सभी चर अचर प्राणी, यह सम्पूर्ण सृष्टि पंच महाभूतों से बनी हुई है और यह सभी का अनुभव है कि कोई भी अपनी इच्छा से यह शरीर धारण नहीं करते हैं और किसी का शरीर छोड़ने का समय आ गया हो तो वह खुदके शरीर को छूटने या नष्ट होने से रोक भी नहीं सकता है, हमारे इस शरीर के विषय में कहा है :
छिति जल पावक गगन समीरा।
पंच रचित अति अधम सरीरा।

— पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश और वायु इन पांच तत्वों से यह अति अधम शरीर रचा गया है ।
इसके ठीक विपरीत ईश्वर के द्वारा धारण किया गया अवतारी शरीर चिन्मय होता है, कोई भी जीव शरीर अपनी इच्छा से नहीं पाता है, न अपनी इच्छा से जन्म लेता है और न ही अपनी इच्छा से शरीर छोड़ सकता है या यदि शरीर छूट रहा हो तो उसकी रक्षा भी नहीं कर सकता है, इतना ही नहीं इस शरीर के पूर्णतः निरोगी रहने पर भी किसीका पूरा वश नहीं है । ईश्वर का अवतारी शरीर दिखने में मानव की तरह दिखता है परंतु ईश्वर शरीर अपनी इच्छा से धारण करते हैं, चिन्मय भगवान के विचार चिन्मय, क्रिया चिन्मय और शरीर भी चिन्मय होते हैं, वे स्वयं अपनी माया को वशीभूत करके इच्छानुसार शरीर को लीला करने के लिए स्वीकार करते हैं । जबकि जीव स्वयं की इच्छा से कोई शरीर स्वीकार नहीं करता है बल्कि कर्मफल अनुसार भगवदीय विधान से कोई शरीर प्राप्त करता है।
भगवान शरीर स्वीकार करते हैं – असुरों के नाश, संतों की रक्षा व धर्म की स्थापना के लिए व लीला के द्वारा जगत को शिक्षा देने के लिए । अवतार शब्द का अर्थ ही है उतरना अर्थात कोई पहले से विद्यमान है वह एक विशेष स्थान पर उतर रहा है, इसीलिए भगवान श्री राम के विषय में भक्तशिरोमणि श्री तुलसीदास जी ने जन्म लेना नहीं कहा, यह कहा कि वे प्रकट हुये
” भए प्रकट कृपाला दीनदयाला “- रामचरितमानस
गीता में अर्जुन से भगवान श्री कृष्ण कहते हैं :
जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः।
त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन।। गीता (४.९)

हे अर्जुन ! मेरे जन्म और कर्म दिव्य हैं। इस प्रकार  (मेरे जन्म और कर्मको ) जो मनुष्य तत्त्वसे जान लेता है, वह शरीरका त्याग करके पुनर्जन्मको प्राप्त नहीं होता, प्रत्युत मुझे ही प्राप्त होता है।
जो लोग ईश्वर को या उनके अवतार को सामान्य मनुष्य की तरह समझते हैं, अपने हाड़ मांस दुर्गन्धयुक्त शरीर को ईश्वर की जगह बिठाते हैं, अपने शरीर की तरह ईश्वर के अवतारी शरीर को भी समझते हैं और अपने इस नाशवान शरीर की ईश्वर रूप में पूजन करवाते हैं, वे घोर महानरक में जाते हैं ।

सामान्य पुरुष की भाँति प्रकट हो सकने में सक्षम होने के कारण जन्म लेता हुआ दिखने पर भी ईश्वर अजन्मा है, ईश्वर जिस किसी भी शरीर में हो उसे पूर्व के सभी रूप की पूर्ण स्मृति सदा बनी रहती है, इतना ही नहीं ईश्वर की परिभाषा में शास्त्र कहते हैं कि वह सम्पूर्ण जीवों के सृष्टि, लय, प्रलय आदि कि स्थिति भलीभांति जानता है ।  वहीं यदि सामान्य पुरुष को कुछ ही समय पूर्व की घटना के बारे में पूछा जाए तो भी पूरा ठीक ठीक स्मरण नहीं रहता है । एक दिन पूर्व कोई व्यक्ति इसी समय क्या कर रहा था यह पूछने पर किसी भी सामान्य व्यक्ति के लिए इसका उत्तर दे पाना कठिन होगा, उसे इस बात को स्मरण करने के लिए भी अपनी बुद्धि पर जोर देना पड़ सकता है कि वह कल इसी समय क्या कर रहा था ?
योगियों में या कुछ विशेष शक्तिसम्पन्न पुरुषों में पूर्व जन्म की बातें स्मरण कदाचित हो भी सकती हैं परंतु भूत,भविष्य, वर्तमान सृष्टि की तीनों काल की घटनाओं को व अलग अलग ब्रम्हांड की घटनाओं, किसी भी जीव के तीनों काल की घटनाओं को एक ही साथ चलचित्र के समान प्रत्यक्ष दर्शन कराने में क्या आज के तथाकथित ईश्वर अवतारी सक्षम हैं?
कोई भी तथाकथित स्वयं को अवतार कहनेवाले विश्वरूप दर्शन या मूल स्वरूप के दर्शन जिसका वह अवतार हो उसके वास्तविक स्वरूप का साक्षात दर्शन कराने में कितना सक्षम है, यदि कोई यह कहे कि वह कृष्ण का अवतार है तो भगवान विष्णु का चतुर्भुज रूप के दर्शन कराने में वह सक्षम होगा, उसी तरह कोई यह कहे कि कोई शिव का अवतार है तो वह शिव का साक्षात दर्शन कराने में सक्षम होगा, परंतु यह न करा सके तो फिर अवतार कैसा?
फिर भी लोग प्रायः अपने को ईश्वर, ब्रम्ह, परमात्मा, शिव, दुर्गा, कृष्ण या कृष्ण का अवतार घोषित करते रहते हैं या खुदको इनसे भी विशेष बताने में लगे रहते हैं, मनुष्य को ऐसी निरर्थक घोषणाओं से भ्रमित न होकर गीता, रामायण, पुराण, उपनिषद सत शास्त्र की बातों, सच्चे संतों की बातों को धारण कर संयम आदि में प्रयत्नशील हो अपना जीवन परम तत्व की ओर अग्रसर करने में लगाना चाहिये ।।

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