ज्ञानसंजीवनी

कार्तिक शुक्ल पक्ष चतुर्दशी को यह व्रत मनाया जाता है।
सामान्यतया दिवाली के 14 दिन बाद यह व्रत आता है। इस व्रत का धार्मिक महत्व बहुत अधिक है।
इस व्रत को आराधना व मनोकामना पूर्ति व्रत भी कहा जाता है। पुत्र प्राप्ति के लिए भी इस व्रत को किया जाता है। मोक्ष की प्राप्ति हेतु यह व्रत किया जाता है तथा वैकुंठ धाम प्राप्त करने की यह सर्वोत्तम तिथि है।
उत्तराखंड के गढ़वाल अंचल में श्रीनगर में वैकुण्ठ चतुर्दशी का मेला प्रतिवर्ष लगता है। प्रसिद्ध शिवालयों में इस दिन पूजा-अर्चना, साधना का विशेष महत्व होता है। श्रीनगर में स्थित कमलेश्वर मंदिर पौराणिक मंदिरों में से एक है।
किवदंती यह है कि यह स्थान देवताओं की नगरी भी रही है और इस शिवालय में भगवान विष्णु ने तपस्या कर सुदर्शन चक्र प्राप्त किया था। त्रेतायुग में श्री राम ने रावण के वध के बाद ब्रम्ह हत्या पाप से मुक्ति हेतु कामना अर्पण कर शिवजी को प्रसन्न किया व पाप से मुक्त हुए।
वैकुंठ चतुर्दशी पर दंपत्ति पुत्र प्राप्ति कामना के लिए हाथ में दीपक ले रात्रि में शिव भगवान को प्रसन्न करते हैं और अपना मनोवांछित फल प्राप्त करते हैं।
विधिः
इस दिन वैकुंठ वासी भगवान विष्णु की विधिवत पूजा की जाती है। स्नान, आचमन इत्यादि से निवृत होकर भगवान की पूजा के बाद उन्हें भोग लगाया जाता है। और विष्णु भगवान को प्रसन्न करने के लिए पुष्प, दीप चंदन आदि सुगंधित पदार्थों से आरती की जाती है।

वैकुण्ठ चतुर्दशी की कथाः
एक बार नारद जी वैकुण्ठ में भगवान विष्णु के पास गए। विष्णुजी ने नारदजी से आने का कारण पूछा। नारदजी बोले, “हे भगवान! आपको पृथ्वी वासी कृपा निधान कहते हैं किंतु इससे तो केवल आपके प्रिय भक्त ही तर पाते हैं। साधारण नर- नारी नहीं। इसलिए कोई ऐसा उपाय बताइए जिससे साधारण नर -नारी भी आपकी कृपा के पात्र बन जाएँ। इस पर भगवान बोले, “हे नारद! कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी को जो नर-नारी व्रत का पालन करते हुए भक्ति पूर्वक मेरी पूजा करेंगे उनको स्वर्ग प्राप्त होगा” इसके बाद भगवान विष्णु ने जय विजय को बुलाकर आदेश दिया कि कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी को स्वर्ग के द्वार खुले रखे जाएंँ। भगवान ने यह भी बताया कि इस दिन जो मनुष्य किंचित मात्र भी मेरा नाम लेता है या मेरी पूजा करता है उसे वैकुंठधाम प्राप्त होता है ।तो जो लोग इस तरह से वैकुंठ चतुर्दशी व्रत करते हैं वह जीवन भर विविध सुख रोककर अंत में मोक्ष को प्राप्त करते हैं।

–वंदना शर्मा

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