ईर्ष्या,द्वेष,दम्भ,अहम से,
अपना नाता तोड़ो।
सबको इंद्रिय संयम का ,
मैं तो संदेश सुनाऊं।
उड़-उड़ कर मैं हर मानव को
ये संदेश सुनाऊं।

अपने मन को पक्षी बनाकर
नील गगन उड़ जाऊं।
अपनी प्यारी बहिन बेटियों को,
ये संदेश सुनाऊं ।
अपनी कोख पर बहिन बेटियों
क्यों नश्तर चलवातीं
भ्रूण हत्या कर आने वाली,
कन्या को मरवातीं
नारी जाति यदि नहीं बचेगी,
सृष्टि चक्र ही बिगड़े।
मैं अपनी बहिन बेटियों को
बस इतना ही समझाऊं।
उड़-उड़ कर मैं हर मानव को ,
ये संदेश सुनाऊं।

अपने मन को पक्षी बनाकर
नील गगन उड़ जाऊं।
अपने प्यारे बंधु-बांधवों को,
ये संदेश सुनाऊं।
कामवासना का ये तुमने,
कैसा खेल रचाया।
मासूमों को भी तुमने अपनी,
हवश का शिकार बनाया।
तुम्हारे इन कृत्यों से बंधु,
अंतर्मन है रोता।
चीख-चीख कर मैं अपना,
जगतीभर को क्रंदन सुनाऊं।
उड़-उड़ कर मैं हर मानव को ,
ये संदेश सुनाऊं।

अपने मन को पक्षी बनाकर,
नीलगगन उड़ जाऊं।
उड़-उड़ कर मैं हर नेता का,
बुद्धि विवेक जगाऊं।
नेताओं तुमने ये कैसे-कैसे,
षणयंत्र रचाये।
जिस थाली में खाया तुमने,
उसी में छेद कराये।
राष्ट्र तुम्हारा देश तुम्हारा,
अब तो चेतो भाई।
राष्ट्र देश को तहस-नहस कर,
कहां रहोगे भाई
लिख-लिखकर अपनी कविता से
यही बात समझाऊं
उड़ उड़कर मैं हर मानव को
यह संदेश सुनाऊं

मन को अपने पक्षी बना कर
नीलगगन उड़ जाऊं
उड़-उड़कर में जगती भर को
यह संदेश दे जाऊं
सखी के प्यारों आज समझ लो
मानव तन है बड़ा अनमोल
सत्संगति की बगिया महकाकर
समझो इसका कुछ तो मोल
सखी की मानो या ना मानो
सब को शीश झुकाऊं
उड़-उड़कर मैं हर मानव को
यह संदेश सुनाऊं

मन को अपने पछी बना कर……

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