एक वैश्य ने लाखों-करोड़ों रुपये कमाए और अपने धन में से चार-चार लाख रुपये अपने पुत्रों को देकर, उनकी अलग-अलग दुकाने करवा दीं । शेष धन उसने दीवारों में चुनवा दिया । चंद रोज़ के बाद वह सख्त बीमार हो गया

। उसे सन्निपात हो गया और वह आन-तान बकने लगा । लोगों ने उसका अन्त समय समझ उससे कहा -“सेठ जी ! बहुत धन कमाया है, इस समय कुछ पुण्य कीजिये, क्योंकि इस समय धर्म ही साथ जायेगा; स्त्री पुत्र, धन प्रभृति साथ न जाएंगे।” वैश्य का गला बन्द हो गया था, अतः वो बोल न सकता था । उसने बारम्बार दीवारों की तरफ हाथ किये । इशारों से बताया कि इन दीवारों में धन गड़ा है, उसे निकालकर पुण्य कर दो । पुत्र, पिता का मतलब समझकर बोले – ” पिताजी कहते हैं, जो धन था, सो तो इन दीवारों में लगा दिया, अब और धन कहाँ है ? ” लोगों ने लड़कों की बात मान ली । वैश्य अपने पुत्रों की बेईमानी देखकर बहुत रोया, पर बोल न सकता था, इसलिए छटपटा छटपटा कर मर गया । लड़कों ने उसे शमशान ले जाकर जला दिया । वैश्य के मन की मन में ही रह गयी । इससे बढ़कर पुत्रों की शत्रुता क्या होगी ?
जो लोग सैकड़ों प्रकार के अनर्थ और बेईमानी से पराया धन हड़प कर अथवा और तरह से दुनिया का गला काटकर लाखों-करोड़ों अपने पुत्र-पौत्रों को छोड़ जाते हैं, वे इस कहानी से शिक्षा ग्रहण करें और पुत्रों का झूठा मोह त्यागें । इस जगत में न कोई किसी का पुत्र है न पिता । माता-पिता, भाई-बहन, स्त्री-पुत्र सभी एक लम्बी यात्रा के यात्री हैं । यह मृत्युलोक उस यात्रा के बीच का मुकाम है । इस मुकाम पर आकर सब इकट्ठे हो गए हैं । कोई किसी से सच्ची प्रीति नहीं रखता । सभी स्वार्थ की रस्सी से एक-दुसरे से बंधे हुए हैं । जब जिसके चलने का समय आ जाता है, तब वही निर्मोही की तरह सब को छोड़ के चल देता है । जो लोग उस चले जाने वाले या मर जाने वाले के लिए प्राण न्यौछावर करते थे, उसके लिए मरने तक को तैयार रहते थे, उनमें से कोई उसके साथ पौली तक जाता है और कोई उसे श्मशान भूमि तक पहुंचकर और जला-बलाकर ख़ाक कर आता है । ऐसे नातेदारों से अनुराग करना – उनमें ममता रखना बड़ी ही गलती है ।

कहा है –
“परलोक की राह में जीव अकेला जाता है; केवल धर्म उसके साथ जाता है । धन, धरती, पशु और स्त्री घर में रह जाते हैं । लोग श्मशान तक जाते हैं और देह चिता तक साथ रहती है ।”

बहुत लोग यह समझते हैं कि पुत्र बिना गति नहीं होती; पुत्रहीन पुरुष नरक में जाता है और पुत्रवान स्वर्ग में जाता है । जो लोग ऐसा समझते हैं; वह बड़ी भूल करते हैं । पुत्रों से किसी की भी गति न हुई है और न होगी; सब की गति अपने ही पुरुषार्थ से होती है । अगर पुत्रों से स्वर्ग या मोक्ष की प्राप्ति होती, तो कोई विरला ही नरक में जाता । जो जैसा करता है, उसे वैसा ही फल भोगना होता है । ब्रह्मह्त्या, स्त्रीहत्या, भ्रूणहत्या, परस्त्रीगमन और परधन हरण प्रभृति पापों का फल कर्ता को भोगना ही होता है । जो ऐसा समझते हैं कि ऐसे पाप करने पर भी पुत्र-पौत्रों के होने से, हम दण्ड से बच जाएंगे, वे बड़े ही मूर्ख हैं । ज्ञानी लोग तो संसार बन्धन से छूटने के लिए अपने पुत्रों का भी त्याग कर देते हैं ।

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