मित्रों..
ये बात उस समय की है जब सृष्टि पर मृत्यु जैसा कोई रूप नहीं था। सभी जन्म तो लेते थे पर मरता कोई नहीं था।शायद आप सभी आश्चर्य कर रहें होंगे ,पर ये बात सत्य है।
अब आप सोचिए जन्मों पे जन्म होते जायेंगे और किसी की भी मृत्यु यदि ना होगी तो धरा का , इस पृथ्वी का क्या हाल होगा?
ऐसा क्या हुआ फिर जो मृत्यु को जन्म लेना पड़ा सो जानिये…
ब्रह्मा जी ने जब सृष्टि का निर्माण किया ,तो चारों तरफ खुशहाली देखकर वे बहुत ही आनन्दित हुए।उनकी मन वीणा झंकृत होने लगी।सभी प्राणी नियम कानून में बंधे हुए अनोखे अनोखे कार्य करते रहते थे।किसी को किसी से भी ईर्ष्या, द्वेष नहीं था। सूर्य,चंद्र,ग्रह ,जीव-जंतु सभी प्रेम से रहते थे।जगपिता अपनी ऐसी रचना करके बहुत ही हर्षित होते थे।अक्षयवट की तरह सभी प्राणियों की बढ़ोत्तरी हो रही थी। किसी के आदि-अंत का कोई पता नहीं था। सृष्टि रचयिता बिना मिटाये सृष्टि रचना करते जा रहे थे। धीरे-धीरे पृथ्वी भर भार बढ़ने लगा क्योंकि रचना तो होती जा रही थी मगर कोई मरता नहीं था।तभी धरा त्राहि-त्राहि कर उठी।वह कहने लगी कि यदि पृथ्वीलोक पर मृत्यु ना होगी,तो मैं तो प्राणियों के भार से रसातल में ही चली जाऊंगी।
सृष्टि कर्ता ने जब मुख म्लान धरा को देखा ,तो “वे कहने लगे देवी क्या बात है “? मुझे तुम्हारा मुखम्लान चिंतित चेहरा बिल्कुल नहीं भाता है।
तब धरा बोली- हे देव! जर्जर काया होते हुए भी सभी जिये जा रहें हैं। और धरा पर बहुत बोझ बढ़ता जा रहा है।आप कोई ऐसा नियम बनाइये कि जो आया है उसकी यह जर्जर काया समाप्त भी हुआ करे।
अन्यथा मैं इतना बोझ ना सह सकूंगी और वह विलख-विलख कर रोने लगी।
धरा का इस तरह विलखना देखकर,तब मंत्रणा के लिए ब्रह्माजी ने नारायण जी शिवशंकर जी इन्द्र आदि-आदि सभी देवरूपों को आमंत्रित करके देवसभा की और धरा की फरियाद को सुना।तब नारायण जी और सभी के निर्णय पर धरा का दुःख समझकर ब्रह्माजी ने एक सुंदर स्त्री की रचना की और उसको नाम दिया मृत्यु देवी। देखिए
कुछ कवित्त भाव….
