वैशाख शुक्ल अष्टमी तिथि (20.05.2021) को मां बगलामुखी का अवतरण दिवस मनाया जाता है। देवी बगलामुखी दसमहाविद्या मे आठवी महाविद्या है, यह स्तम्भन की देवी है, पूरे जगत की शक्ति का रुप है माॅ बगलामुखी, इसमें पूरे ब्रह्माण्ड की शक्ति का समावेश है। साथ ही शत्रुनाश, वाक-सिद्धि, वाद-विवाद में विजय के लिए इनकी उपासना की जाती है। इनकी उपासना से शत्रुओं का नाश होता है और व्यक्ति जीवन में हर प्रकार की बाधा पर विजय हासिल करता है।
जो लोग शत्रुओ, मुक्कद्दमेबाजी,लडाई झगडो अथवा किसी भी प्रकार की नाकामियों से त्रस्त हो अथवा नेतागण, तथा वकील इत्यादि जिन्हे वाक् सिद्वि तथा मारक शक्ति की आवश्यकता होती है, इनके अलावा अन्य भी सब मनुष्यो को मां की उपासना करनी चाहिए। इनकी उपासना से शत्रुओ का नाश तथा भक्तो का जीवन हर प्रकार कि बाधा तथा भय से मुक्त हो जाता है ।
वाक् सिद्धि तथा वाद विवाद मे विजय श्री की प्राप्ति होती है। इनके साधक अथवा भक्त को किसी भी
प्रकार कि अकाल मृत्यु अर्थात भूचाल, तूफान, अग्नि, ज्चालामुखी, सुनामी, हिंसा तथा हत्या इत्यादि के भय से मुक्त जीवन प्राप्त होता है।
मां बगलामुखी कि कथा इस प्रकार से है
सतयुग मे एक बार महाविनाश करने वाला ब्रह्मंडीय तूफान उत्पन्न हुआ, जिससे संपूर्ण विश्व नष्ट होने लगा, इससे चारो ओर हाहाकार मच जाता है, अनेको लोक संकट मे पडनेे लगे और संसार कि रक्षा करना असंभव हो गया । यह तूफान सब कुछ नष्ट करता हुआ आगे बढता जा रहा था, जिसे देखकर भगवान विष्णु जी चिंतित होने लगे, वह चिंतित हो भगवान शिव का स्मरण करने लगे तब भगवान शिव ने उनसे क्हा कि “शक्ति” के सिवा कोई भी इसे नही रोक सकता अतः आप उनकी शरण मे जाये ।
तब भगवान विष्णु हरिद्रा सरोवर के निकट कठोर तप करने लगे इससे महात्रिपुरसुंदरी (देवी शक्ति) प्रसन्न हुई और सौराष्ट्र श्रेत्र की हरिद्रा झील मे जलक्रीडा करते हुए उन महापीत देवी के ह्दय से दिव्य तेज उत्पन्न हुआ इन्ही “त्रैलोक्य स्तंम्भिनी महाविद्या भगवती बगलामुखी” ने प्रसन्न होकर विष्णु जी को इच्छित वर दिया और तब जाकर सृष्टि का विनाश रुका।
देवी को वीररति भी क्हा जाता है, क्योकि देवी स्वंय ब्रह्मस्त्र रुपिणी है, इनको शिव का महारुद्र भी क्हा जाता है, इसलिए देवी सिद्ध विद्या है। तंत्र विद्या मे इन्हे स्तंम्भन कि देवी मानते है, तथा गृहस्थो के लिए देवी समस्त प्रकार के संशयो का शमन करने वाली है।
गलामुखी देवी रत्नजडित सिंहासन पर विराजती है। रत्नमय रथ पर सवार हो शत्रुओ का नाश करती है, तीनो लोको मे कोई उन्हे हरा नही पाता अर्थात इनके भक्तो के शत्रुओे का विनाश, भक्तो की विजय, वाक्सिद्वि, तथा वाद विवाद मे जीत निश्चिंत है, तथा इनका साधक जीवन के हर श्रेत्र मे सफलता पाता है ।
मां बगलामुखी की पूजन विधि-
ज्योतिषाचार्य अभिजीत पांडेय कहते है कि बगलामुखी जंयती के दिन अथवा अन्य दिनो मे भक्तो को प्रातःकाल स्नानादि से निवृत होकर पीले वस्त्र धारण करके मंदिर मे या किसी सिद्व पुरुष के साथ बैठकर पूर्वाभिमुख होकर चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर भगवती बगलामुखी के चित्र
के सम्मुख बैठकर पीले फूल, हल्दी, पीले नैवेद्य द्वारा तथा हल्दी की माला द्वारा मंत्र जाप करते हुए मां की पूजा अर्चना करनी चाहिए, साथ ही उस दिन का व्रत भी करे, यदि मंत्र जाप द्वारा पूजा की हो तो दशमांश आहुति द्वारा यज्ञ करे। संभव हो तो रात्रिकालीन भगवती जागरण भी करे।
विशेष:- जो व्यक्ति मुकद्दमेबाजी,सरकारी कोप, सजा जुर्माना या शक्तिशाली शत्रुओ द्वारा सताये जाते हो, वह इनकी पूजा अवश्य करे, यदि इनकी पूजा कठिन लगती हो तो किसी ऐसे मंदिर मे जहां बगलामुखी
मां की प्रतिमा हो वहां जाकर मां के सम्मुख दीपदान करे, पीले फूल तथा नारियल चढाये तथा मां को
पीले रंग की साडी अर्पित करके अपनी तकलीफो कि मुक्ति हेतू प्रार्थना करे ।
माँ बगलामुखी जयंती पर सच्चे मन से की गई प्रार्थना से भक्तो के कठिन से कठिन कष्टो का निवारण होगा तथा सुख और अभीष्ट की प्राप्ति होगी।