वैदिक शिक्षा
आज के सुशिक्षित मानव ने जीवन यापन हेतु अनेकों व्यवस्थाएं कर ली है। हर प्रकार के सुविधाओं से सम्पन्न हो चुके हैं। विश्राम हेतु सुंदर भवन है, भवन में आरामदायक…
आज के सुशिक्षित मानव ने जीवन यापन हेतु अनेकों व्यवस्थाएं कर ली है। हर प्रकार के सुविधाओं से सम्पन्न हो चुके हैं। विश्राम हेतु सुंदर भवन है, भवन में आरामदायक…
आदौ कर्मप्रसङ्गात्कलयति कलुषं मातृकुक्षौ स्थितं मां,विण्मूत्रामेध्यमध्ये क्वथयति नितरां जाठरो जातवेदाः ।यद्यद्वै तत्र दुःखं व्यथयति नितरां शक्यते केन वक्तुं,क्षन्तव्यो मेऽपराधः शिव शिव शिव भो श्रीमहादेव शम्भो॥ बाल्ये दुःखातिरेको मललुलितवपुः स्तन्यपाने पिपासा,नो…
मलनिर्मोचनं पुंसां जलस्नानं दिने दिने ।सकृद्गीतांभसि स्नानं संसारमलनाशनम् ।। (जल में प्रतिदिन किया हुआ स्नान मनुष्यों के केवल शारीरिक मल का नाश करता है, परन्तु गीताज्ञानरूप जल में एक बार…
जन्म कुंडली के पहले भाव से लेकर बारहवें भाव तक शरीर के विभिन्न अंगों को देखा जाता है और जिस अंग में पीड़ा होती है तो उस अंग से संबंधित…
पहला अध्याय एक समय की बात है नैषिरण्य तीर्थ में शौनिकादि, अठ्ठासी हजार ऋषियों ने श्री सूतजी से पूछा हे प्रभु! इस कलियुग में वेद विद्या रहित मनुष्यों को प्रभु…
वेदोनित्यमधीयतां तदुदितं कर्मस्वनुष्ठीयतां, वेद में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष, चार प्रकार के पुरुषार्थ कहे गए हैं,ये चारों मानव जीवन के संतुलन गतिविधयों के लिए बनाया गया है ,जिसमें सर्वप्रथम…
जटाटवीगलज्जल प्रवाहपावितस्थलेगलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजंगतुंगमालिकाम्। डमड्डमड्डमड्डमनिनादवड्डमर्वयंचकार चंडतांडवं तनोतु नः शिवः शिवम ॥१॥ जटा कटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिंपनिर्झरी विलोलवी चिवल्लरी विराजमानमूर्धनि ।धगद्धगद्ध गज्ज्वलल्ललाट पट्टपावकेकिशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं ममं ॥२॥ धरा धरेंद्र नंदिनी विलास बंधुवंधुर-स्फुरदृगंत संतति…
नमामीशमीशान निर्वाण रूपं, विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदः स्वरूपम् ।निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं, चिदाकाश माकाशवासं भजेऽहम् ॥ निराकार मोंकार मूलं तुरीयं, गिराज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम् ।करालं महाकाल कालं कृपालुं, गुणागार संसार पारं…
श्रीगणेशायनमःश्रीजानकीवल्लभो विजयतेश्रीरामचरितमानसद्वितीय सोपानअयोध्या-काण्डश्लोकयस्याङ्के च विभाति भूधरसुता देवापगा मस्तकेभाले बालविधुर्गले च गरलं यस्योरसि व्यालराट्।सोऽयं भूतिविभूषणः सुरवरः सर्वाधिपः सर्वदाशर्वः सर्वगतः शिवः शशिनिभः श्रीशङ्करः पातु माम्।।1।।प्रसन्नतां या न गताभिषेकतस्तथा न मम्ले वनवासदुःखतः।मुखाम्बुजश्री रघुनन्दनस्य…
ब्रह्मानंदं परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिं द्वंद्वातीतं गगनसदृशं तत्त्वमस्यादिलक्ष्यम् |एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षिभूतं भावातीतं त्रिगुणरहितं सद्गुरुं तं नमामि || आषाढ़ मास के पूर्णिमा को सनातन परंपरा में गुरु पूर्णिमा या व्यास पूर्णिमा (कृष्ण द्वैपायन…