जर्जर काया अंतहीन सब जीवन जीते जाते हैं
आया है सो जायेगा
कुछ ऐसे नियम बनाते हैं
ब्रह्मा ने की फिर एक रचना
सुंदर स्त्री प्रगटाई
नाम दिया मृत्यु उसको
कृत्य को सुन वो घबराई।।
फिर ब्रह्मा जी ने उसको आदेश दिया कि “तुमको घर-घर द्वारे-द्वारे जाकर मानव के कर्मानुसार उनके प्राणों के हरण का कार्य सौंपा जा रहा है।*”
पर मृत्यु देवी को ब्रह्मा जी की ये आज्ञा बिल्कुल भी अच्छी ना लगी और वह व्यथित होकर झर-झर आंसू रोने लगी। वह कहने लगी-” मैं कैसे देख सकूंगी मानव का वो करूण क्रंदन जब मैं *किसी की मां,किसी का पिता,किसी का पति ,किसी का बेटा ,किसी का भाई किसी की बहिन आदि आदि के प्राण हरण करूंगी।
कैसे देख सकूंगी
जन-जन के
हृदयविदारक हाहाकार
कहीं मिटेगा
आंखों का तारा
कहीं मिटेगा जीवनाधार
मृत्यु का क्रंदन देखकर
ब्रह्मा का मन डोल गया
पर धरा पर भार बढ़ा है
यह सोचकर संभल गया
पिताश्री मुझसे ना देखा जा सकेगा उनका क्रंदन और वह खूब जोर जोर से रोने लगी। तब ब्रह्मा जी का मन भी अत्यंत व्यथित होने लगा मृत्यु देवी का रूदन देखकर।
पर धरा पर भार बढ़ रहा है ये सोचकर वह संभल गये और कहने लगे – कि बंद करो अपना ये रोना-धोना।अपने आंसुओ को व्यर्थ में ना बहाओ। तुमको अपना कार्य करना ही होगा।पर मृत्यु देवी झर-झर आंसू रोती रही, जो धरा पर जाकर गिर रहे थे।
ब्रह्मा के आदेश को, मृत्यु देवी को अनमने मन से मानना ही पड़ा।
तब ब्रह्मा जी ने मृत्यु से कहा – ” बेटी तुम अदृश्य रहकर ही सभी के प्राण हरण करोगी। क्योंकि तुम जो झर-झर आंसू रोयीं थी वह कई रुपों में पृथ्वी पर बिखर चुके हैं।वही बहानों के रूप में मृत्यु का रूप लेकर पृथ्वी पर मंडरायेंगे।जब भी कोई मरेगा तब कुछ ना कुछ बहाना रहेगा कि उसका एक्सीडेंट हुआ इसलिए मर गया, उसको बुखार हुआ,
उसको कोरोना हुआ आदि आदि बहाने के रुप में मृत्यु हो गई।…..
आज धरा पर मृत्यु नाचती
बहानों की चादर ओढ़े
त्राहि-त्राहि करता है *जन-जन
मृत्यु किसी का दामन ना छोड़े
अबाध गति से युगों-युगों से जीवन चक्र यूं चलता जाये
प्रभु की शरण में जो भी आये
आवागमन यूं मिटता जाये
तो आज ,हम सभी लोगों ने देखा ही है कि मृत्यु कुछ ना कुछ बहाने लेकर ही आती है।…
हरीश अपने परिवार के साथ कार से नासिक जा रहा था कि सामने आते ट्रक से टकराकर उसकी कार के परखच्चे उड़ गए और सिर्फ एक बेटा ही जिंदा बचा और सभी एक्सीडेंट होने से मारे गये।सभी कहने लगे कि कितनी दुःखद बात हो गई कि परिवारी जन एक्सीडेंट में मारे गये।यानि मृत्यु आई बहाना लेकर एक्सीडेंट का।
मरना अटल सत्य है मित्रों,
मृत्यु को तो आना ही है
मृत्यु के आने से पहले
जीवन सफल बनाना है
सत्कर्मो और सत्संगति की
धारा में जो बहता जाये
वह मानव ही मृत्यु लोक में
सखी मुक्त जीवन पथ पाये।।
मृत्यु से घबराना नहीं है ।बस मृत्यु आने से पहले अपने सत्कर्मो को करके जीवन को सफल बना लेना है।…
एक आश्चर्यजनक बात आपको बताती हूं, ध्रुव जी जिन्होंने पांच-छः वर्ष की अवस्था में कठिन तप से नारायण जी का दर्शन पाया था।वे बहुत ही प्रभु भक्त थे यद्यपि प्रभु की आज्ञा से उन्होंने हजारों वर्षों तक राज्य किया था। उनके अंतिम समय उनके लिए विमान आया , तो मृत्यु दूर से खड़ी देखती रही , क्योंकि ऐसे प्रभु भक्त को मृत्यु छू भी नहीं सकती,तब मृत्यु देवी ने कहा *महात्मन आप मेरे सिर पर पैर रखकर विमान में बैठ जाइए।
तब ध्रुवजी मृत्यु देवी के सिर पर पैर रखकर सप्तऋषि दर्शन करते हुए प्रभु के द्वारा बनाये गये अपने ध्रुवलोक पधारते हैं। आज भी ब्रह्म मुहूर्त में ध्रुवतारा चमकता हुआ दिखता है ,जो ध्रुवलोक कहलाता है।
मृत्युलोक में मृत्यु सत्य है
कैसे जन्मी ये मृत्यु,?
