वक्रतूंड महाकाय सूर्यकोटि समंप्रभः,
निर्विघ्नम् कुरू मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा।
आज हमारे गणपति पधारे—–
आज हमारे गणपति पधारे,आज हमारे गणपति पधारे—–
चलो सखी मिलकर मंगल गावें,मंगल गावें और उन्हें निहारें—
(१) मात-पिता की पूजा कर वे ,प्रथम पूज्य गणराज बने वे–
गौरी-शंकर को अति प्यारे,प्रथम पूज्य गणपति हमारे–
चलो सखी मिलकर मंगल गावें,मंगल गावें और उन्हें निहारें— आज हमारे गणपति पधारे
(२) शीश प्रभु के सिन्दूर चढ़ावें,दयावन्त की दया को पावें–
दूब-पुष्प ले उनपे चढ़ावे,मुतियन माल गले पहरावें—
चलो सखी मिलकर मंगल गावें,मंगल गावें और उन्हें निहारें—
आज हमारे गणपति पधारे,आज हमारे गणपति पधारे—–
(३) फल मेवा मिष्ठान चढ़ावें,लड्डुअन को हम भोग लगावें—
भक्ति-प्रेम से उन्हें रिझावें,अपनो जीवन धन्य बनावें—-
चलो सखी मिलकर मंगल गावें,मंगल गावें और उन्हें निहारें— आज हमारे गणपति पधारे
(४) विशाल भाल और कान सूप से,लम्बी सूँड़ बड़े पेट से–
मूषक वाहन सवारी साजे,अद्भुत गणपति रूप निहारें–
चलो सखी मिलकर मंगल गावें,मंगल गावें और उन्हें निहारें– आज हमारे गणपति पधारे –
(५) रिद्धि-सिद्धि के तुम हो दाता,जन-जन के तुम भाग्यविधाता–
शुभ-लाभ हैं पुत्र तुम्हारे,जन-जन के वे हैं दुलारे—-
चलो सखी मिलकर मंगल गावें,मंगल गावें और उन्हें निहारें—
आज हमारे गणपति पधारे,आज हमारे गणपति पधारे—–
(६) ऐसे प्यारे गणपति हमारे,आज”सखी” के घर हैं पधारे—
चलो सखी मिलकर मंगल गावें,मंगल गावें और उन्हें निहारें— आज हमारे गणपति पधारे
— कवियत्री एवं लेखिका सुमित्रा गुप्ता ‘सखी’