सोम प्रदोष व्रत का महत्व
सोम प्रदोष व्रत भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। यह व्रत करने से शिव जी अपने भक्तों पर हमेशा कृपा बनाए रखते हैं। बता दें कि सोमवार का दिन शिव जी का होता है। इस दिन मंदिर में शिवलिंग पर दूध चढ़ाया जाता है। साथ ही शिव जी की विधि-विधान के साथ पूजा की जाती है। इस दिन माता पार्वती को भी पूजा जाता है। शिव जी और माता पार्वती की कृपा हमेशा अपने भक्तों पर कृपा बनाए रखते हैं। इस व्रत को करने से व्यक्ति को अपने तमाम रोगों से मुक्ति मिल जाती है।
सोमप्रदोष व्रत की पूजा विधि
इस दिन व्रती को सुबह जल्दी उठ जाएं। नित्यकर्मों से निवृत्त होकर स्नानादि कर लें और स्वच्छ वस्त्र पहनें। इसके बाद अपने हाथ में जल लें और प्रदोष व्रत का संकल्प करें। व्रती को पूरे दिन फलाहार करना चाहिए। फिर शाम को प्रदोष काल के शुभ मुहूर्त में भगवान शिव की पूजा करें। शिवजी को गंगा जल, अक्षत्, पुष्प, धतूरा, धूप, फल, चंदन, गाय का दूध, भांग आदि अर्पित करें। फिर ओम नम: शिवाय: मंत्र का जाप करें। शिव चालीसा का पाठ करें और आरती गाएं। पूजा संपन्न करने के बाद सभी घरवालों में प्रसाद बांटें। पूरी रात जागरण करें और अगले दिन स्नान कर महादेव का पूजन करें। अपनी सामर्थ्य अनुसार, ब्राह्मण को दान-दक्षिणा दें। फिर पारण कर व्रत को पूरा करें। 


सभी वारों में आने वाले प्रदोष व्रत का फल
सोमप्रदोष : इस प्रदोष व्रत को सोम प्रदोषम् या चन्द्र प्रदोषम् भी कहा जाता है। इस दिन साधक अपनी अभीष्ट कामना की पूर्त्ति के लिए शिव की साधना करता है।
मंगलवार : इस प्रदोष व्रत को भौम प्रदोषम् कहा जाता है और इसे विशेष रूप से अच्छी सेहत और बीमारियों से मुक्ति की कामना से किया जाता है।
बुधवार : बुध प्रदोष व्रत सभी प्रकार की कामनाओं को पूरा करने वाला होता है।
गुरुवार : गुरुवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत को गुरु प्रदोष व्रत कहते हैं। शत्रुओं पर विजय पाने और उनके नाश के लिए इस पावन व्रत को किया जाता है।
शुक्रवार :  इस दिन पड़ने वाले व्रत को शुक्र प्रदोष व्रत कहते हैं। इस दिन किए जाने वाले प्रदोष व्रत से सुख-समृद्धि और सौभाग्य का वरदान मिलता है।
शनिवार:  इस प्रदोष व्रत को शनि प्रदोषम् कहा जाता है। इस दिन इस पावन व्रत को पुत्र की कामना से किया जाता है।
रविवार :  रविवार के दिन किया जाने वाला प्रदोष व्रत लंबी आयु और आरोग्य की कामना से किया जाता है।


व्रत कथा
सोम प्रदोष व्रत की पौराणिक व्रतकथा के अनुसार एक नगर में एक ब्राह्मणी रहती थी। उसके पति का स्वर्गवास हो गया था। उसका अब कोई आश्रयदाता नहीं था इसलिए प्रात: होते ही वह अपने पुत्र के साथ भीख मांगने निकल पड़ती थी। भिक्षाटन से ही वह स्वयं व पुत्र का पेट पालती थी।
एक दिन ब्राह्मणी घर लौट रही थी तो उसे एक लड़का घायल अवस्था में कराहता हुआ मिला। ब्राह्मणी दयावश उसे अपने घर ले आई। वह लड़का विदर्भ का राजकुमार था। शत्रु सैनिकों ने उसके राज्य पर आक्रमण कर उसके पिता को बंदी बना लिया था और राज्य पर नियंत्रण कर लिया था इसलिए वह मारा-मारा फिर रहा था। राजकुमार ब्राह्मण-पुत्र के साथ ब्राह्मणी के घर रहने लगा।
एक दिन अंशुमति नामक एक गंधर्व कन्या ने राजकुमार को देखा तो वह उस पर मोहित हो गई। अगले दिन अंशुमति अपने माता-पिता को राजकुमार से मिलाने लाई। उन्हें भी राजकुमार भा गया। 
कुछ दिनों बाद अंशुमति के माता-पिता को शंकर भगवान ने स्वप्न में आदेश दिया कि राजकुमार और अंशुमति का विवाह कर दिया जाए। उन्होंने वैसा ही किया।
ब्राह्मणी प्रदोष व्रत करती थी। उसके व्रत के प्रभाव और गंधर्वराज की सेना की सहायता से राजकुमार ने विदर्भ से शत्रुओं को खदेड़ दिया और पिता के राज्य को पुन: प्राप्त कर आनंदपूर्वक रहने लगा। 
राजकुमार ने ब्राह्मण-पुत्र को अपना प्रधानमंत्री बनाया। ब्राह्मणी के प्रदोष व्रत के महात्म्य से जैसे राजकुमार और ब्राह्मण-पुत्र के दिन फिरे, वैसे ही शंकर भगवान अपने दूसरे भक्तों के दिन भी फेरते हैं। अत: सोम प्रदोष का व्रत करने वाले सभी भक्तों को यह कथा अवश्य पढ़नी अथवा सुननी चाहिए।

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