ज्ञानसंजीवनी

कार्तिक पूर्णिमा को अन्य कई नामों से जाना जाता है। सामान्यतः यह दिवाली के 14 दिन बाद आती है और इसी दिन देवताओं की दीपावली यानी देव दीपावली होती है।कार्तिक पूर्णिमा को ही मत्स्यावतार पूर्णिमा, त्रिपुरी पूर्णिमा तथा महा कार्तिक पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। इन नामों के पीछे पौराणिक कथाएं हैं।


इस दिन महादेव ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का संहार किया था। इसीलिए इसे त्रिपुरी पूर्णिमा कहते हैं ।और भोलेनाथ को त्रिपुरारी नाम मिला था।
इसी तिथि को भगवान विष्णु का मत्स्य अवतार हुआ था।
कार्तिक पूर्णिमा को श्री हरि ने प्रलय काल में चार वेदों की रक्षा के लिए मच्छ अवतार लिया था।
देवता इस दिन दिवाली मनाते हैं। भोलेनाथ की नगरी काशी में देव दिवाली की छटा देखते ही बनती है। असंख्य दीपों से पूरी काशी नगरी सजाई जाती है। वही अवंतिका नगरी में इस दिन भारी मेला लगता है। तमिलनाडु में अरुणाचलम पर्वत की परिक्रमा लाखों लोग करते हैं। यदि इसी पूर्णिमा पर कृतिका नक्षत्र हो तो वह महाकीर्तिकी होती है, जो विशेष फल देती है।

विधानः
इस दिन गंगा स्नान, दीपदान ,तुलसी पूजा का विशेष महत्व है।इसे दिन वैकुंठ धाम में श्री तुलसी का प्रकाट्य हुआ। देवी तुलसी का पृथ्वी पर जन्म हुआ।
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय, मंत्र से भगवान कृष्ण की पूजा की जाती है। 5 दिनों तक लगातार घी का दीपक जलता रहना चाहिए । ऊँ विष्णवे नमः स्वाहा, मंत्र से घी ,तिल ,जौ इत्यादि की 108 आहुतियाँ देते हुए हवन करना चाहिए।

— वंदना शर्मा

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