विश्वकर्मा पूजा मुहूर्त (17 सितंबर 2020)
प्रातः काल मुहूर्त – 7 बजकर 22 मिनट
अमृत काल मुहूर्त – सुबह 10 बजकर 9 मिनट से 11 बजकर 37 मिनट तक
विजय योग – दोपहर 02 बजकर 19 मिनट से दोपहर 3 बजकर 08 मिनट तक
गोधूलि मुहूर्त – शाम 06 बजकर 12 मिनट से शाम 6 बजकर 36 मिनट तक
भगवान विश्वकर्मा की पूजा और यज्ञ विशेष विधि-विधान से होता है।
इसकी विधि यह है कि यज्ञकर्ता स्नानादि-नित्यक्रिया से निवृत्त होकर पत्नी सहित पूजास्थान में बैठें।
इसके बाद विष्णु भगवान का ध्यान करें।
तत्पश्चात् हाथ में पुष्प, अक्षत लेकर- ॐ आधार शक्तपे नम: और ॐ कूमयै नम:; ॐ अनंतम् नम:, ॐ पृथिव्यै नम: ऐसा कहकर चारों ओर अक्षत छिड़कें और पीली सरसों लेकर दिग्बंधन करें। अपने रक्षासूत्र बांधें एवं पत्नी को भी बांधें।पुष्प जलपात्र में छोड़ें।इसके बाद हृदय में भगवान विश्वकर्मा का ध्यान करें। रक्षादीप जलाएं, जलद्रव्य के साथ पुष्प एवं सुपारी लेकर संकल्प करें।शुद्ध भूमि पर अष्टदल कमल बनाएं। उस स्थान पर सप्त धान्य रखें। उस पर मिट्टी और तांबे का जल डालें।
इसके बाद पंचपल्लव, सात तरह की मिट्टी, सुपारी, दक्षिणा कलश में डालकर कपड़े से कलश का आच्छादन करें। चावल से भरा पात्र समर्पित कर ऊपर विश्वकर्मा बाबा की मूर्ति स्थापित करें और वरुण देव का आह्वान करें। पुष्प चढ़ाकर कहना चाहिए- हे विश्वकर्मा जी, इस मूर्ति में विराजिए और मेरी पूजा स्वीकार कीजिए। इस प्रकार पूजन के बाद विविध प्रकार के औजारों और यंत्रों आदि की पूजा कर हवन यज्ञ करें।
हिंदू धर्म में विश्वकर्मा पूजा का अपना ही एक विशेष महत्व है। मान्यता है कि अश्विन कृष्णपक्ष की प्रतिपदा तिथि को भगवान ब्रह्मा के सातवें पुत्र भगवान विश्वकर्मा का जन्म हुआ था। इस दिन विधि पूर्वक पूजा-अर्चना करने से देव विश्वकर्मा प्रसन्न हो जाते हैं और व्यवसाय आदि में दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की होती है। आचार्य जी का कहना है कि कन्या संक्रांति के दिन विश्वकर्मा पूजन का अपना एक विशेष महत्व है। इस दिन पूरे विधि-विधान से पूजन करने पर आपको कष्टों से मुक्ति मिल सकती है। खासतौर पर व्यापार वर्ग की सभी परेशानियां और धन-संपदा से जुड़ी दिक्कतें खत्म हो सकती हैं।
विश्वकर्मा की आरती
ॐ जय श्री विश्वकर्मा प्रभु जय श्री विश्वकर्मा।
सकल सृष्टि के कर्ता रक्षक श्रुति धर्मा ॥
आदि सृष्टि में विधि को, श्रुति उपदेश दिया।
शिल्प शस्त्र का जग में, ज्ञान विकास किया ॥
ऋषि अंगिरा ने तप से, शांति नही पाई।
ध्यान किया जब प्रभु का, सकल सिद्धि आई॥
रोग ग्रस्त राजा ने, जब आश्रय लीना।
संकट मोचन बनकर, दूर दुख कीना॥
जब रथकार दम्पती, तुमरी टेर करी।
सुनकर दीन प्रार्थना, विपत्ति हरी सगरी॥
एकानन चतुरानन, पंचानन राजे।
द्विभुज, चतुर्भुज, दशभुज, सकल रूप साजे॥
ध्यान धरे जब पद का, सकल सिद्धि आवे।
मन दुविधा मिट जावे, अटल शांति पावे॥
श्री विश्वकर्मा जी की आरती, जो कोई नर गावे।
कहत गजानन स्वामी, सुख सम्पत्ति पावे॥