वेदी निर्माण-
पंचांग पूजन के अनन्तर यथा परिमित तीन कण्ठ युक्त कुण्ड अथवा स्थण्डिल का निर्माण करना चाहिए। कुण्ड के अभाव में बालू से मेखला सहित स्थण्डिल का प्रयोग भी किया जा सकता है। स्थण्डिल मिट्टी से निर्मित 24 अंगुलियों का होना चाहिए। प्रत्येक कण्ठ की ऊँचाई दो या चार अंगुल होना चाहिए।
पञ्च भू:संस्कार
संकल्प:- अमुककर्माङ्गतया पञ्चभूसंस्कारान् करिष्ये।
परिसमूहनम् :-
दाहिने हाथ में कुशाएँ लेकर तीन बार पश्चिम से पूर्व की ओर या दक्षिण से उत्तर की ओर बढ़ते हुए निम्न मन्त्र बोलते हुए बुहारें, भावना करें कि इस क्षेत्र में पहले से यदि कोई कुसंस्कार व्याप्त हैं, तो उन्हें मन्त्र और भावना की शक्ति से बुहार कर दूर किया जा रहा है। बाद में कुशाओं को पूर्व की ओर फेंक दें।
त्रीणि दर्भैः परिसमूह्य, परिसमूह्य, परिसमूह्य।


उपलेपनम्
बुहारे हुए स्थल पर गोमय (गाय के गोबर) से पश्चिम से पूर्व की ओर को या दक्षिण से उत्तर की ओर बढ़ते हुए लेपन करें और निम्न मन्त्र बोलते रहें। भावना करें कि शुभ संस्कारों का आरोपण और उभार इस क्रिया के साथ किया जा रहा है।
गोमयेन उपलिप्य, उपलिप्य, उपलिप्य।


उल्लेखनम्
लेपन हो जाने पर उस स्थल पर स्रुवा मूल से तीन रेखाएँ पश्चिम से पूर्व की ओर या दक्षिण से उत्तर की ओर बढ़ते हुए निम्न मन्त्र बोलते हुए खींचे, भावना करें कि भूमि में देवत्व की मर्यादा रेखा बनाई जा रही है।
स्रुवमूलेन उल्लिख्य, उल्लिख्य, उल्लिख्य।


उद्धरणम्
रेखांकित किये गये स्थल के ऊपर की मिट्टी अनामिका और अङ्गुष्ठ के सहकार से निम्न मन्त्र बोलते हुए पूर्व या ईशान दिशा की ओर फेंके, भावना करें कि मर्यादा में न बाँध सकने वाले तत्त्वों को विराट् की गोद में सौंपा जा रहा है।
अनामिकाङ्गुष्ठाभ्यामुद्धृत्य, उद्धृत्य, उद्धृत्य।


अभ्युक्षणम्
पुनः उस स्थल पर निम्न मन्त्र बोलते हुए जल छिड़कें, भावना करें कि इस क्षेत्र में जाग्रत् सुसंस्कारों को विकसित होने के लिए सींचा जा रहा है।
उदकेन अभ्युक्ष्य, अभ्युक्ष्य, अभ्युक्ष्य।

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