वो मुरलीधर कान्हा रसिया जब जब मुरली बाजे
सुध बुध मेरी खो जाती है प्रेम मगन रंग राचे।
काम काज सब बिसरे दिल से ये जियरा तड़पाए।
वो वैरी कान्हा रंग रसिया जब मुरली धुन गाए।

नटखट रूप सलोना तेरा मुरली अधर विराजे ।
मोर मुकुट पावें पैजनिया मधुर मधुर धुन बाजे।
कान्हा तेरी याद में मेरे नैनन नींद ना आए
बंसी तेरी सौतन लागे जब तेरी अधर पे साजे।

जोगन बन गई तेरी राधा तन मन दिया उसार
वो निधिवन वो कुंज गलिन की दिया रास बिसार
कान्हा तेरी याद में मुझको नैनन नींद ना आए।
पर्वत जैसी मन की पीड़ा जिया बड़ा अकुलाए।

जब से बिछड़े श्याम हमारे चैन तनिक ना आया।
कान्हा तेरी बसुरिया को हमने अधर लगाया।
तुम क्या जानो क्या होती है एक विरहन की पीड़ा।
जैसे कटी पतंग अधर में वैसे मन की पीड़ा।

बहत है नैनन के संग कजरा सुध बुध सब बिसराई।।
हुए द्वारकाधीश सुनो कभी मेरी सुधि ना आई।
स्वर्ण महल का मान मिला तुझे वैभव और सम्मान मिला।
सतभामा के प्रीत में तुमने राधा को बिसरायी।=

हुई बावरी राधा तेरी तेरी ही सुध खोई।
निधि बन का माटी भी पुछत किसकी याद में रोई।
सूना लगता चहुं दिशाएं गैया भी रंभाती।
वो कान्हा वो कान्हा कहके प्रति पल टेर लगती।
वो निष्ठुर, निर्दय, निर्मोही वो मेरे जगदीश।
व्याकुल प्रीत अधर अकुलाने नैनन बस जा ईश।

श्रीमती मणि बेन द्विवेदी
वाराणसी (उत्तर प्रदेश)

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