भारतीय शिक्षा का इतिहास भारतीय सभ्यता के इतिहास से जुड़ा है। भारतीय समाज के विकास तथा परिवर्तनों की रूपरेखा में शिक्षा की जगह और उसकी भूमिका को भी निरंतर विकासशील पाते हैं।भारतीय शिक्षा पद्धति – वैदिक कालीन शिक्षा से प्रारम्भ होकर बौद्धशिक्षा,मुस्लिम शिक्षा, ब्रिटिशशिक्षा एवं मैकाले शिक्षा से लेकर आज्ञापत्र सन् 1833, वुड घोषणा पत्र (1854), भारतीय शिक्षा आयोग (हंटर कमिशन 1882), भारतीय विश्वविद्यालय आयोग (1902-1904),सैडलर् कमिशन (1917-19),वर्धाशिक्षा योजना (बेसिक शिक्षा 1937),विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग (1948-49), माध्यमिक शिक्षा आयोग (मुदालियर आयोग 1952-53),राष्ट्रीय शिक्षा आयोग, राष्ट्रीय शिक्षा नीति (1968), राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NPE 1986 ), यशपाल कमिटी (1992), एवं वर्तमान में आ रहा राष्ट्रीय शिक्षा नीति (2019-20) तक हमारा भारतीय शिक्षा का इतिहास विविधता में एकता को प्रदर्शित कर शिक्षारूपी इतिहास को संजोए रखा है।

भारतीय शिक्षा न केवल भारत तक अपितु विश्व के विभिन्न देशों से पाठक के रूप में आने वाले हर विद्यार्थी को यहां ज्ञान,परम्परा,संस्कार, संस्कृति, सभ्यता, चरित्र निर्माण, नैतिक मूल्य, सदाचार, सद्व्यवहार,दर्शन इत्यादि विषयों का ज्ञान दिया जाता रहा है। भारतीय शिक्षा में ऋषि-मनीषियों, शास्त्र और शस्त्र निपुण विद्वानों,बुद्धिजीवियों, प्रशिक्षित अध्यापकों का अनुपम तथा अतुलनीय योगदान रहा। भारतीय शिक्षा के द्वारा ही हमारा देश “सोने की चिड़िया” एवं “विश्वगुरु” के रूप में दुनिया को “सर्वे भवन्तु सुखिनः, वसुधैव कुटुंबकम्, सत्यमेव जयते, अहिंसा परमो धर्म: ऐसे मंत्रों से अभिमंत्रित करता रहा। भारतीय शिक्षा के अग्रदूतों ने विश्व को शिक्षा, शांति, प्रेम, संगठन सूत्रों के द्वारा समग्र विश्व को “जीने की कला” (Art of living) जैसे संदेश प्रदान किया। हमारी शिक्षा पद्धति धर्मनिरपेक्षता, विविधता में एकता,सर्वजनसुखाय- सर्वजनहिताय, सहिष्णु ऐसे सुमधुर विचारों में विश्वास रखते हुए सबके लिए कल्याण की कामना करता है। आशीष कुमार पांडेय ।। (शुभम् भूयात्)।।

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