आद्ये पिता नाशमुपैति मूल
पादे द्वितीये जननीं तृतीये।
धनं चतुर्थस्य शुभोऽथ शान्त्या
सर्वत्रसत्स्यादहिभे विलोमम्।।
मूल नक्षत्र के प्रथम चरण में जन्म हो तो पिता का नाश होता है। द्वितीय चरण में माता को नाश होता है तृतीय चरण में जन्म होने से पहले ही धन का नाश होता है चतुर्थ चरण में जन्म होने से शुभ होता है।
लडका- विशाखा में साले के लिए अशुभ, ज्येष्ठा में ज्येठ सास के लिए अशुभ होता है।
लडकी- विशाखा में देवर के लिए अशुभ जेष्ठा में ज्येठ के लिए अशुभ।
अभुक्तमूलं घटिका चतुष्टयं
ज्येष्ठान्त्यमूलाहिभवं हि नारदः।
वसिष्ठ एक हि घटीमितं जगौ
बृहस्पतिस्त्वेक घटि प्रमाणकम्।।
अभुक्तमूल ज्येष्ठा मूल आश्लेषा के अन्तिम चार घडी को नारद जी ने माना है। वशिष्ठ और बृहस्पति अन्तिम के केवल एक घटी को अभूक्तमूल मानते हैं।
अथो चुरण्ये प्रथमाष्टघट्यो
मूलस्य संक्रान्तिमयंच नाड्यः।
जातं शिशुं तत्र परित्यजेद्वा
मुखं पितास्याष्टसमान न पश्येत्।।
अन्य आचार्य मूल नक्षत्र के शुरू के आठ घडी को अभूक्तमूल अशुभ मानते हैं। संक्रांति के 2 घडी को भी अशुभ माना जाता है। मूल नक्षत्र में जातक का जन्म होने पर बालक को त्याग दें। पिता आठ वर्ष तक पुत्र का मुख न देखें।