क्यों आई धरा पर मृत्यु?
सृष्टि का निर्माण किया जब,ब्रह्मा ने दृष्टि दौड़ायी
हुए प्रसन्न संतोष हुआ तब मन वीणा अति हरषायी
एक नियम में बांध सभी को,
कार्य अनोखे करते थे
ईर्ष्या,द्वेष दम्भ मत्सर भी,
उनमें कभी ना पलते थे
सूर्य,चन्द्र,ग्रह जीव जंतु सब,
मगन हुए सब रहते थे
नहीं कपट छल,घात,दमन था,
सभी प्रेम से रहते थे
जगतपिता जगदीश्वर अपनी,रचना कर हरषाते थे
अक्षयवट सम शक्तिमान हो,
प्राणी बढ़ते जाते थे।
आदि-अंत का पता नहीं था,
अंतहीन से जिये जाते थे
सृष्टि रचयिता बिना मिटाये,
सृष्टि करते जाते थे
त्राहि त्राहि कर उठी धरा तब,
भार बढ़ा जब पृथ्वी पर
मृत्यु लोक में मृत्यु ना होगी,
कैसी रचना है ये प्रभुवर
मुख म्लान और चिंतित स्वर सुन,
धरा से प्रभु ने पूछा था
क्यों व्याकुल अधीर हो देवी,
उनको यह ना भाता था
जर्जर काया अंतहीन सब जीवन जीते जाते हैं
आया है सो जायेगा,
कुछ ऐसे नियम बनाते हैं
ब्रह्मा ने की फिर एक रचना,
सुंदर स्त्री प्रगटाई थी
नाम दिया मृत्यु उसको,
कृत्य को सुन घबराई थी
आदेश दिया फिर ब्रह्मा ने,
मृत्यु घर घर द्वारे जाओ
मानव के कर्मानुसार,
उनके प्राणों को हरकर लाओ
पर उस देवी को ब्रह्मा की,
ये क्रिया ना भायी थी
अधीर व्यथित होकर के मृत्यु,
झर झर आंसू रोयी थी
कैसे देख सकूंगी जन-जन के,
हृदय विदारक हाहाकार
कहीं मिटेगा आंखों का तारा,
कहीं मिटेगा जीवन आधार
मृत्यु का क्रंदन देखकर,
ब्रह्मा का मन डोल गया
पर धरा पर भार बढ़ा है,
यह सोचकर संभल गया
बंद करो ये रोना धोना,
ना बहाओ अपने यूं नीर
अदृश्य रहकर तुम जगत में ,
बहानों के मारो यूं तुम तीर
अनमने मन से मृत्यु देवी ने,
माना फिर प्रभु का आदेश
सृष्टि में आकर के मृत्यु,
देती रही बहानों के संदेश
आज धरा पर मृत्यु नाचती,
बहानों की चादर ओढ़े
त्राहि त्राहि करता जन-जन है,
मृत्यु किसी को भी ना छोड़े
अबाध गति से युगों-युगों से,
जीवन चक्र यूं चलता जाये
प्रभु की शरण में जो भी आये
आवागमन यूं मिटता जाये
सत्कर्मो और सत्संगति की,
धारा में जो बहता जाये
वह मानव ही मृत्यु लोक में,
सखी मुक्ति जीवन पथ पाये
मरना अटल सत्य है मित्रों
मृत्यु को तो आना ही है
मृत्यु के आने से पहले,
जीवन सफल बनाना है
सखी बिल्कुल ना है घबराना
सखी बिल्कुल ना है इतराना
सखी सबको ही है समझाना
सखी जीवन को है धन्य बनाना।।।।।
मृत्यु के जन्म की यह अनूठी कहानी आप सभी को कैसी लगी………?
सुमित्रा गुप्ता ‘सखी’
लेखिका/कवयित्री