यज्जाग्रतो दूरमुदति दैवं तदु सुप्तस्य तथैवैति । दरङ्गमं ज्योतिषां ज्योतिरेकं तेन्मे मनः शिवसङ्कल्पमस्तु ।१।
येन कर्माण्य पसो मनीषिणो यज्ञे कृण्वन्ति विदथेष धीराः ।
यदपूर्व यक्षमन्तः प्रजानां तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु । २।
यत्प्रज्ञानमुत चैतो धृतिश्च यज्योतिरन्तरमृतं प्रजासू ।
यस्मान्न ऋते किंचन कर्म क्रियते तन्मे मनः शिवसकल्पमस्तु । ३।
येनेदं भूतं भुवनं भविष्यत् परिगृहीतममृतेन सर्वम् ।
येन यज्ञस्तायते सप्त होता तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु । ४ ।
यस्मिन्नृचः साम यजू गुं षि यस्मिन् प्रतिष्ठिता रथनाभविवाराः ।
यस्मिश्चित्त गुं सर्वमोतं प्रजानां तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु । ५ ।
सुषारथिश्वानिव यन्मनुष्यान्नेनीयतेऽभिशुभिर्वाजिन इव । हृत् प्रतिष्ठं यदजिर जविष्ठं तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु । ६।
हे ईश्वर ! जो मन जागता हुआ तथा सोता हुआ भी बहुत दूर दूर तक जाया करता तथा जो सभी इन्द्रियों में इसी प्रकार चमकता हैं ऐसा प्रभावशाली है जैसे कि सारे आकाश में स्थित तारों आदि में सूर्य ! उस हमारे मन को कृपाकर शुभ संकल्पों से युक्त करते ।१ । ईश्वर ! जिस मन के द्वारा कर्म योगी , ज्ञान योगी , यज्ञ करने वाले मुनिजन ( विद्वान् ) शुभ कर्म किया करते हैं , वह इस हमारे मन को संकल्पों वाला वना दे ।२ ।
प्रभो ! जो मन उच्च कोटि के सच्चे ज्ञान का साधनभूत है , जो स्मरण शक्ति से युक्त हैं , जो दिये की तरह अपने आपको प्रकाशित रहा करता है तथा प्रत्येक चीज हो सकता उस इस हमारे मन को अच्छे संकल्पों वाला बनादे । ३ । जिस मन से भूत , भविष्य तथा वर्तमान का ज्ञान होता है , साथही जो या याज्ञिक ब्रह्मा की तरह शरीर में स्थिन सभी इन्द्रियों द्वारा आत्मासे इस शरीर यज्ञ को जलाता है , उस इस हमारे मन को हे भगवन् ! शुभ इच्छायुक्त करो ।४।
हे प्रभो ! जो मन ऋक साम तथा यजुर्वेद के मध्य इन्हें स्मरण करके ऐसे स्थित हो जैसे रथ के पहियों में अरे ,बीच के छोटे – छोटे डण्डे ऐसे ,इस मन को शुभ इच्छायुक्त करो ।५ । जैसे कि अच्छा सारथि बलवान व वेगयुक्त घोड़ों को वश में करके चलता है ठीक ऐसे ही जो मन विचारयुक्त मनुष्यों एवं विद्वानों का मार्ग प्रदर्शन कराता है , जो हृदय में स्थित है , जो बुढ़ापे से रहित है तथा जो कि बड़ा शक्तिशाली है , ऐसे इस मन को हे प्रभो ! अच्छे संकल्पों वाला बना दो । ६ । ।
॥ शिव संकल्पोपनिषत् समाप्त । ।